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Indira Ekadashi 2021 Katha: इंदिरा एकादशी पर जरूर करें व्रत कथा का पाठ, मिलता है वाजपेय यज्ञ का फल

Indira Ekadashi 2021 पितर पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत और पूजन के साथ व्रत कथा का पाठ करना वाजपेय यज्ञ के समान फल प्रदान करता है।

By Jeetesh KumarEdited By: Published: Mon, 27 Sep 2021 12:12 PM (IST)Updated: Sat, 02 Oct 2021 08:21 AM (IST)
Indira Ekadashi 2021 Katha: इंदिरा एकादशी पर जरूर करें व्रत कथा का पाठ, मिलता है वाजपेय यज्ञ का फल
इंदिरा एकादशी पर जरूर करें व्रत कथा का पाठ, मिलता है वाजपेय यज्ञ का फल

Indira Ekadashi 2021: पितर पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इंदिरा एकादशी का व्रत विशेष रूप से पितरों की आत्मा की शांति के लिए रखा जाता है। इस साल इंदिरा एकादशी का व्रत 02 अक्टूबर को रखा जाएगा। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन विधि पूर्वक व्रत रखने तथा पितरों के निमित्त श्राद्ध और दान करने से पितरों को अधोगति से मुक्ति मिलती है। इस दिन व्रत और पूजन के साथ व्रत कथा का पाठ करना वाजपेय यज्ञ के समान फल प्रदान करता है। इसकी व्रत कथा का वर्णन महाभारत में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने किया है। आइए जानते हैं इंदिरा एकादशी की व्रत कथा....

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इंदिरा एकादशी की व्रत कथा

सतयुग में इंद्रसेन नाम के एक राजा माहिष्मति नामक क्षेत्र में शासन करते थे। इंद्रसेन परम् विष्णु भक्त और धर्मपरायण राजा थे और सुचारू रूप से राज-काज कर रहे थे। एक दिन आचानक देवर्षि नारद का उनकी राज सभा में आगमन हुआ। राजा ने देवर्षि नारद का स्वागत सत्कार कर उनके आगमन का कारण पूछा। नारद जी ने बताया कि कुछ दिन पूर्व वो यमलोक गए थे वहां पर उनकी भेंट राजा इंद्रसेन के पिता से हुई। राजन आपके पिता ने आपके लिए संदेशा भेजा है। उन्होंने कहा कि जीवन काल में एकादशी का व्रत भंग हो जाने के कारण उन्हें अभी तक मुक्ति नहीं मिली है और उन्हें यमलोक में ही रहना पड़ रहा है। मेरे पुत्र और संतति से कहिएगा कि यदि वो अश्विन कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखें तो उसके भाग से मुझे मुक्ति मिल जाएगी।

इंदिरा एकादशी का व्रत और पितरों को मुक्ति

नारद मुनि की बात सुन कर राजा इंद्रसेन ने व्रत का विधान पूछा और व्रत करने का संकल्प लिया। राजा ने पितर पक्ष की एकादशी तिथि पर विधि पूर्वक व्रत का पालन किया। पितरों के निमित्त मौन रह कर ब्राह्मण भोज और गौ दान किया। इस प्रकार राजा इंद्रसेन के व्रत और पूजन के भाग से उनके पिता को यमलोक से मुक्ति और बैकुंठ लोक की प्राप्ति हुई। उस दिन से ही इस व्रत का नाम इंदिरा एकादशी पड़ गया। पितर पक्ष में पड़ने वाली इस इंदिरा एकादशी के व्रत से पितरों को अधोगति से मुक्ति मिलती है और आपको उनका आशीर्वाद।

डिस्क्लेमर

''इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।''

 


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