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Asadha Kalashtami : आज है कालाष्टमी, जानें-काल भैरव देव की पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि

Asadha Kalashtami धार्मिक मान्यता है कि निशिता काल में काल भैरव देव की पूजा करने से साधक की मनोकामना यथाशीघ्र पूरी हो जाती है।

By Umanath SinghEdited By: Published: Thu, 11 Jun 2020 11:28 AM (IST)Updated: Fri, 12 Jun 2020 09:05 AM (IST)
Asadha Kalashtami : आज है कालाष्टमी, जानें-काल भैरव देव की पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि
Asadha Kalashtami : आज है कालाष्टमी, जानें-काल भैरव देव की पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Asadha Kalashtami : हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी मनाई जाती है। तदअनुसार, आज कालाष्टमी है। इस दिन भगवान शिव के अंश स्वरूप काल भैरव देव की पूजा-उपासना की जाती है। खासकर तंत्र विद्या में सिद्धि पाने के लिए साधक कालाष्टमी व्रत को जरूर करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि निशिता काल में काल भैरव देव की पूजा करने से साधक की मनोकामना यथाशीघ्र पूरी हो जाती है। इस व्रत को करने से सभी दुःख, संकट और क्लेश दूर हो जाते हैं।

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कालाष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त और तिथि

व्रती आज के दिन किसी समय पूजा-आराधना कर सकते हैं। जबकि अष्टमी की तिथि 12 जून को रात में 10 बजकर 52 मिनट से शुरू होगी, जो 13 जून की मध्य रात्रि में 12 बजकर 58 मिनट पर समाप्त होगी।

काल भैरव देव का स्वरूप

इनका स्वरूप भयावह है, लेकिन भक्तों के लिए बड़े दयालु है। इनकी सवारी स्वान (काला कुत्ता) है। इन्होंने गले में रूद्र माला धारण कर रखा है। चार भुजा धारी काल भैरव अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित हैं।

काल भैरव देव पूजा विधि

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्मों से निवृत हो जाएं। तदोउपरांत, गंगाजल युक्त जल से स्नान-ध्यान कर सबसे पहले आमचन कर स्वयं को शुद्ध करें। अब व्रत संकल्प लेकर भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें। तत्पश्चात, भगवान शिव के अंश स्वरूप काल भैरव देव की पूजा दूध, दही, पंचामृत, शहद, बिल्वपत्र,  फल, फूल, धूप-दीप, जल, अक्षत, चंदन, भांग, धतूरा आदि चीज़ों से करें। व्रती चाहे तो गृह पूजा संपन्न होने के बाद नजदीक के भैरव मंदिर जाकर उनकी पूजा-उपासना कर सकते हैं। अपनी क्षमता अनुसार व्रत उपवास रखें। संध्याकाल में आरती अर्चना के बाद फलाहार कर सकते हैं। अगले दिन नित्य दिनों की तरह पूजा पाठ संपन्न कर व्रत खोलें। इसके बाद जरूरतमंदों को दान-दक्षिणा देने के बाद भोजन ग्रहण करें।


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