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Ashadha Amavasya 2020: आज है आषाढ़ अमावस्या, जानें- शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व

Ashadha Amavasya 2020 धार्मिक ग्रंथों में सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के समय पूजा पाठ और धार्मिक कार्य करने की मनाही है क्योंकि इस समय में राहु और केतु का प्रकोप रहता है।

By Umanath SinghEdited By: Published: Sun, 21 Jun 2020 06:00 AM (IST)Updated: Sun, 21 Jun 2020 06:00 AM (IST)
Ashadha Amavasya 2020: आज है आषाढ़ अमावस्या, जानें- शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व
Ashadha Amavasya 2020: आज है आषाढ़ अमावस्या, जानें- शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व

Ashadha Amavasya 2020: दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। हिंदी पंचांग के अनुसार, हर माह में कृष्ण पक्ष की पाक्षिक यानी चतुर्दशी के एक दिन बाद अमावस्या पड़ती है। इस दिन चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता है। 21 जून को आषाढ़ अमावस्या है। हालांकि, यह धार्मिक दृष्टिकोण से शुभ नहीं है क्योंकि इस दिन सूर्य दिन ग्रहण पड़ने वाला है। इस दौरान राहु और केतु का विशेष प्रभाव पृथ्वी पर पड़ता है। साथ ही यह रविवार को पड़ रही है। इसलिए इसके परिणाम शुभकारी नहीं रहने वाले हैं।

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धार्मिक ग्रंथों में सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के समय पूजा पाठ और धार्मिक कार्य करने की मनाही है, क्योंकि इस समय में राहु और केतु का प्रकोप रहता है। अतः इस दिन पूजा, जप, तप शुभ मुहूर्त और तिथि पर करें। आइए, अमावस्या के बारे में विस्तार से जानते हैं-

अमावस्या पूजा का शुभ मुहूर्त

आज सूर्य ग्रहण सुबह में 10 बजकर 20 मिनट से शुरू होकर दोपहर में 1 बजकर 49 मिनट तक है। अतः इस दौरान पूजा-पाठ करना निषेध है। ऐसे में आज प्रातः काल में ही पूजा-पाठ, जप-तप और दान कर लें। इसके बाद ग्रहण का मुहूर्त है। व्यक्ति चाहे तो दान कर्म सूर्य ग्रहण की समाप्ति के बाद भी कर सकता है।

आषाढ़ अमावस्या का महत्व

अमावस्या दिन के अनुसार निर्धारित होता है। अगर अमावस्या सोमवार को पड़ता है तो इसे सोमवती अमावस्या कहते हैं। अगर शनिवार को पड़ता है तो इसे शनि अमावस्या कहते हैं। इस दिन पवित्र नदियों और सरोवरों में श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं। इसके बाद पूजा, जप, तप, और दान करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन प्रवाहित जलधारा में तिलांजलि करना पुण्यकारी होता है।

आषाढ़ अमावस्या पूजा विधि

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ-सफाई करें। इसके बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें। अब सूर्य देव का जलाभिषेक करें। इसके बाद पूजा, जप, तप और दान करें। वे लोग जिनके पूर्वजों का पिंड दान नहीं हुआ है, वे इस दिन अपने पितरों को तर्पण जरूर करें। पूजा-पाठ के बाद गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद भोजन ग्रहण करें।


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