शरद पूर्णिमा पर पढ़ें यह कथा मिलेगा संतान को नव जीवन
बुधवार 24 अक्टूबर 2018 को स्त्रियां अपनी संतान की रक्षा आैर दीर्घायु के लिए शरद पूर्णिमा का व्रत रखेंगी आैर पढ़ेंगी ये कथा।
एेसे करें पूजा
शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा से अमृत की वृषा में उसका फल पाने के लिए खीर बना कर उसका बरतन आंगन या छत पर खुले में रखें आैर अगले दिन उसे प्रसाद रूप में ग्रहण करेंं। इस दिन प्रात काल स्नान आदि से शुद्घ हो कर एक कलश पर लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करें वस्त्र, आभूषण, गन्ध आैर पुष्प आदि अर्पित करके उनकी पूजा करें। पूरे दिन व्रत रखें आैर सिर्फ फलाहार ही करें। रात को पूजा के पश्चात व्रत की कथा पढ़ें या सुनें। चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन ग्रहण करें। शाम को चंद्रमा निकलने पर उनके सम्मुख घी से भरे हुए दीपक जलाए। इसके बाद खीर तैयार करें या देशी घी में काली मिर्च आैर शक्कर मिला कर उस पात्र को चन्द्रमा की चांदनी में रखें। अगले दिन लक्ष्मीजी का भोग लगा कर उसका प्रसाद ग्रहण करें।
शरद पूर्णिमा व्रत कथा
इस व्रत की कथा इस प्रकार है, किसी नगर में एक साहुकार अपनी दो पुत्रियों के साथ रहता था। दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं, परन्तु जहां बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी वहीं छोटी पुत्री से अधूरा ही छोड़ देती थी। इसके परिणाम स्वरूप छोटी पुत्री की सन्तान पैदा ही मर जाती थी। बार बार एेसा होने पर जब उसने पंडितो से इसका कारण पूछा तो उन्होने बताया की ये पूर्णिमा का अधूरा व्रत रखने का दंड है। यदि वो पूरा व्रत विधिपूर्वक रखेगी तो संकट अवश्य दूर हो जायेगा। पंडितों की सलाह अनुसार अगली पूर्णिमा पर उसने पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। उसके पश्चात उसे पुत्र की प्राप्ति तो हुर्इ परंतु शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो गर्इ। उसने बेहद दुखी मन से लडके को एक पीढ़े पर लिटाकर ऊपर से पकडा ढक दिया, फिर अपनी बडी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढ़ा दिया। जैसे ही बडी बहन पीढे पर बैठने लगी तो उसके वस्त्र बच्चे के स्पर्श हो गए। वस्त्र के छूते ही बच्चा जीवित हो कर रोने लगा। इससे क्रुद्घ हो कर बडी बहन बोली कि तुम मुझे कंलक लगाना चाहती थीं, अगर मेरे बैठने से यह मर जाता तो क्या होता। तब छोटी बहन ने कहा कि यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य आैर पुण्य से यह जीवित हुआ है। इस घटना के बाद पूर्णिमा व्रत की शक्ति का महत्व पूरे नगर में फैल गया और राजा ने राजकीय घोषणा करवाई कि अब नगर में सभी पूर्णिमा का पूरा व्रत रखें ताकि सभी की संतान सुरक्षित रहे। बड़ी बहन को धन्यवाद दे कर छोटी ने भी विधिविधान से व्रत रखना प्रारंभ कर दिया।