ब्रज की होली में जिंदगी के सभी रंग दिखाई पड़ते हैं
ब्रज की होली में तमाम रंग दिखाई पड़ते हैं। बरसाना की लट्ठमार होली हो या नंदगांव व गोकुल की, सबका अपना रंग है। बरसाना की होली में तो वर्जनाओं से मुक्त स्त्री-सशक्तीकरण का संदेश भी मिलता है...
ब्रज की होली में तमाम रंग दिखाई पड़ते हैं। बरसाना की लट्ठमार होली हो या नंदगांव व गोकुल की, सबका अपना रंग है। बरसाना की होली में तो वर्जनाओं से मुक्त स्त्री-सशक्तीकरण का संदेश भी मिलता है...
ब्रज में तो होली का उल्लास एक दिन नहीं, एक मास से अधिक चलता है। बसंत पंचमी से 40 दिवसीय फाग महोत्सव शुरू हो जाता है। ब्रज में रंग-अबीर-गुलाल के बादल तो उमड़ते ही हैं, हास-परिहास, हंसी-ठिठोली का सतरंगी रंग यहींदिखता है। यहां प्रेमपूर्ण शरारत है, तो प्रेमपगी लाठियों में हुरियारिनों के शौर्य और सौंदर्य का प्रदर्शन है।
बरसाना की लट्ठमार होली : मान्यता है कि बरसाना में लठामार (लट्ठमार) होली की परंपरा करीब पांच हजार साल पुरानी है। कहते हैं, द्वापर युग में जब कान्हा अपने सखाओं के साथ होली खेलने बरसाना गए थे, तो राधा की सखियों ने उन पर घेर-घेर कर रंग बरसाया था। सखाओं ने हास-परिहास किया, तो सखियों ने उन पर प्रेम प्रदर्शित करते हुए लट्ठ बरसाये थे। यही कारण है कि बरसाना की गलियों में हुरियारों को घेर-घेर कर हुरियारिनें लाठियां बरसाती हैं। ग्वालों के हाथ में ढाल तो हुरियारिनों (गोपियां) के हाथों में लंबी सजीली लाठियां होती हैं। हुरियारों को छेड़ते देख घूंघट काढ़े गोपियां सकुचाती-मुस्काती हैं, फिर प्रेम से सराबोर लाठियों की बरसात शुरू कर देती हैं।
नारी सशक्तीकरण : होली में वर्जनाएं टूटने के साथ ही नारी सशक्तीकरण और संस्कार मुखर हो उठते हैं। हुरियारिनें कुछ भी कहें या करें, मगर क्या मजाल कि कोई उन पर रंग की एक बूंद भी डाल दे। लट्ठमार होली में शरारत करने वाले हुरियारे बरसाना से विदाई से पहले हुरियारिनों के पैर छूकर माफी भी मांगते हैं। उधर, हुरियारिनें भी अपने बुजुर्गों के पैर छूकर आशीर्वाद लेती हैं।
विलक्षण साझा संस्कृति : बरसाना-नंदगांव की साझा संस्कृति अद्भुत है। दोनों के बीच वैवाहिक संबंध नहीं होते, फिर भी हंसी-ठिठोली होती रहती है। होली पर समाज गायन के दौरान कृष्ण को प्रेम से दी जाने वाली गालियां बरबस ही सबका ध्यान आकृष्ट करती हैं।
लडडू होली : एक दिन पहले बरसाना से राधा की सखी श्याम को होली खेलने के लिए बुलाने नंदगांव जाती है। लौटकर बरसाना में लड्डुओं के प्रसाद को हवा में उछाला जाता है। प्रसाद के लड्डू लूटने के लिए होड़ लग जाती है।
रंगों से तर-बतर रावल : अगले दिन राधारानी के गांव रावल में जमकर रंग उड़ाए जाते हैं। होली के गीत गाए जाते हैं। भक्ति और रंग की बारिश में खूब धमाल होता है।