Move to Jagran APP

महाभारत काल से जुड़ा है महालक्ष्‍मी व्रत, पूजा के साथ पढ़ें यह कथा

भाद्रपद के शुक्लपक्ष की अष्टमी से आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक महालक्ष्‍मी का व्रत व पूजा होती है। आइए जाने धनधान्‍य बरसाने वाली मां महालक्ष्‍मी की व्रत कथा के बारे में...

By shweta.mishraEdited By: Published: Tue, 29 Aug 2017 03:11 PM (IST)Updated: Wed, 30 Aug 2017 04:35 PM (IST)
महाभारत काल से जुड़ा है महालक्ष्‍मी व्रत, पूजा के साथ पढ़ें यह कथा
महाभारत काल से जुड़ा है महालक्ष्‍मी व्रत, पूजा के साथ पढ़ें यह कथा

गजलक्ष्‍मी धन वर्षा करती: 
ह‍िंदू शास्‍त्रों के मुताबि‍क मां महालक्ष्मी की पूजा भाद्रपद के शुक्लपक्ष की अष्टमी से शुरू होती और आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तक होती है। 16 द‍िन तक चलने वाली इस पूजा में मां लक्ष्‍मी के गजलक्ष्‍मी स्‍वरूप की आराधना की जाती है। हर द‍िन पूजा में चंदन, ताल, पत्र, फूलों की माला, अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी और नारियल को आद‍ि को शाम‍िल करना जरूरी होता है। 16 द‍िन तक चलने वाली इस पूजा में पहले द‍िन से एक 16 गांठ कापीला कालवा हाथ में बांधा जाता है। मान्‍यता है क‍ि मां लक्ष्‍मी अपने भक्‍तों के जीवन से परेशान‍ियां दूर होती हैं। वह भक्‍तों की हर मुराद पूरी करती हैं। उनके घर में धन की वर्षा करती है। महालक्ष्‍मी की पूजा में कथा पढना जरूरी माना जाता है। शास्‍त्रों के मुताब‍िक इसकी कथा महाभारत काल से जुड़ी है। 

loksabha election banner

ऐरावत की पूजा शुरू हो गई: 

कहते हैं कि‍ एक बार महाभारत काल में पूरे हस्‍त‍िनापुर में महालक्ष्‍मी पर्व मनाया गया। इस उत्‍सव पर हस्‍तिनापुर की महारानी गांधारी ने पूरे नगर को शाम‍िल होने के ल‍िए आमंत्रित क‍िया था लेक‍िन कुंती को नहीं बुलाया। व‍िधान के अनुसार इसमें मिट्टी के हाथी की पूजा होनी थी। ऐसे में गांधारी के 100 कौरव पुत्रों ने म‍िट्टी लाकर महल के बीच व‍िशालकाय हाथी बनाया। जि‍ससे कि‍ सभी लोग उसकी पूजा कर सके। ऐसे में पूजा में हस्‍तिनापुर की महारानी गांधारी द्वारा न बुलाए जाने से कुंती काफी दुखी थी। ज‍िससे उनके बेटे अर्जुन से मां का दुख देखा नहीं गया। उन्‍होंने मां से कहा क‍ि वह पूजा की तैयारी करें और वह म‍िट्टी नहीं बल्‍क‍ि जीव‍ित हाथी लेकर आते हैं। कुंती के समझाने के बाद भी अर्जुन नहीं माने और स्‍वर्गलोक को प्रस्‍थान कर गए। यहां पर उन्‍होंने पि‍ता इंद्र से ऐरावत हाथी धरती पर ले जाने का प्रस्‍ताव रखा। इसके बाद उन्‍होंने हाथी को मां कुंती के सामने खड़ा कर द‍िया था। कुंती को ऐरावत हाथी की पूजा करते देख गांधारी को अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्‍होंने कुंती से क्षमा मांगी। इसके बाद से ही गजलक्ष्‍मी के ऐरावत की पूजा शुरू हो गई। 

एक सोलह शब्‍दों की कथा प्रचल‍ित: 

महालक्ष्मी व्रत की क्षेत्रीय भाषाओं के ह‍िसाब से कई कथाएं प्रचल‍ित हैं। जि‍नमें से इस महालक्ष्‍मी व्रत में एक सोलह शब्‍दों की कथा भी कही जाती है। इस सोलह बोल की कथा को कहने या फ‍िर सुनने के बाद मां लक्ष्‍मी पर फूल व चावल छ‍िड़के जाते हैं। 'अमोती दमो तीरानी, पोला पर ऊचो सो परपाटन गांव जहां के राजा मगर सेन दमयंती रानी,' कहे कहानी। सुनो हो महालक्ष्मी देवी रानी, हम से कहते तुम से सुनते सोलह बोल की कहानी॥' 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.