Move to Jagran APP

क्या है उत्पन्ना एकादशी आैर कैसे करें इस दिन पूजा

हिंदू कलैंडर में प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास में इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष में उत्पन्ना एकादशी होती है।

By Molly SethEdited By: Published: Mon, 03 Dec 2018 12:38 PM (IST)Updated: Mon, 03 Dec 2018 12:38 PM (IST)
क्या है उत्पन्ना एकादशी आैर कैसे करें इस दिन पूजा
क्या है उत्पन्ना एकादशी आैर कैसे करें इस दिन पूजा

क्या है उत्पन्ना एकादशी 

loksabha election banner

पद्मपुराण के अनुसार एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से इस एकादशी की उत्पत्ति के विषय में पूछा तो उन्होंने बताया कि सतयुग में मुर नामक दानव ने देवराज इन्द्र को पराजित करके जब स्वर्ग पर अपना आधिपत्य जमा लिया, तब सब देवता महादेव जी की शरण में पहुंचे। महादेवजी उनको लेकर क्षीरसागर गए। वहां विष्णु जी से मदद करने के लिए कहा जिस पर उन्होंने मुर पर आक्रमण कर दिया। वहां सैकडों असुरों का संहार करके वे बदरिकाश्रम चले गए आैर एक बारह योजन लम्बी सिंहावती गुफा में निद्रालीन हो गए। दानव मुर ने जब विष्णु जी को मारने के उद्देश्य से गुफा में प्रवेश किया, तो विष्णु जी के शरीर से दिव्य अस्त्र-शस्त्रों से युक्त एक अति रूपवती कन्या उत्पन्न हुई। उस कन्या ने अपने हुंकार से दानव मुर को भस्म कर दिया। विष्णु जी के जागने कन्या ने बताया कि उसी ने मुर का वध किया है। इस पर प्रसन्न होकर श्री नारायण ने एकादशी नाम की उस कन्या को मनोवांछित वरदान देकर उसे अपनी प्रिय तिथि घोषित कर दिया। इस तरह उत्पन्ना एकादशी का प्रादुर्भाव हुआ। 

एेसे करें पूजा 

एेसी मान्यता है कि उत्पन्ना एकादशी पर विधि-विधान से भगवान विष्णु की आराधना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस वर्ष ये पर्व 3 दिसंबर सोमवार को मनाया जा रहा है। इस दिन विष्णु जी कृपा पाने के लिए व्रत भी करते हैं। इस एकादशी के व्रत की तैयारी एक दिन पहले यानी कि दशमी के दिन से ही करनी शुरू कर दी जाती है। इसके लिए दशमी को रात में खाना खाने के बाद अच्छे से दांतों को साफ़ कर लें ताकि मुंह जूठा न रहे आैर इसके बाद अन्न ग्रहण न करें। पूर्ण रूप से सात्विक आैर संयमित रह कर व्रत करें। उत्पन्ना एकादशी के दिन सुबह उठकर स्नान आदि के बाद नए कपड़े पहनकर पूजाघर में जाएं और भगवान के सामने व्रत करने का संकल्प मन ही मन दोहरा। इसके पश्चात भगवान विष्णु की आरती आैर पूजा करें और व्रत की कथा सुनें। ऐसा करने से समस्त रोग, दोष और पापों का नाश होता है। शाम के समय फिर से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना आैर दीपदान करें। अगले दिन यानी द्वादशी को व्रत का पारण करें आैर दान पुण्य करें। 

इस व्रत का लाभ 

शास्त्रों के अनुसार जो मनुष्य जीवनपर्यन्त इस एकादशी को उपवास करता है, वह मरणोपरांत वैकुण्ठ धाम जा कर मोक्ष प्राप्त करता है। एकादशी माहात्म्य को सुनने मात्र से सहस्र गोदानों का पुण्य फल प्राप्त होता है। एकादशी में उपवास करके रात्रि-जागरण करने से  श्रीहरि की अनुकम्पा मिलती है। उपवास करने में असमर्थ भक्त एकादशी के दिन कम से कम अन्न का परित्याग अवश्य करें। मान्यता है कि एकादशी में अन्न का सेवन करने से पुण्य का नाश होता है तथा भारी दोष लगता है। ऐसे लोग एकादशी के दिन एक समय फलाहार कर सकते हैं। मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष में एकादशी के उत्पन्न होने के कारण इस व्रत का अनुष्ठान इसी तिथि से शुरू करना उचित रहता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.