अदभुुत है, नाथों के नाथ केदारनाथ
हिमालय पर्वतमाला की गोद में हैं ज्योर्तिलिंग केदारनाथ। केदारनाथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। इन पांचों का अलग-अलग महत्व है।
तीन तरफ पहाड़ों और पांच नदियों के संगम पर विराजते हैं द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख स्वयंभू केदारनाथ...
उत्तराखंड में केदारनाथ और बद्रीनाथ-दो प्रधान तीर्थ हैं। दोनों के दर्शनों का बड़ा ही माहात्म्य है। मान्यता है कि केदारनाथ की यात्रा किए बिना बद्रीनाथ की यात्रा संपूर्ण नहीं माना जाती। केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ लगभग 22 हजार फीट ऊंचा केदारनाथ है, तो दूसरी तरफ 21 हजार 600 फीट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ 22 हजार 700 फीट ऊंचा भरतकुंड। न सिर्फ तीन पहाड़, बल्कि यहां पांच नदियों का संगम भी है। मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी पांचों नदियां हैं। इन नदियों में से कुछ का अब अस्तित्व भी नहीं है, लेकिन अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है। इसी के किनारे है केदारनाथ धाम।
हिमालय पर्वतमाला की गोद में हैं ज्योर्तिलिंग केदारनाथ। केदारनाथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है।
इन पांचों का अलग-अलग महत्व है। चौराबारी हिमनद के कुंड से निकली मंदाकिनी नदी के पास केदारनाथ पर्वत
शिखर है, जिसके समीप ही कत्यूरी शैली में केदारनाथ मंदिर (3562 मीटर) स्थित है। इसका जीर्णोद्धार जगद्गुरु शंकराचार्य ने करवाया था। मंदिर के पृष्ठभाग में इनकी समाधि है।
राहुल सांस्कृत्यायन ने इस मंदिर का निर्माण काल दसवीं या बारहवीं शताब्दी के मध्य बताया है। मंदाकिनी और अलकनंदा के जल विभाजक की सीधी खड़ी चट्टान के पाद स्थल पर स्थित है रुद्रनाथ गुहा मंदिर। मंदिर के गर्भगृह में नुकीली चट्टान के रूप में सदाशिव प्रतिष्ठित हैं, जिस पर गुहा से जल की बूंदे ंटपकती रहती हैं। पंचकेदार की कथा के अनुसार, महाभारत युद्ध में विजयी होने के बाद पांडव शिवजी का आशीर्वाद पाना चाहते
थे और उन्हें खोजते हुए हिमालय आ पहुंचे। पांडव जब उन्हें खोजते हुए केदार पहुंचे, तो शिवजी ने बैल का रूप धारण कर लिया और अन्य पशुओं के साथ जा मिले। भीम को जब संदेह हुआ, तो वे बैल का रूप धरे शिवजी को पकड़ने के लिए आगे बढे़। इससे पहले कि वे अंतर्धान हो पाते, भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग
पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति पर प्रसन्न हो गए और उन्हें दर्शन दे दिए। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्धान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमांडू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्रीकेदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है।
यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं। केदारनाथ की ठंडी जलवायु के कारण यह मंदिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है।