Kaal Bhairav Ashtami 2018: शिव के प्रचंड आैर विकराल स्वरूप की होती है काल भैरव अष्टमी को पूजा
29 नवंबर 2018 को है काशी के कोतवाल काल भैरव अष्टमी पंडित दीपक पांडे से जानें इस पर्व के बारे में।
काशी के कोतवाल की पूजा
काशी नगरी की सुरक्षा का भार काल भैरव को सौंपा गया है इसीलिए वे काशी के कोतवाल कहलाते हैं। शिवपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की अष्टमी को उनका अवतार हुआ था। शास्त्रों के अनुसार भारत की उत्पत्ति भगवान शिव के रूद्र रूप से हुई थी। बाद में शिव के दो रूप उत्पन्न हुए प्रथम को बटुक भैरव और दूसरे को काल भैरव कहते हैं। एेसी भी मान्यता है कि बटुक भैरव भगवान का बाल रूप है और इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं। जबकि काल भैरव की उत्पत्ति एक श्राप के चलते हुर्इ इसी लिए इसे उनको शंकर का रौद्र अवतार माना जाता है। शिव के इस रूप की आराधना से भय आैर शत्रुओं से मुक्ति, आैर संकट एवम् मुकदमे आदि से छुटकारा मिलता है। काल भैरव भगवान शिव का अत्यंत भयानक और विकराल प्रचंड स्वरूप है। इस बार ये पर्व 29 नवंबर 2018 बृहस्पतिवार को है।
पूजा विधान
काल भैरव का जन्म मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष अष्टमी को प्रदोष काल में हुआ था तब से इसे भैरव अष्टमी के नाम से जाना जाता है। इसीलिए इसकी पूजा मध्याह्न व्यापिनी अष्टमी पर करनी चाहिए। इसके लिए प्रातः काल स्नान आदि से निवृत होकर के व्रत का संकल्प लेना चाहिए तथा भैरव जी के मंदिर में जा कर के उनकी पूजा करनी चाहिए। इस दिन भैरव के वाहनों कुत्ते को खिलाने का विशेष महत्व है। भैरव जी को काशी का कोतवाल माना जाता है शास्त्रों में कहा जाता है भैरव की उपासना से भूत पिशाच और काल दूर रहता है। भैरव की उपासना दुष्ट ग्रहों के प्रभाव को भी समाप्त करती है। इस दिन काल भैरव की उपासना के लिए ओम भैरवाय नमः मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। श्री काल भैरव अष्टमी के दिन रात्रि जागरण भजन कीर्तन के साथ पान के पत्ते पर लौंग और बताशा प्रज्वलित करके भैरव जी की आरती करनी चाहिए। भैरव मंदिरों में हवन, कीर्तन, पूजन, अर्चना के साथ साथ दही बड़े एवं इमरती का भोग लगाया जाता है।
शिव गण स्वरूप
शिव के अंश भैरव को दुष्टों को दण्ड देने वाला माना जाता है इसलिए इनका एक नाम दण्डपाणी भी है। मान्यता है कि शिव के रक्त से भैरव की उत्पत्ति हुई थी इसलिए उनको कालभैरव कहा जाता है। एक बार अंधकासुर ने भगवान शिव पर हमला कर दिया था तब महादेव ने उसके संहार के लिए अपने रक्त से भैरव की उत्पत्ति की थी। शिव और शक्ति दोनों की उपासना में पहले भैरव की आराधना करने के लिए कहा जाता है। कालिका पुराण में भैरव को महादेव का गण बताया गया है और नारद पुराण में कालभैरव और मां दुर्गा दोनों की पूजा इस दिन करने के लिए बताया गया है।