Jeevaputrika Vrat Fast Vidhi: पुत्र रक्षा के लिए कैसे करें जितिया व्रत, जानें व्रत एवं पूजा की विधि
Jeevaputrika Vrat Fast Vidhi जीवत्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत स्त्रियां सन्तान-रक्षा एवं उनकी दीर्घायु की कामना से करती हैं।
Jeevaputrika Vrat Fast Vidhi: जीवत्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत स्त्रियां सन्तान-रक्षा एवं उनकी दीर्घायु की कामना से करती हैं। आश्विन कृष्ण अष्टमी को महालक्ष्मी के निमित्त किए गए 16 दिवसीय व्रत-पूजन की पूर्णाहुति भी होती है। इस वर्ष जीवत्पुत्रिका व्रत दिनांक-10 सितम्बर दिन गुरुवार को होगा। अष्टमी बुधवार की रात्रि में 09 बजकर 45 मिनट पर लगेगी, जो गुरुवार की रात्रि 10 बजकर 47 मिनट तक रहेगी। शुक्रवार को प्रातः नवमी श्राद्ध-पूजन के बाद पारण का समय है। मातृनवमी को सौभाग्यवती स्त्रियों की श्राद्ध होती है। इस अखण्ड व्रती पर्व को जीउतिया भी कहते हैं। विशेषत: यह महालक्ष्मी का व्रत-पूजन होता है। यह अखण्ड एवं निर्जल व्रत होता है, इसीलिए इस व्रत-पर्व के लिए विख्यात है कि अखण्ड-निर्जल (खरजिउतिया) रहने वाली माताओं की सन्तान समस्त सकटों से दूर रहती हैं।
ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट बताते हैं कि प्रातःकाल से लेकर जबतक नवमी नहीं लग जाती, तब तक अखण्ड व्रत करते हुए अष्टमी के अपराह्न (सायंकाल) में नदी या सरोवर के तट पर एकत्रित होकर अपनी सामर्थ्य के अनुसार स्वर्ण, चांदी अथवा धागे की जीउतिया को श्रद्धापूर्वक सामर्थ्य अनुसार, धूप, दीप, गन्ध, नैवेद्य, पुष्प एवं फल को अर्पित करने के बाद पूजनोपरान्त धारण करती हैं।
जीउतिया पूजन में राजा जीमूतवाहन की पूजा-कथा का विशेष महत्व है। सियार एवं चिल्हौर की लोक कथा प्रचलित है। कथा श्रवण के बाद आरती एवं प्रार्थना भी पूजा का अंग है। इस व्रत में सबसे विशेष बात यह है कि महिलाएं समूह में बैठकर स्वयं पूजा करती हैं।
जितिया पूजा का मुहूर्त
पूजन का शुभ मुहूर्त शाम को 03 बजकर 12 मिनट से 06 बजकर 30 मिनट तक उत्तम है।
विशेष-निर्णय
कभी-कभी ऐसी घटना भी हो जाती है कि घर-परिवार में वृद्धि अर्थात् सन्तान का जन्म जीउतिया के चार-पाँच दिन पूर्व हो जाता है, जिससे व्रत-पूजन में संशय की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में शास्त्रोक्त है कि घर में सन्तान के जन्म से लेकर उसके बारहवें दिन (बरही) तक वृद्धि-शौच के कारण केवल व्रत रहा जा सकता है, स्वयम् पूजन करना वर्जित है। इस परिस्थिति में किसी अन्य से पूजन करा देने की व्यवस्था है।
शास्त्र में पूजन-स्थल के दर्शन का नहीं, स्पर्श का दोष कहा गया है। पूजन-स्थल से साढ़े नौ हाथ की दूरी से दर्शन कर कथा-श्रवण का शास्त्रोक्त विधान है। पुण्य परम्परा बाधित न हो इसलिए व्रत करना चाहिए।