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पितृ प्रसन्न रहते हैं, तो फिर, जीवन में, किसी चीज़ की कमी नहीं रहती

व्यक्ति को पितरों का आभार मानना चाहिए तथा सोलह दिन तर्पण करना चाहिए। हमारे कई ऐसे पितर होते हैं, जिनके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं होती है। यह भी पता नहीं होता कि किस दिन अथवा किस लोक में वे गए हैं। श्रद्धा से ही पितर प्रसन्ना होते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 01 Oct 2015 12:09 PM (IST)Updated: Thu, 01 Oct 2015 12:59 PM (IST)
पितृ प्रसन्न रहते हैं, तो फिर, जीवन में, किसी चीज़ की कमी नहीं रहती

व्यक्ति को पितरों का आभार मानना चाहिए तथा सोलह दिन तर्पण करना चाहिए। हमारे कई ऐसे पितर होते हैं, जिनके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं होती है। यह भी पता नहीं होता कि किस दिन अथवा किस लोक में वे गए हैं। श्रद्धा से ही पितर प्रसन्ना होते हैं। उनकी प्रसन्नाता के लिए तर्पण करना चाहिए।

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दिल्ली: पितरों के प्रति श्रद्धा अर्पित करने का भाव ही श्राद्ध है। वैसे तो हर अमावस्या और पूर्णिमा को, पितरों के लिये श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। लेकिन आश्विन शुक्ल पक्ष के 15 दिन, श्राद्ध के लिये विशेष माने गये हैं। इन 15 दिनों में अगर पितृ प्रसन्न रहते हैं, तो फिर, जीवन में, किसी चीज़ की कमी नहीं रहती। कई बार, ग़लत तरीके से किये गये श्राद्ध से, पितृ नाराज़ होकर शाप दे देते हैं। इसलिये श्राद्ध में इन 54 बातों का खास ध्यान रखना चाहिये।

श्राद्ध की मुख्य प्रक्रिया

तर्पण में दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल से पितरों को तृप्त किया जाता है।

ब्राह्णणों को भोजन और पिण्ड दान से, पितरों को भोजन दिया जाता है।

वस्त्रदान से पितरों तक वस्त्र पहुंचाया जाता है।

यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है। श्राद्ध का फल, दक्षिणा देने पर ही मिलता है।

श्राद्ध के लिये कौन सा पहर श्रेष्ठ?

श्राद्ध के लिये दोपहर का कुतुप और रौहिण मुहूर्त श्रेष्ठ है।

कुतप काल में किये गये दान का अक्षय फल मिलता है।

पूर्वजों का तर्पण, हर पूर्णिमा और अमावस्या पर करें।

श्राद्ध में जल से तर्पण ज़रूरी क्यों?

श्राद्ध के 15 दिनों में, कम से कम जल से तर्पण ज़रूर करें।

चंद्रलोक के ऊपर और सूर्यलोक के पास पितृलोक होने से, वहां पानी की कमी है।

जल के तर्पण से, पितरों की प्यास बुझती है वरना पितृ प्यासे रहते हैं।

श्राद्ध के लिये योग्य कौन?

-पिता का श्राद्ध पुत्र करता है। पुत्र के न होने पर, पत्नी को श्राद्ध करना चाहिये।

-पत्नी न होने पर, सगा भाई श्राद्ध कर सकता है।

-एक से ज्य़ादा पुत्र होने पर, बड़े पुत्र को श्राद्ध करना चाहिये।

श्राद्ध कब न करें?

कभी भी रात में श्राद्ध न करें, क्योंकि रात्रि राक्षसी का समय है।

दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं किया जाता है।

श्राद्ध का भोजन कैसा हो?

जौ, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ है।

ज़्य़ादा पकवान पितरों की पसंद के होने चाहिये।

गंगाजल, दूध, शहद, कुश और तिल सबसे ज्यादा ज़रूरी है।

तिल ज़्यादा होने से उसका फल अक्षय होता है।

तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं।

श्राद्ध के भोजन में क्या न पकायें?

चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा

कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी

बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी

खराब अन्न, फल और मेवे

ब्राह्णणों का आसन कैसा हो?

रेशमी, ऊनी, लकड़ी, कुश जैसे आसन पर भी बिठायें।

लोहे के आसन पर ब्राह्मणों को कभी न बिठायें।

ब्राह्णण भोजन का बर्तन कैसा हो?

सोने, चांदी, कांसे और तांबे के बर्तन भोजन के लिये सर्वोत्तम हैं।

चांदी के बर्तन में तर्पण करने से राक्षसों का नाश होता है।

पितृ, चांदी के बर्तन से किये तर्पण से तृप्त होते हैं।

चांदी के बर्तन में भोजन कराने से पुण्य अक्षय होता है।

श्राद्ध और तर्पण में लोहे और स्टील के बर्तन का प्रयोग न करें।

केले के पत्ते पर श्राद्ध का भोजन नहीं कराना चाहिये।

ब्राह्णणों को भोजन कैसे करायें?

श्राद्ध तिथि पर भोजन के लिये, ब्राह्मणों को पहले से आमंत्रित करें।

दक्षिण दिशा में बिठायें, क्योंकि दक्षिण में पितरों का वास होता है।

हाथ में जल, अक्षत, फूल और तिल लेकर संकल्प करायें।

कुत्ते,गाय,कौए,चींटी और देवता को भोजन कराने के बाद, ब्राह्मणों को भोजन करायें।

भोजन दोनों हाथों से परोसें, एक हाथ से परोसा भोजन, राक्षस छीन लेते हैं।

बिना ब्राह्मण भोज के, पितृ भोजन नहीं करते और शाप देकर लौट जाते हैं।

ब्राह्मणों को तिलक लगाकर कपड़े, अनाज और दक्षिणा देकर आशीर्वाद लें।

भोजन कराने के बाद, ब्राह्मणों को द्वार तक छोड़ें।

ब्राह्मणों के साथ पितरों की भी विदाई होती हैं।

ब्राह्मण भोजन के बाद , स्वयं और रिश्तेदारों को भोजन करायें।

श्राद्ध में कोई भिक्षा मांगे, तो आदर से उसे भोजन करायें।

बहन, दामाद, और भानजे को भोजन कराये बिना, पितर भोजन नहीं करते।

कुत्ते और कौए का भोजन, कुत्ते और कौए को ही खिलायें।

देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं।

कहां श्राद्ध करना चाहिये?

दूसरे के घर रहकर श्राद्ध न करें। मज़बूरी हो तो किराया देकर निवास करें।

वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ और मंदिर दूसरे की भूमि नहीं इसलिये यहां श्राद्ध करें।

श्राद्ध में कुशा के प्रयोग से, श्राद्ध राक्षसों की दृष्टि से बच जाता है।

तुलसी चढ़ाकर पिंड की पूजा करने से पितृ प्रलयकाल तक प्रसन्न रहते हैं।

तुलसी चढ़ाने से पितृ, गरूड़ पर सवार होकर विष्णु लोक चले जाते हैं।


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