Kanwar Yatra 2020: 6 जुलाई को शुरू हो रही है कांवड़ यात्रा, जानें- इसका महत्व
Kanwar Yatra 2020 कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ियां बोल बम का उद्घोष करते हैं। जबकि कांवड़ियां एक दूसरे को नाम से नहीं बल्कि बम कहकर पुकारते हैं।
दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Kanwar Yatra 2020: 5 जुलाई को आषाढ़ पूर्णिमा है। इसके अगले दिन से सावन महीने की शुरुआत हो रही है। यह महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। इस महीने में कांवड़ यात्रा का विधान है। इसके अंतर्गत भगवान शिव को गंगाजल से जलाभिषेक किया जाता है। इसके लिए वह निकटतम के गंगा घाट से जल भरकर बाबा के दरबार पहुंचकर उन्हें जल चढ़ाते हैं। हालांकि, कोरोना वायरस महामारी के चलते कांवड़ यात्रा पर संशय के बादल है। आइए, कांवड़ यात्रा के बारे में विस्तार से जानते हैं-
कांवड़ यात्रा
चिरकाल से कांवड़ यात्रा का विधान है। धार्मिक मान्यता है कि जब अनंत काल में क्षीर सागर में समुद्र मंथन किया गया तो इस मंथन से विष निकला। इस विष को भगवान शिव ने विष को धारण कर लिया। जब भगवान शिव विष धारण कर रहे थे, उस समय माता पार्वती ने उनके गले को दोनों हाथों से जकड़ लिया था, ताकि विष गले से नीचे उतर पाए, जिससे विष भगवान शिव के गले में ही अटक गया।
इससे उन्हें गले में पीड़ा होने लगी थी। इस पीड़ा को दूर करने के लिए देवताओं और दानवों ने गंगाजल लाकर दिया था, जिसे बाबा ने ग्रहण किया था। इससे पीड़ा कम हुई थी। इसलिए सावन के महीने में भगवान शिव को गंगाजल अर्पित किया जाता है।
कांवड़ कितने तरह के होते हैं
बैठी कांवड़-इस श्रेणी के कांवड़ियां अपने कंधे पर कांवड़ रखते हैं और पैदल यात्रा कर बाबा के दरबार पहुंचते हैं। ये कांवड़ को धरती पर रख सकते हैं।
डाक कांवड़-इस श्रेणी के कांवड़ियां कंधे पर कांवड़ रखते हैं, लेकिन ये पैदल यात्रा नहीं करते हैं, बल्कि दौड़कर बाबा के दरबार पहुंचते हैं।
खड़ी कांवड़-इस श्रेणी के कांवड़ियां कांवड़ को धरती पर नहीं रख सकते हैं और न ही कांवड़ को कहीं लटका सकते हैं, बल्कि इसे साथ में लेकर ही रहना होता है। अगर बम आराम करते हैं तो उस समय कोई और बम कांवड़ पकड़ता है।
झूला कांवड़- इस कांवड़ यात्रा में झूला बनाकर कांवड़ ले जाया जाता है। कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ियां 'बोल बम' का उद्घोष करते हैं। जबकि कांवड़ियां एक दूसरे को नाम से नहीं बल्कि बम कहकर पुकारते हैं।