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Adhik Maas Purnima Significance And Katha: आज है अधिक मास की पूर्णिमा, पढ़ें महत्व और व्रत कथा

Adhik Maas Purnima Significance And Katha आज अधिक मास की पूर्णिमा है। आज के दिन दान-पुण्य और नदी में नहाने का विधान है। इस दिन श्री लक्ष्मी नारायण की पूजा भी की जाती है। साथ ही कई लोग पूर्णिमा के दिन या एक दिन पहले श्रीसत्यनारायण व्रत भी करते हैं।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Thu, 01 Oct 2020 06:00 AM (IST)Updated: Thu, 01 Oct 2020 06:00 AM (IST)
Adhik Maas Purnima Significance And Katha: आज है अधिक मास की पूर्णिमा, पढ़ें महत्व और व्रत कथा
आज है अधिक मास की पूर्णिमा, पढ़ें महत्व और व्रत कथा

Adhik Maas Purnima Significance And Katha: आज अधिक मास की पूर्णिमा है। आज के दिन दान-पुण्य और नदी में नहाने का विधान है। इस दिन श्री लक्ष्मी नारायण की पूजा भी की जाती है। साथ ही कई लोग पूर्णिमा के दिन या एक दिन पहले श्रीसत्यनारायण व्रत भी करते हैं। अधिक मास पूर्णिमा का महत्व बहुत अधिक है। यहां हम आपको इसी के बारे में बता रहे हैं। साथ ही अधिक मास पूर्णिमा की व्रत कथा की जानकारी हम आपको इस लेख में दे रहे हैं।

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अधिक मास पूर्णिमा का महत्व:

अधिक मास की पूर्णिमा का महत्व बहुत अधिक है। अधिक मास भगवान विष्णु को समर्पित है। इसे मलमास या पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। इस दौरान विष्णु जी की पूजा करना मंगलमय होता है। इस मास में आने वाली पूर्णिमा पर विष्णु जी के श्री सत्यनारायण अवतार की अराधना की जाती है। साथ ही व्रत भी किया जाता है। अधिक मास की पूर्णिमा पर स्नान, दान-पुण्य करने पर व्यक्ति को कई गुना लाभ प्राप्त होता है। इस दौरान व्यक्ति श्री सत्यनारायण की कथा भी सुनते हैं। इससे व्यक्ति को मिलने वाला लाभ दोगुना हो जाता है।

अधिक मास पूर्णिमा की व्रत कथा:

काफी समय पहले की बात है। एक ब्राह्मण कांतिका नगर में रहता था। इसका नाम धनेश्वर था। धनेश्वर की कोई संतान नहीं थी। ब्राह्मण अपना गुजारा दान मांगकर करता था। इसी तरह एक बार ब्राह्मण की पत्नी भी दान मांगने गई। लेकिन नगर में से किसी ने भी ब्राह्मण की पत्नी को दान नहीं दिया। इसका कारण था कि वो नि:संतान थी। जब वो दान मांग रही थी तब उसे एक व्यक्ति ने सलाह दी कि वो मां काली की आराधना करे। सलाह के अनुसार, ब्राह्मण दंपत्ति ने 16 दिन तक मां काली की आराधना की। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर मां काली स्वंय प्रकट हुईं। साथ ही ब्राह्मण दंपत्ति को संतान प्राप्त की वरदान दिया। उन्होंने कहा कि वो अपने सामर्थ्य अनुसार, आटे के दीप हर पूर्णिमा को जलाने होंगे। हर पूर्णिमा को एक-एक दीपक बढ़ा देना होगा। यह कर्क पूर्णिमा तक करना होगा। इस पूर्णिमा तक पूरे 22 दीए अवश्य ही जलाने होंगे।

मां काली ने कहा कि एक आम के पेड़ से आम तोड़कर अपनी पत्नी को देना होगा। जैसा-जैसा देवी ने कहा वैसा-वैसा ब्राह्मण ने किया। उसने एक आम के पेड़ से आम तोड़कर अपनी पत्नी को पूजा के लिए दिए। इसके बाद उसकी पत्नी गर्भवती हो गई। उसने एक बालक को जन्म दिया। उस बालक का नाम देवदास रखा गया। बड़ा होकर वह काशी पढ़ने के लिए गया। देवदास के साथ उसका मामा भी काशी गया। दोनों के साथ रास्ते में एक घटना हुई। देवदास का प्रचंशवश विवाह हो गया। हालांकि, देवदास ने पहले ही बता दिया था उसकी आयु ज्यादा नहीं है। लेकिन उसका विवाह जबरदस्ती करा दिया गया। कुछ समय बाद उसे मारने के लिए काल आया लेकिन उसके माता-पिता द्वारा किया गया पूर्णिमा व्रत का फल उसे मिला और काल उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाया। 


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