जीवन में अपनी मुक्ति के लिए पिंडदान
आश्रि्वन कृष्ण द्वादशी मंगलवार त्रिपाक्षिक गया श्रद्ध का 13वां दिन है। इस तिथि को भीम गया वेद पर श्राद्ध किया जाता है। मंगला गौरी के पूर्वी प्रवेश द्वार से पश्चिम दिशा में कुछ सीढ़ी पर यह वेदी स्थित है। यह वेदी भस्मकूट पर्वत पर है। पांडव पुत्र भीमसेन ने अपना बायां घुटना मोड़कर पर्वत पर श्राद्ध किया था। घुटना मोड़ने से उत्पन्न गहरा चिह्न् शिला पर आ
आश्रि्वन कृष्ण द्वादशी मंगलवार त्रिपाक्षिक गया श्राद्ध का 13वां दिन है। इस तिथि को भीम गया वेद पर श्राद्ध किया जाता है। मंगला गौरी के पूर्वी प्रवेश द्वार से पश्चिम दिशा में कुछ सीढ़ी पर यह वेदी स्थित है।
यह वेदी भस्मकूट पर्वत पर है। पांडव पुत्र भीमसेन ने अपना बायां घुटना मोड़कर पर्वत पर श्राद्ध किया था। घुटना मोड़ने से उत्पन्न गहरा चिह्न् शिला पर आज भी दर्शनीय है। भीमवेदी से ऊपर जाने पर मंगलागौरी के पहले उत्तर दिशा में पुंडरीकाक्ष नामक विष्णुमंदिर है। इनके दर्शन से पितर तर जाते हैं। बाद में मंगलागौरी मंदिर में दर्शन नमस्कार का विधान है। मंगला गौरी से उत्तर दिशा में ऊंचाई पर जनार्दन विष्णु मंदिर है। जहां विष्णु भगवान के दाहिने हाथ में दही और अक्षत का पिंडदान किया जाता है। इसमें तिल नहीं मिलाया जाता है। उक्त पिंड पितर के लिए नहीं दिया जाता बल्कि अपने लिए या किसी जीवित व्यक्ति के लिए दिया जाता है। मंगला गौरी से दक्षिण दिशा में स्थित गो प्रचार वेदी पर श्राद्ध होता है। यहां ब्रह्म द्वारा किए गए या की पूर्णता हेतु गोदान किया था।
शिला पर गौ के खुर चिह्नि्त है। गदालोल वेदी यहां से दक्षिण-पश्चिम कोण पर है। यह गदालोल नामक कच्चा सरोवर के तट पर स्थित है। हेति नामक राक्षस को मारकर उक्त सरोवर में विष्णु भगवान ने अपनी गदा धोया था। इस राक्षस को किसी भी अस्त्र-शस्त्र से नहीं मारे जाने का वरदान प्राप्त था। अत: गद नामक राक्षस की हडडी से विश्वकर्मा ने एक विशिष्ट गदा का निर्माण किया। उक्त गदा से विष्णु द्वारा हेति राक्षस मारा गया तभी से भगवान को गदाधर विष्णु कहा गया। उक्त गदा के नाम से यह गदालोल तीर्थ हुआ। यहां श्रद्ध से पितर ब्रहमलोक में जाते हैं।
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