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खत्म हुआ खरमास मुहूर्तो का घनघोर लग्न, 1948 के बाद ऐसा योग

शादी विवाह की चिंताओं को लेकर परेशान लोग इस बार लग्न तिथियों की उपलब्धता को लेकर मगन हैं। आज 14 अप्रैल को खरमास खत्म हो रहा है और 15 से बरात का मानसून छा जाएगा। अप्रैल के दूसरे पखवारे से मई के दूसरे पखवारे तक घनघोर लग्न और बरातें होंगी।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 14 Apr 2015 10:33 AM (IST)Updated: Tue, 14 Apr 2015 12:55 PM (IST)
खत्म हुआ खरमास मुहूर्तो का घनघोर लग्न, 1948 के बाद ऐसा योग

वाराणसी। शादी विवाह की चिंताओं को लेकर परेशान लोग इस बार लग्न तिथियों की उपलब्धता को लेकर मगन हैं। आज 14 अप्रैल को खरमास खत्म हो रहा है और 15 से बरात का मानसून छा जाएगा। अप्रैल के दूसरे पखवारे से मई के दूसरे पखवारे तक घनघोर लग्न और बरातें होंगी। इन 63 दिनों में 43 लग्न मिल रही हैं।

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वास्तव में सनातन धर्म में शादी-विवाह शुभ कर्मादि के लिए खरमास वर्जित माना जाता है। जब सूर्यदेव का संचरण धनु तथा मीन राशि में होता है इसे खरमास कहा गया है। इस बार सूर्यदेव का संचरण 15 मार्च को प्रात: 7.17 पर कुंभ राशि से मीन राशि पर प्रवेश के साथ हो गया था। अब 14 अप्रैल को 3.25 बजे सूर्यदेव के मेष राशि में प्रवेश के बाद शादी-विवाह आदि शुरू हो जाएंगे।

अप्रैल में 15 तारीख से 10, मई में कुल 23 और 16 जून तक 10 विवाह मुहूर्त मिलेंगे। हालांकि मुहूर्त की दृष्टि से देखें तो 2015 में अधिकमास लग रहा है। इससे आषाढ़ मास की वृद्धि है। इसी मास में श्रीहरि क्षीर सागर में शयन के लिए चले जाएंगे अर्थात चातुर्मास लग जाएगा।

22 नवंबर को हरिप्रबोधिनी एकादशी के बाद फिर लग्न मुहूर्त मिलेगा। सब मिलाकर देखा जाए तो लग्न मुहूर्त 16 जून के बाद फिर 26 नवंबर से प्रारंभ मिलेंगे।

यह हैं शुभ तिथियां-

अप्रैल : 15, 17, 18, 21 से 23, 27 से 30 तक।

मई : एक से 10 मई, 13 से 15, 18

से 20, 24, 25, 27 से 31 मई।

जून : एक से पांच, 10, 11, 13, 15, 16 तक।

मेष संक्रांति पर स्नान दान का विधान-

ग्रहराज भगवान सूर्य का मीन से मेष राशि पर संचरण 14 को दिन में 3.25 पर होगा। प्राय: सूर्यदेव 14 अप्रैल को उत्तरायण की आधी यात्रा कर मेष राशि में इस तिथि पर प्रवेश कर जाते हैं।

ज्योतिषीय दृष्टि से 12 राशियों में सूर्य की उच्च राशि का दर्जा मेष राशि को प्राप्त है। सूर्य की 12 संक्रांतियों में भी मेष संक्रांति का महत्वपूर्ण स्थान है। जब सूर्यदेव किसी भी अधिकृत राशि को छोड़ दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे संक्रांति कहते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि संक्राति को तीर्थ जल, गंगा या पवित्र नदी आदि में स्नानादि से निवृत्त होकर हाथ में जल अक्षत लेकर भगवान के सामने संकल्पादि लेकर व्रत-दान और विधि विधान से पूजन अनुष्ठान आदि करना चाहिए। इससे पापों का क्षय होता है, सूर्यजनित दोषों का भी शमन हो जाता है।

1948 के बाद बना है ये योग-

इस बार की संक्रांति का राजा शनि और मंगल मंत्री होने से बारिश की अधिकता रहेगी। इस तरह का योग 1948 में बना था।

बैसाखी का स्नान सोमवार से शुरू हो गया है। इस दिन स्नान करने के साथ ही भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इस स्नान का भी उतना ही महत्व है, जितना की मकर संक्रांति के स्नान का। आचार्य राकेश कुमार शुक्ल ने बताया कि दोपहर एक बजकर 45 मिनट पर खरमास समाप्त हो जाएगा। इसके साथ ही लग्न कार्य शुरू हो जाएंगे। 13 मार्च के बाद अब 14 अप्रैल से शादियां शुरू हो जाएगी। अगले दो माह तक शादियों की धूम रहेगी। उन्होंने बताया कि 67 वर्षो के बाद ऐसा संयोग बना है जब शनि राजा और मंगल मंत्री बना है। इससे पहले यह योग 1948 में बना था। उन्होंने बताया कि शनि के राजा और मंगल के मंत्री होने से इस वर्ष बरसात की अधिकता रहेगी।

विष्णु प्रिय माह है बैसाख-

न माधवसमो मासो न कृतेन युगं समम् । न च वेदसमं शास्ञं न तीर्थं गंगा समम् ।

बैसाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं है, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है। वैशाख मास अपने कतिपय विशेषता के कारण उत्तम मास है। बैसाख मास ब्रह्मा जी ने सब मासों में उत्तम सिद्ध किया है। वह माता की भांति सब जीवों को सदा अभीष्ट वस्तु प्रदान करने वाला है। धर्म, यज्ञ, क्रिया और तपस्या का सार है। सम्पूर्ण देवताओं द्वारा पूजित है। जैसे विद्याओं में वेद - विद्या, मंत्रों में प्रणव, वृक्षों में कल्पवृक्ष, प्रिय वस्तुओं में प्राण, नदियों में गंगा जी को उत्तम माना गया है वैसे ही मासों में बैसाख है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला इसके समान दूसरा कोई मास नहीं है।

जो बैसाख मास में सूर्योदय से पहले स्नान करता है, उसे भगवान विष्णु निरन्तर प्रीति करते हैं। बैसाख सर्वश्रेष्ठ मास है और शेषशायी भगवान विष्णु को सदा प्रिय है। सब दानों से जो पुण्य होता है और सब तीर्थों में जो फल होता है, उसी को मनुष्य बैसाख मास में केवल जलदान करके प्राप्त कर लेता है। जो जलदान में असमर्थ है, ऐसे ऐश्वर्य की अभिलाषा रखने वाले पुरुष को उचित है कि वह दूसरे को जलदान का महत्व समझाए। यह सब दानों से बढ़कर हितकारी है। जो मनुष्य बैसाख मास में रास्ते में यात्रियों के लिए प्याऊ लगाता है, वह विष्णु लोक में प्रतिष्ठित

होता है।

कृषि प्रधान भारत में बैसाखी का पर्व फसल की सफलता की खुशी में उल्लास से मनाया जाता है। विशेषकर पंजाब में ढोल की थाप और भंगड़े-गिद्दे के रंग इस दौरान दिलों को इंद्रधनुषी उमंग से भर देते हैं। खुशहाली और समृद्धि के इस पर्व के साथ ही जुड़ा है खालसा की स्थापना का महत्व। यही नहीं सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ ही इसे सौर वर्ष की शुरुआत भी माना जाता है।


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