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Amla Navami 2018: जाने इस व्रत का महातम्य आैर इसकी पूजा विधि

शनिवार 17 नवंबर 2018 को आंवला नवमी का पर्व है, इसे अक्षय नवमी भी कहते हैं। जाने इस व्रत के बारे में पंडित दीपक पांडे से।

By Molly SethEdited By: Published: Fri, 16 Nov 2018 11:04 AM (IST)Updated: Fri, 16 Nov 2018 11:04 AM (IST)
Amla Navami 2018: जाने इस व्रत का महातम्य आैर इसकी पूजा विधि
Amla Navami 2018: जाने इस व्रत का महातम्य आैर इसकी पूजा विधि

खास है ये व्रत एेसे करें पूजा 

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कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी के नाम से जाना जाता है। इसे बहुत से लोग अक्षय नवमी भी कहते हैं। एेसी मान्यता है कि इसी दिन से सतयुग का प्रारंभ हुआ था। आंवला नवमी को स्वर्ण, गांव तथा वस्त्र आदि दान देने से ब्रह्म हत्या जैसे महापाप से भी छुटकारा मिलता है। आंवला नवमी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। इस बार ये त्योहार 17 नवंबर 2018 को पड़ रहा है। इस दिन प्रात:काल स्नान करके शुद्ध मन से आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर उन्मुख हो कर पूजन करना चाहिए। साथ ही आंवले की जड़ में दूध की धारा गिराकर चारों ओर कच्चा सूत लपेटे तथा कपूर से आरती करते हुए सात बार परिक्रमा करें। तत्पश्चात ब्राह्मण ब्राह्मण को भोजन करा कर दक्षिणा प्रदान करें। इसके बाद वृक्ष के नीचे ही बैठकर स्वयं भोजन करें, भोजन में आंवला अवश्य होना चाहिए। इस दिन पूजा का सर्वोत्म मुहूर्त प्रात: 6:45 से 11:54 के बीच है। 

जानें आंवला नवमी से जुड़ी कथा 

पौराणिक कथाआें के अनुसार काशी नगर में एक निःसंतान धर्मात्मा वैश्य रहता था। एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी बच्चे की  बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। वैश्य ने इसे अस्वीकार कर दिया, परंतु उसकी पत्नी नहीं मानी आैर एक दिन एक कन्या को कुएं में गिराकर उसने भैरो देवता के नाम पर बलि दे दी।इस पाप के दंड स्वरूप उसे कोढ़ हो गया आैर बच्ची की प्रेतात्मा उसे डराने लगी। जब वैश्य को इस बारे में पता चला तो उसने अपनी पत्नी पर क्रोध करते हुए कहा कि गौवध, ब्राह्यण वध तथा बाल वध करने वाले को कभी पुण्य नहीं मिलता है। अब तुझे अपने पाप का प्रायश्चित करना होगा इसलिए तू गंगा तट पर जाकर तप कर आैर गंगा में स्नान कर तभी इस कष्ट से छुटकारा पाने का मार्ग मिलेगा। वैश्य की पत्नी ने  पश्चाताप करते हुए माता गंगा से प्रार्थना की, तब गंगा जी ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला के वृक्ष की पूजा कर आंवले का सेवन करने के लिए कहा। उसने गंगा जी की आक्षा मान वैसा ही किया आैर उसे कष्ट से मुक्ति मिली। साथ ही इस व्रत व पूजा से उसे संतान की भी प्राप्ति हुई। तभी से इस व्रत को करने परंपरा प्रारंभ हो गर्इ।

आंवले के जन्म से जुड़ी है अदभुत कहानी 

पृथ्वी पर आंवले के उत्पन्न होने की भी एक अनोखी कथ है। इसके अनुसार एेसा माना जाता है कि एक बार ब्रह्मा जी कमल पुष्प में बैठकर र्इश्वर की तपस्या कर रहे थे। तपस्या के करते-करते उनकी आंखों से आंसू टपकने लगे। ब्रह्मा जी के इन्हीं आंसुओं से आंवले का पेड़ उत्पन्न हुआ, जिससे इस वृक्ष के फल में औषधीय गुण आ गये आैर संसार को ये उत्तम फल प्राप्त हुआ। 


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