एक मान्यता यह भी है कि इस वृक्ष से जो भी वरदान मांगों पूरा होता है
इस गुरुद्वारे की सेवा 12 गांव मिलकर करते हैं तथा हर पूर्णमासी को इन 12 गांवों में से एक गांव में सेवा करने की जिम्मेदारी होती है।
चारों तरफ से पहाडि़यों से घिरा हुआ व देवभूमि हिमाचल के आंचल में स्थित टोका साहिब गुरुद्वारा अपनी सत्यता के चलते देश के प्रमुख धार्मिक ऐतिहासिक स्थानों की सूची में अपने आपको दिन-प्रतिदिन आगे ले जा रहा है। औद्योगिक क्षेत्र कालाअंब से कुछ ही किलोमीटर दूर स्थित इस गुरुद्वारे की विशेषता यह है कि टोका गांव तो हरियाणा राज्य में स्थित है, परंतु गुरुद्वारा हिमाचल में पड़ता है। श्री गुरुद्वारा टोका साहिब 10वीं पातशाही गुरु गोबिंद सिंह जी से संबंध रखता है।
धार्मिक लोगों की आस्था का प्रतीक यह गुरुद्वारा अरुण नदी के तट पर स्थित है। ऐतिहासिक दृष्टि से ये गुरुद्वारा अपने आप में सैकड़ों साल पुराने इतिहास को आज भी संभाले हुए है। दशम गुरु गोबिंद सिंह जी पांवटा साहिब की लड़ाई जीतकर यहां पर 24 मई, 1689 को पहुंचे थे तथा जहां पर उन्होंने 13 दिनों तक विश्राम किया। टोका साहिब का नाम टोका पड़ने के पीछे भी कई कारण हैं जो कि कई घटनाओं से जुडे़ हुए हैं। जब गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने घोड़े यहां बांधे तो रात के समय इस गांव के लोगों ने घोड़े चुरा लिए, लेकिन जब वह इन घोड़ों को बेचने चंडीगढ़ मार्ग स्थित लाहा गांव से निकले तो वहां के लोगों ने उन घोड़ों को पहचान लिया जिन्हें वह गुरु गोबिंद सिंह जी के पास ले गए तथा घोड़े चुराने वाले लोगों को श्राप दिया कि तुम्हें हमेशा टोटा अर्थात कमी रहे। यही टोटा शब्द बाद में बदलकर टोका हो गया।
गुरुद्वारे में भीतर प्रवेश करके अंदर ही तहखाने की ओर सीढि़यां जाती हैं जहां पर गुरु गोबिंद सिंह जी की घटनाओं से जुड़ी कई निशानियां विभिन्न चित्रों के साथ दर्शाई गई हैं। गुरुद्वारे के बिलकुल सामने उत्तर दिशा में पहाड़ी पर वह स्थान है जहां पर गुरु जी ने ध्यान लगाया था तथा इसके नीचे कल-कल करती अरुण नदी आज भी अपने यौवन पर है। कहा जाता है कि गुरु जी महाराज ने एक आम को चूसकर उसकी गुठली यहीं पर फेंक दी, जिस गुठली ने बाद में आम के एक विशाल पेड़ का रूप धारण किया, लेकिन बाद में आंधी तूफान के कारण इस वृक्ष ने अपनी पहचान खो दी। यही नहीं, हैरानी की बात तब हुई जब इस गिरे हुए वृक्ष में से तने निकलने लगे तथा इस वृक्ष की एक मान्यता यह भी है कि इस वृक्ष से जो भी वरदान मांगों पूरा होता है।
मान्यता है कि यह क्षेत्र गुरु गोबिंद सिंह जी के श्राप से बिलकुल उजड़ गया था। फसलों के लिए पानी मिलना तो दूर पीने के लिए भी पानी नहीं मिलता था, जिसके बाद गांव वालों ने गुरुद्वारे में आकर अपनी गलतियों की माफी मांग कर गुरुद्वारे में सेवा देनी शुरू कर दी, जिसके बाद इस गांव में थोड़ी-थोड़ी समृद्धि आई। वैसे तो पूरा वर्ष यहां पर चहल-पहल रहती है, लेकिन बैसाखी के मौके पर यहां पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस गुरुद्वारे की सेवा 12 गांव मिलकर करते हैं तथा हर पूर्णमासी को इन 12 गांवों में से एक गांव में सेवा करने की जिम्मेदारी होती है।