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Durga Puja 2022: मां भगवती की आरती से पहले जरूर करें 'न मत्रं नो यन्त्रं' स्तुति का पाठ

Durga Puja 2022 आज अर्थात नवरात्र पर्व के अष्टमी तिथि के दिन मां दुर्गा के सिद्ध स्वरूप माता महागौरी की विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दिन माता की पूजा करने से भक्तों को विशेष लाभ होता है।

By Shantanoo MishraEdited By: Published: Mon, 03 Oct 2022 10:39 AM (IST)Updated: Mon, 03 Oct 2022 10:39 AM (IST)
Durga Puja 2022: मां भगवती की आरती से पहले जरूर करें 'न मत्रं नो यन्त्रं' स्तुति का पाठ
Durga Puja 2022: दुर्गा पूजा के दिन मां दुर्गा की स्तुति करने से माता रानी प्रसन्न होती हैं।

नई दिल्ली, Durga Puja 2022, Durga Stuti: आज देशभर में दुर्गाष्टमी पर्व को बड़े ही धूम-धाम से मनाया जा रहा है। नवरात्र महापर्व के अष्टमी तिथि के दिन माता महागौरी की विधि-विधान से पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस मां दुर्गा की विशेष पूजा करने से भक्तों के सभी दुःख दूर हो जाते हैं और माता रानी उनकी सभी समस्याएं हर लेती हैं। दुर्गाष्टमी पर्व के दिन मां दुर्गा को मंत्रोचारण, उनके प्रिय भोग और विशेष आरती से प्रसन्न किया जाता है। शास्त्रों में मां दुर्गा को समर्पित कई मंत्र और स्तोत्र वर्णित किए गए हैं, जिनका पाठ करने से माता प्रसन्न होती हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। इसी क्रम में देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम् (Na Mantram No Yantram Lyrics) का पाठ करने से भी भक्तों को विशेष लाभ होता है। व्यक्ति को इस स्तोत्र का पाठ महा आरती से पहले जरूर करना चाहिए।

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देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम् (Na Mantram No Yantram Stotram)

न मत्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो, न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः ।

न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं, परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ।।१।।

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया, विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् ।

तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे, कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ।।२।।

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः, परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः ।

मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे, कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ।।३।।

जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता, न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।

तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे, कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ।।४।।

परित्यक्ता देवा विविधविधसेवाकुलतया, मया पञ्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि ।

इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता, निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम् ।।५।।

श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा, निरातङ्को रङ्को विहरति चिरं कोटिकनकैः ।

तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं, जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ ।।६।।

चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो, जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपतिः ।

कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं, भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ।।७।।

न मोक्षस्याकाङ्क्षा भवविभववाञ्छापि च न मे, न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः ।

अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै, मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपतः ।।८।।

नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः, किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभिः ।

श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे, धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव ।।९।।

आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं, करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि ।

नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः, क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति ।।१०।।

जगदम्ब विचित्रमत्र किं, परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि ।

अपराधपरम्परापरं, न हि माता समुपेक्षते सुतम् ।।११।।

मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि, एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु ।।१२।।

डिसक्लेमर

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