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आज भी यहां शिला पर ब्रहमा के सिर की आकृति बनी हुई है, यहां तर्पण से मिलता है मोक्ष

पितरों को तर्पण और पिंडदान कर उनके मोक्ष का द्वार खोलने वाले श्राद्ध पक्ष की शुरुआत हो चुकी है। श्राद्ध पक्ष के शुरू होते ही बदरीनाथ धाम स्थित ब्रहमकपाल तीर्थ स्‍थान का महत्‍व और भी बढ़ गया है। माना जाता है कि यहां पितरों को तर्पण और पिंडदान देने से

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 28 Sep 2015 11:40 AM (IST)Updated: Mon, 28 Sep 2015 11:48 AM (IST)
आज भी यहां शिला पर ब्रहमा के सिर की आकृति बनी हुई है, यहां तर्पण से मिलता है मोक्ष



देहरादून। पितरों को तर्पण और पिंडदान कर उनके मोक्ष का द्वार खोलने वाले श्राद्ध पक्ष की शुरुआत हो चुकी है। श्राद्ध पक्ष के शुरू होते ही बदरीनाथ धाम स्थित ब्रहमकपाल तीर्थ स्थान का महत्व और भी बढ़ गया है। माना जाता है कि यहां पितरों को तर्पण और पिंडदान देने से पितरों को मोक्ष्ा की प्राप्ति होती है।
बदरीनाथ धाम में ब्रहमकपाल का पौराणिक महत्व है। श्राद्ध पक्ष में यहां पितरों को पिंडदान देने की बरसों से परंपरा चली आ रही है। अन्य तीन धाम पुरी, द्वारिका और रामेश्वरम में भी पितरों को तर्पण देने की परंपरा रही है। मगर ब्रहमकपाल में श्राद्ध पक्ष का इतना महत्व है कि माना जाता है कि यहां पितरों को तर्पण देने के बाद अन्य कहीं तर्पण और पिंडदान करने की जरूरत नहीं पड़ती है। आज श्राद्ध पक्ष शुरू होने पर श्रद्धालुओं ने ब्रहमकपाल पहुंचकर अपने पितरों को तर्पण देकर पिंडदान किया।
बदरीनाथ स्थित ब्रहमकपाल का एक और महत्व है। माना जाता है कि भगवान शिव पर ब्रहमा की हत्या का पाप लगने के बाद ब्रहमा का कपाल भगवान शिव के त्रिशूल पर चिपक गया। तब भगवान शिव ने ब्रहमा की हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए यहां पर अनुष्ठान किया था। मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान शिव के त्रिशूल से ब्रहमा का कपाल छूट गया था और उन्हें ब्रहमहत्या के पाप से मुक्ति मिली। आज भी बदरीनाथ धाम में एक शिला पर ब्रहमा के सिर की आकृति बनी हुई है।

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