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Jivitputrika Or Jitiya Vrat 2019 Puja Vidhi: संतान के दीर्घायु के लिए रखते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत, जानें तिथि, पूजा विधि और महत्व

Jitiya vrat 2019 Jivitputrika Vrat 2019 Puja Vidhi आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत रखते हैं। यह व्रत 22 सितंबर को है।

By kartikey.tiwariEdited By: Published: Tue, 17 Sep 2019 01:22 PM (IST)Updated: Sat, 21 Sep 2019 05:00 PM (IST)
Jivitputrika Or Jitiya Vrat 2019 Puja Vidhi: संतान के दीर्घायु के लिए रखते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत, जानें तिथि, पूजा विधि और महत्व
Jivitputrika Or Jitiya Vrat 2019 Puja Vidhi: संतान के दीर्घायु के लिए रखते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत, जानें तिथि, पूजा विधि और महत्व

Jivitputrika Vrat 2019 Or Jitiya Vrat 2019 Puja Vidhi: आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पुत्र के दीर्घ, आरोग्य और सुखमय जीवन के लिए जीवित्पुत्रिका या जितिया या जीमूतवाहन का व्रत रखा जाता है। यह व्रत विशेष तौर पर महिलाएं ही रखती हैं। इस वर्ष यह व्रत 22 सितंबर दिन रविवार को है। अपने पुत्र-पौत्रों की लम्बी आयु एवं बेहतर स्वास्थ्य की कामना से महिलाओं को विशेषकर सधवा को इस व्रत का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए।

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कब रखें जीवित्पुत्रिका व्रत

प्रदोष काल व्यापिनी अष्टमी को जीमूतवाहन का पूजन होता है। इस व्रत के लिए यह भी आवश्यक है कि पूर्वाह्न काल में पारण हेतु नवमी तिथि प्राप्त हो। इस वर्ष अष्टमी रविवार दिनांक 22 सितंबर को दिन में 2:10 तक है, इसीलिए पूर्व दिन सप्तमी को प्रदोष व्यापिनी अष्टमी में व्रत करने पर पारण करने के लिए दूसरे दिन पूर्वाह्न में नवमी प्राप्त नहीं हो रही है।

अत: उदया अष्टमी रविवार को उपवास पूर्वक प्रदोष काल में ही जीमूतवाहन की पूजा करके नवमी में सोमवार को प्रात: पारण करना चाहिए। इस वर्ष 22 सितंबर को जीवित्पुत्रिका का उपवास तथा प्रदोष काल में (शाम 4:28 से रात्रि 7:32 तक) पूजन होगा। दिनांक 23 सितंबर सोमवार को व्रत का पारण होगा।

जीवित्पुत्रिका व्रत एवं पूजा विधि

स्नान से पवित्र होकर संकल्प के साथ व्रती प्रदोष काल में (शाम 4:28 से रात्रि 7:32 तक) गाय के गोबर से पूजा स्थल को लीपकर स्वच्छ कर दें। साथ ही एक छोटा-सा तालाब भी वहां बना लें।

तालाब के निकट एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ा कर दें। शालिवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की कुशनिर्मित मूर्ति जल (या मिट्टी) के पात्र में स्थापित कर दें।

फिर उन्हें पीली और लाल रुई से अलंकृत करें तथा धूप, दीप, अक्षत, फूल, माला एवं विविध प्रकार के नैवेद्यों से पूजन करें। मिट्टी तथा गाय के गोबर से मादा चील और मादा सियार की मूर्ति बनाएं। उन दोनों के मस्तकों पर लाल सिन्दूर लगा दें।

अपने वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए उपवास कर बांस के पत्रों से पूजन करना चाहिए। इसके पश्चात जीवित्पुत्रिका व्रत एवं महात्म्य की कथा का श्रवण करना चाहिए।

— ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र


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