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कदम रोकता है नर कंकालों का रहस्य

नंदा अब उच्च हिमालयी क्षेत्र के सबसे कठिन एवं दुर्गम पथ से गुजर रही है। तन थककर चूर है, लेकिन मन प्रकृति के नजारों में डूबने को बेचैन। ऐसा प्रतीत होता है, मानो कोई अदृश्य शक्ति हमें रहस्यों के समुद्र की ओर धकेल रही है।

By Edited By: Published: Mon, 01 Sep 2014 08:20 PM (IST)Updated: Tue, 02 Sep 2014 09:44 AM (IST)
कदम रोकता है नर कंकालों का रहस्य

देहरादून,दिनेश कुकरेती । नंदा अब उच्च हिमालयी क्षेत्र के सबसे कठिन एवं दुर्गम पथ से गुजर रही है। तन थक कर चूर है, लेकिन मन प्रकृति के नजारों में डूबने को बेचैन। ऐसा प्रतीत होता है, मानो कोई अदृश्य शक्ति हमें रहस्यों के समुद्र की ओर धकेल रही है। रास्ते में यत्र-तत्र नर कंकाल बिखरे हुए हैं। लोग बताते हैं कि ये सदियों पुराने हैं, लेकिन बाल अब भी इन पर लिपटे हैं। सचमुच हम तो रहस्यलोक में आ पहुंचे। चलो! आपका भी इस रहस्यलोक से परिचय कराएं।

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त्रिशूल पर्वत की एक चोटी के पाश्‌र्र्व में सागरतल से 16,200 फीट की ऊंचाई पर स्थित है रुद्रकुंड [रूपकुंड]। यहां पहुंचते ही दुर्लभ हिम प्रदेशीय पुष्पों से हमारा साक्षात्कार होता है। इन्हीं पुष्पों के पौधे लेने अंग्रेजों ने 1942-43 में जंगलात का एक रेंजर रूपकुंड भेजा था। रेंजर ने वहां देखा, हिम में जमे इंसानों के दर्जनों शव बिखरे पड़े हैं। हालांकि, इस घटना को खास तवज्जो नहीं दी गई। वर्षो बाद सितंबर, 1955 में उप्र वन विभाग के एक अधिकारी रूपकुंड से कुछ नरकंकाल, अस्थियां आदि वस्तुएं एकत्र कर लाए और लखनऊ विश्वविद्यालय के मानव शरीर रचना अध्ययन विभाग के डॉ.डीएन मजूमदार को सौंप दिया। डॉ. मजूमदार ने स्वयं भी वहां जाकर अस्थियां आदि वस्तुएं एकत्र कीं। इनमें से अस्थियों के कुछ नमूने 1957 में उन्होंने मानव शरीर विशेषज्ञ डॉ. गिफन को भेजे, जिन्होंने रेडियो कार्बन विधि से परीक्षण कर उन्हें 400 से 600 साल पुराना बताया। जबकि, ब्रिटिश व अमेरिकी वैज्ञानिकों का कहना है कि रूपकुंड क्षेत्र में मिले मानव कंकाल लगभग 600 वर्ष पुराने हैं।

वैसे देखा जाए तो रूपकुंड के रहस्य को वैज्ञानिक ढंग से उजागर करने का श्रेय प्रसिद्ध पर्यटक, हिमालय अभियान के विशेषज्ञ एवं अन्वेषक स्वामी प्रणवानंद को जाता है, जो कई बार रूपकुंड गए और इस रहस्य का सभी दृष्टि से अध्ययन किया। स्वामी जी 1956 में लगभग ढाई माह, 1957 व 1958 में दो-दो माह शिविर लगाकर रूपकुंड में रहे। इस दौरान उन्होंने वहां नरकंकाल, अस्थियां, बालों की चोटी, चमड़े की चप्पल, चूड़ियां, लकड़ी व मिट्टी के बर्तन, शंख के टुकड़े, आभूषणों के दाने आदि वस्तुएं एकत्र कर उन्हें वैज्ञानिक अन्वेषण के लिए बाहर भेजा। अन्वेषण में मानव कंकाल व अस्थियां 650 वर्ष पुराने साबित हुए। अपने अध्ययन के निष्कर्ष में स्वामी प्रणवानंद ने रूपकुंड में प्राप्त अस्थियां आदि वस्तुओं को कन्नौज के राजा यशोधवल के यात्रा दल का माना है। वह कहते हैं कि हताहतों की संख्या कम से कम 300 होगी। वर्ष 2004 में भारतीय व यूरोपीय वैज्ञानिकों के दल ने रूपकुंड रहस्य को खोलने का प्रयास किया। इसी साल नेशनल जियोग्राफिक के शोधार्थी भी कुछ नमूने इंग्लैंड ले गए। हालांकि, रहस्य अब भी बरकरार है। 30 साल तक नरकंकालों पर शोध के बाद मानव शास्त्री विलियम एस.सॉक्स सिर्फ इतना ही बता पाए कि ये कंकाल आठवीं सदी के हैं। जबकि, नवीनतम पुरातात्विक परीक्षण इन्हें नवीं सदी का मानते हैं। गढ़वाल में पंवार वंश का शासन भी इसी दौर में शुरू हुआ था और नंदा देवी राजजात की शुरुआत भी तभी से मानी जाती है।

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