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Kalashtami 2020: आज है कालाष्टमी, जानें भैरव देव की पूजा का मुहूर्त, विधि एवं महत्व

Kalashtami 2020 अगर आप किसी विशेष प्रयोजन से काल भैरव देव की पूजा करना चाहते हैं तो रात में 9 बजकर 11 मिनट से लेकर रात के 10 बजकर 55 मिनट के बीच पूजा करें।

By Umanath SinghEdited By: Published: Wed, 13 May 2020 09:00 PM (IST)Updated: Thu, 14 May 2020 06:58 AM (IST)
Kalashtami 2020: आज है कालाष्टमी, जानें भैरव देव की पूजा का मुहूर्त, विधि एवं  महत्व
Kalashtami 2020: आज है कालाष्टमी, जानें भैरव देव की पूजा का मुहूर्त, विधि एवं महत्व

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Kalashtami 2020: हिंदी पंचांग के अनुसार 14 मई को कालाष्टमी है। इस दिन भगवान शिव जी के क्रुद्ध स्वरूप काल भैरव देव की पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही इस दिन मां आदि शक्ति की भी पूजा करने का विधान है। अघोरी समाज इस पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाता है। ऐसी मान्यता है कि तांत्रिक साधक जादू-टोने की सिद्धि कालाष्टमी की रात्रि में ही करते हैं। इस दिन कालाष्टमी का व्रत विधि पूर्वक करने से व्रती के जीवन से दुःख, दरिद्र, काल और संकट दूर हो जाते हैं।  

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कालाष्टमी शुभ मुहूर्त

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, काल भैरव देव की पूजा और उपासना रात्रि में की जाती है। हालांकि, यह मुहूर्त तांत्रिक साधकों पर लागू होता है। जबकि काल भैरव देव के उपासकों के लिए शुभ मुहूर्त दिन भर है। अगर आप किसी विशेष प्रयोजन से काल भैरव देव की पूजा करना चाहते हैं तो रात में 9 बजकर 11 मिनट से लेकर रात के 10 बजकर 55 मिनट के बीच पूजा करें। आपकी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होगी। 

कालाष्टमी महत्व 

इस दिन शिवालय और मठों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसमें भगवान शिव जी के स्वरूप काल भैरव देव का आह्वान किया जाता है। खासकर उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर में विशेष पूजा-आराधना की जाती हैं। साथ ही महाभस्म आरती की जाती है। जबकि शिव जी के उपासक अपने घरों में ही उनकी पूजा कर उनसे यश, कीर्ति, सुख और समृद्धि की कामना करते हैं। 

कालाष्टमी पूजा विधि 

इस दिन प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ-सफाई करें। इसके बाद स्नान-ध्यान कर व्रत संकल्प लें। इसके लिए पवित्र जल से आमचन करें। अब सर्वप्रथम सूर्य देव का जलाभिषेक करें। इसके पश्चात भगवान शिव जी की पूजा जथा शक्ति तथा भक्ति के भाव से करें। आप भगवान शिव जी के स्वरूप काल भैरव देव की पूजा पंचामृत, दूध, दही, बिल्व पत्र, धतूरा, फल, फूल, धूप-दीप आदि से करें। अंत में आरती अर्चना कर अपनी मनोकामनाएं प्रभु से जरूर कहें। दिन में उपवास रखें। जबकि शाम में आरती अर्चना के बाद फलाहार करें। इसके अगले दिन नित्य दिनों की तरह पूजा पाठ के बाद व्रत खोलें।


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