Move to Jagran APP

पंजाब में क्यों मनाया जाता है होला-महल्ला

दसवें गुरु श्री गोबिंद सिंह जी का एक कथन बड़ा प्रसिद्ध है- चिडि़यन ते मैं बाज लड़ाऊं, सवा लाख से एक लड़ाऊं.. तबै गोबिंद सिंह नाम कहलाऊं...। अर्थात मैं चिडि़यों को इतना शक्तिशाली बना दूंगा कि वे बाज को मार सकें। एक-एक को इतना बहादुर बना दूंगा कि वे सवा-सवा

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 04 Mar 2015 11:58 AM (IST)Updated: Wed, 04 Mar 2015 12:06 PM (IST)
पंजाब में क्यों मनाया जाता है होला-महल्ला

होली पर पंजाब में होला-महल्ला की परंपरा है, जो युद्ध के अभ्यास को समर्पित है...

loksabha election banner

दसवें गुरु श्री गोबिंद सिंह जी का एक कथन बड़ा प्रसिद्ध है- चिडि़यन ते मैं बाज लड़ाऊं, सवा लाख से एक लड़ाऊं.. तबै गोबिंद सिंह नाम कहलाऊं...। अर्थात मैं चिडि़यों को इतना शक्तिशाली बना दूंगा कि वे बाज को मार सकें। एक-एक को इतना बहादुर बना दूंगा कि वे सवा-सवा लाख से टक्कर ले सकेें, तभी मैं अपना नाम गोबिंद सिंह कहलाऊंगा। इसीलिए उन्होंने दलित-शोषित मानवता को प्रबल सैन्य-शक्ति में परिवर्तित करना शुरू कर दिया था।

इसी सिलसिले में गुरु साहिब ने आनंदपुर साहिब में होला-महल्ला मनाने को परंपरा शुरू की। तब पंजाब में फाल्गुन मास की पूर्णिमा को रंगों से भरी होली मनाई जाती थी। गुरु जी ने होली के स्थान पर पूर्णिमा से अगले दिन वीर रसात्मक करतबों से भरपूर 'होला महल्लाÓ मनाने का निर्देश दिया।

होला महल्ला में 'होलाÓ शब्द होली का 'खालसाई बोलीÓ में बोला जाने वाला रूप है, जबकि 'महल्लाÓ अरबी के शब्द 'मय हल्लाÓ यानी 'आक्रमणÓ का क्षेत्रीय तद्भव रूप है। अर्थात होला-महल्ला का अर्थ हुआ-होली के अवसर पर आक्रमण आदि युद्ध-कौशल का अभ्यास। अब भी आनंदपुर साहिब में चैत्र प्रतिपदा वाले दिन विशेष रूप से होला-महल्ला पर्व मनाया जाता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.