नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Jaya Ekadashi 2023, Purusha Suktam in Hindi: कल अर्थात 01 फरवरी 2023 के दिन माघ मास का अंतिम और महत्वपूर्ण जया एकादशी व्रत रखा जाएगा। शास्त्रों में एकादशी तिथि को प्रधान तिथि बताया गया है। मान्यता है कि जया एकादशी के दिन पर भगवान विष्णु की उपासना करने से भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है और पुण्य के समान फल की प्राप्ति होती है। जया एकादशी पर भगवान विष्णु की उपासना के साथ-साथ मंत्रोच्चारण को भी बहुत फलदाई माना जाता है। इस दिन साधक को भगवान विष्णु की प्रिय स्तुति पुरुष सूक्तम का पाठ अवश्य करना चाहिए। मान्यता है कि इस स्तुति का पाठ करने से व्यक्ति सभी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त कर लेता है।
जया एकादशी पूजा महत्व (Jaya Ekadashi 2023 Puja Importance)
हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत को अत्यंत फलदाई माना जाता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति एकादशी व्रत का पालन करता है उसे पूर्व जन्म और इस जन्म में किए गए पापों से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही विधिपूर्वक इस व्रत का पालन करने से पिशाच या प्रेत योनि का भय भी दूर हो जाता है। शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि जया एकादशी पर किए गए दान से महायज्ञ के समान फल मिलता है।
पुरुष सूक्तम (Jaya Ekadashi 2023 Purusha Suktam Lyrics)
हरि ॐ! सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् ।
स भूमिं सर्वतः स्पृत्वाऽत्यतिष्ठद्दशाङगुलम् ।।
पुरुषऽएवेदं सर्वं यद् भूतं यच्च भाव्यम्।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ।।
एतावानस्य महिमातो ज्यायां श्च पुरुषः।
पादोઽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ।।
त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहाभवत्पुनः।
ततो विष्वङ व्यक्रामत्साशनानशनऽअभि ।।
ततो विराडजायत विराजोऽअधि पूरुषः।
स जातोऽअत्यरिच्यत पश्चाद् भूमिमथो पुरः।।
तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः सम्भृतं पृषदाज्यम्।
पशूं स्तां श्चक्रे वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च ये ।।
तस्माद्यज्ञात् सर्वहुतऽऋचः सामानि जज्ञिरे।
छन्दां सि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत ।।
तस्मादश्वाऽअजायन्त ये के चोभयादतः।
गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाताऽअजावयः ।।
तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रतः।
तेन देवाऽअयजन्त साध्याऽऋषयश्च ये ।।
यत्पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन्।
मुखं किमस्यासीत् किं बाहू किमूरू पादाऽउच्येते ।।
ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद् भ्यां शूद्रोऽअजायत ।।
चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत।
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादिग्निरजायत ।।
यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत।
वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्मऽइध्मः शरद्धविः।।
सप्तास्यासन् परिधयस्त्रिः सप्त समिधः कृताः।
देवा यद्यज्ञं तन्वानाऽअबध्नन् पुरुषं पशुम् ।।
यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ।।
ॐ शान्तिः ! शान्तिः ! शान्तिः !
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