पितृपर्व में गंगा से बढ़कर फाल्गु
दिवसीय गया श्राद्ध की प्रारंभिक वेदी फाल्गु नदी है। गया यात्रा के मार्ग में स्थित पुन: पुना वेदी इसके पूर्व है। फाल्गु नदी में तर्पण के बाद प्रारंभिक श्राद्ध गयाधाम में फल्गु तट पर होता है। इसका पौराणिक नाम महानदी है। इसे मोहाने के नाम से उद्गम स्थल से ही जाना जाता है। मोहाने एवं निरंजना के संगम होने पर इसका नाम फल्गु हो जाता है। संकटा दे
दिवसीय गया श्राद्ध की प्रारंभिक वेदी फाल्गु नदी है। गया यात्रा के मार्ग में स्थित पुन: पुना वेदी इसके पूर्व है। फाल्गु नदी में तर्पण के बाद प्रारंभिक श्राद्ध गयाधाम में फल्गु तट पर होता है। इसका पौराणिक नाम महानदी है। इसे मोहाने के नाम से उद्गम स्थल से ही जाना जाता है।
मोहाने एवं निरंजना के संगम होने पर इसका नाम फल्गु हो जाता है। संकटा देवी के पास स्थित पितामह शंकर से उत्तर की ओर उत्तर मानस तक फल्गु तीर्थ है। यह प्राचीनतम नदी है। गया तीर्थ में फल्गु के जल के रूप में स्वयं गदाधर विष्णु हैं। यह पितृपर्व में गंगा से बढ़कर हो जाता है। पृथ्वी के सभी पवित्र सरोवर एवं समुद्र प्रतिदिन पितृपर्व में फल्गु के जल में प्रवेश करते हैं। त्रेतायुग में सीता के साथ आकर भगवान श्रीराम ने फल्गु के जल से अपने पिता दशरथ की आत्मा की शांति हेतु तर्पण किया था।
फाल्गु की वालुका राशि का पिंडदान करके सीता ने अपने श्वसुर दशरथ को मुक्ति प्रदान की थी। साक्षी के रूप में रहकर भी फाल्गु ने उक्त बातों का साक्ष्य राम के पास प्रस्तुत नहीं किया। कुपित होकर सीता ने फाल्गु को अंत:सलिला होने का शाप दिया। अभिशप्त भी फाल्गु नदी पितरों का उद्धार करते आ रही है। फाल्गु के जल से ही गयातीर्थ में पिंडदान होता है। फल्गु के जल को पैर द्वारा अनजान में भी उछालने पर पितर तृप्त हो जाते हैं। तर्पण एवं पिंडदान के लिए फाल्गु नदी के विष्णुपद-गदाधर घाट, देवघाट, बैकुंठ घाट, ब्राहमणी घाट, उत्तर मानस घाट आदि प्रसिद्ध हैं। घाटी दर्शनीय देवी गयेश्वरी, ललिता देवी आदि दर्शन नमस्कार से पितरों को तार देती हैं।