Bhaum Pradosh Vrat 2020: आज भौम प्रदोष व्रत पर बन रहा विशेष संयोग, जानें व्रत का महत्व और कथा
Bhaum Pradosh Vrat 2020 आज के दिन कई लोग इस व्रत को करते हैं। जो प्रदोष व्रत मंगलवार को पड़ता है उसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाता है।
Bhaum Pradosh Vrat 2020: आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। इस दिन प्रदोष व्रत रखा जाता है। शिवजी और माता पार्वती की पूजा भी जाती है। आज के दिन कई लोग इस व्रत को करते हैं। जो प्रदोष व्रत मंगलवार को पड़ता है उसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाता है। ज्योतिषाचार्य पं. दयानंद शास्त्री ने बताया कि इस बार भौम प्रदोष व्रत के साथ ही बेहद विशेष संयोग भी पड़ रहा है। चलिए पढ़ते हैं इस संयोग के बारे में।
भौम प्रदोष व्रत पर बन रहा विशेष संयोग:
इस बार इस व्रत पर एक विशेष संयोग बना है। यह व्रत त्रयोदशी तिथि को आता है औऱयह तिथि इस बार मंगलवार यानी आज है। त्रयोदशी के दिन से ही चतुर्दशी तिथि भी लग रही है। ऐसे में यह बहुत ही विशेष संयोग माना जा रहा है। दरअसल, हर महीने की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। इस दिन शिवजी का व्रत किया जाता है। त्रयोदशी तिथि पर ही चतुर्दशी का लग जाना धार्मिक दृष्टि से बेहद खास माना जाता है। ऐसे में यह व्रत इस बार विशेष महत्व रखता है। मंगल प्रदोष या भौम प्रदोष के दिन कोई व्यक्ति अगर हनुमान चालीसा पढ़ता है तो उसका विशेष फल प्राप्त होता है।
भौम प्रदोष व्रत का महत्व:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, त्रयोदशी के दिन व्रत करने से माता पार्वती और महादेव अपने भक्तों की सभी मनोकामना पूरी करते हैं। शिव भक्तों में भौम प्रदोष व्रत का महत्व काफी ज्यादा है। इस व्रत को करने से वही फल प्राप्त होता है जितना हजारों यज्ञों को करने से होता है। इससे मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। इससे दरिद्रता का नाश होता है। यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए भी फलदायक है। अगर कोई व्यक्ति संतान की इच्छा रखता है तो उसे यह व्रत जरूर करना चाहिए।
भौम प्रदोष व्रत से जुड़ी कथा:
वैसे तो इस व्रत से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक कथा के अनुसार, एक गांव में एक ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ रहती थी। वह बेहद गरीब थी। वो हमेशा प्रदोष व्रत करती थी। वो अपने बेटे के साथ रोज भीख मांगती थी। एक दिन रास्ते में इसे एक राजकुमार घायल अवस्था में मिला जिसका नाम विदर्भ था। उस राजकुमार पर पड़ोसी राज्य ने आक्रमण कर दिया था। साथ ही उसका राज्य भी हड़प लिया था। वहीं, उसे बीमार बना दिया था। ब्राह्मणी ने उसकी हालत देखी और उसे घर ले आई। ब्राह्मणी ने उसकी खूब सेवा की। एक दिन वो राजकुमार ठीक हो गया। कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों को लेकर देव मंदिर गई। वहां उसकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को विदर्भ के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि यह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है। राजा युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता की भी अकाल मृत्यु हो गई थी। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने के लिए कहा। इसके बाद से ही ब्राह्मणी ने अपने दोनों बालकों के साथ प्रदोष व्रत करना शुरू किया। कुछ समय बाद उसकी शादी एक गंधर्व पुत्री से हो गयी। गंधर्व की सहायता से राजकुमार विदर्भ ने अपना राज्य फिर से हासिल कर लिया। राजकुमार ने ब्राह्मणी के बेटे को मंत्री बना लिया। इस तरह प्रदोष व्रत के फल से न ब्राह्मणी को गरीबी से मुक्ति दिलाई और राजकुमार को भी उसका खोया राज्य वापस कर दिया।