Pitru Paksh 2022: गया में इसलिए श्राद्ध कर्म करने से मिलती ही पितरों को मुक्ति, जानिए इससे जुड़ी एक रोचक कथा
Pitru Paksha 2022 पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गया में पिंडदान और तर्पण करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। गया को पितृ धाम के नाम से भी जाना जाता है। इस नाम के पीछे एक रोचक कथा जुड़ी हुई है।
नई दिल्ली, Pitru Paksh 2022, Gaya: भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष की शुरुआत हो जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष यह 10 सितंबर 2022, शनिवार से शुरू हो चुका है। शास्त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष के दौरान पिंडदान (Pind Daan in Gaya) और तर्पण करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और वह खुश होकर अपने वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
बता दें कि पितृपक्ष के दौरान देश के विभिन्न धार्मिक स्थलों पर इस कर्म को किया जाता है। लेकिन इन सभी में बिहार के गया क्षेत्र का महत्व सबसे अधिक माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस सिद्ध धाम में पिंडदान करने से 108 कुल व 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है। पौराणिक मान्यता यह भी है कि गया धाम में ही भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया था। यही कारण है कि इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है।
क्या है गया धाम में पिंडदान करने की पौराणिक कथा (Shradh 2022 in Gaya)
गया धाम का नाम एक असुर गयासुर के नाम पर रखा गया है। कथा के अनुसार गयासुर ने भगवान विष्णु से वरदान की प्राप्ति के लिए कठोर तप किया था। जसिके बाद भगवान विष्णु से गयासुर यह वरदान मांगा कि श्री हरि स्वयं ही उसके शरीर में वास करें। जिसके बाद उसे कोई भी देखे तो उसके पाप नष्ट हो जाए और उसे स्वर्ग की प्राप्ति हो। भगवान ने उसे यह वर दिया और वैकुण्ठ लोक लौट आए। लेकिन इस वरदान से देवतागण चिंतित हो गए। ऐसा इसलिए क्योंकि उसे देखने के बाद असुरों के भी पाप नष्ट हो रहे थे। ऐसे में इसे रोकने के लिए सभी देवतागण भगवान विष्णु के समक्ष पहुंचें।
भगवान विष्णु ने देवताओं को आश्वासन दिया कि गयासुर का अंत अवश्य होगा। जिसके बाद सभी देवतागण निश्चिन्त होकर अपने-अपने धाम लौट आए। कुछ दिन बाद भगवान विष्णु के गदा से गयासुर का वध हुआ। लेकिन मरने से पहले गयासुर ने भगवान से यह वरदान मांगा कि जिस शिला पर वह अपना देह त्याग रहा है वहां पर सभी देवता विराजमान हो जाएं और यह स्थान मृत्यु के बाद किए जाने वाले धार्मिक कार्यों के लिए सिद्ध स्थल बन जाए। भगवान विष्णु ने गयासुर की इच्छा पूर्ति की और आज इस स्थान को मृत्यु के बाद के किए जाने वाले पिंडदान अथवा श्राद्ध के लिए सबसे सिद्ध माना जाता है।
गरुड़ पुराण में यह भी वर्णन मिलता है कि फल्गु के जल में भगवान विष्णु स्वयं वास करते हैं। यही कारण है कि फल्गु नदी में पिंडदान करने से पितरों को निश्चित ही मोक्ष प्राप्त होता है साथ ही उनके समस्त कुल का उद्धार होता है।
डिसक्लेमर
इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।