इस मंदिर में अपने ही कटे सिर को हाथ में लेकर रक्तपान कराती हैं मां
छिन्नमस्ता, छिन्नमस्तिका या प्रचण्ड चण्डिका दस महाविद्यायों में एक हैं। रजरप्पा के इनके मंदिर में वे एक हाथ में अपना कटा हुआ सिर तथा दूसरे में कटार लिए हैं।
छिन्नमस्तक वाली देवी
हजारों भक्तों की आस्था का केंद्र है रजरप्पा का मां छिन्नमस्तिका सिद्धपीठ, इस मंदिर में महत्वपूर्ण अवसरों पर विशेष पूजा होती है और मां को बकरे की बलि दी जाती है, जिसे स्थानीय भाषा में पाठा कहा जाता है। यह परंपरा सदियों से यहां जारी है। पहाड़, नदी और जंगल से घिरे इस मंदिर में अध्यात्म ही नहीं बसता बल्कि बसते हैं कई धार्मिक संस्कार। जिनका निर्वाहन पूरी श्रद्धा से किया जाता है। झारखंड के रजरप्पा मंदिर में विराजित हैं मां छिन्नमस्तिका देवी यानी जिसमें देवी का सिर छिन्न दिखाई दे। ऐसा माना जाता है कि असम स्थित कामाख्या मंदिर के बाद यह देवी का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ है।
भयभीत करता है मां का स्वरूप
मां का यह स्वरूप देखने में भयभीत भी करता है। झारखंड के रामगढ़ से रजरप्पा की दूरी 28 किमी की है। मंदिर में स्थापित माता की प्रतिमा में उनका कटा सिर उन्हीं के हाथों में है, और उनकी गर्दन से रक्त की धारा प्रवाहित होती रहती है। जो दोनों और खड़ी दोनों सहायिकाओं के मुंह में जाता है। मां के इस रूप को मनोकामना देवी के रूप के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों में भी रजरप्पा मंदिर का उल्लेख शक्तिपीठ के रूप में मिलता है।
मंदिरों की श्रंखला
यहां कई मंदिर का निर्माण किया गया जिनमें 'अष्टामंत्रिका' और 'दक्षिण काली' प्रमुख हैं। साथ ही यहां छिन्नमस्तिके मंदिर के अलावा यहां महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंग बली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल 7 मंदिर और हैं। मां के इस मंदिर को 'प्रचंडचंडिके' के रूप से भी जाना जाता है। मंदिर के चारों ओर दामोदर और भैरवी नदी हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस स्थान को मां का अंतिम विश्राम स्थल भी माना गया है। यहां कतार से बने महाविद्या के मंदिर उनके रूप और रहस्यमय बना देते हैं। इन मंदिरों में तारा, षोडिषी, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगला, कमला, मतंगी और घूमावती मुख्य हैं।