सिर्फ़ मौत को गले लगाने आते हैं यहां लोग, हज़ारों दे चुके हैं जान
बनारस यानी काशी घर्म की नगरी है। गंगा, चारों तरफ मंदिर और मंदिर से आती घंटियों की आवाज़ पूरे वातावरम को धर्ममयी बना देती है। इस शहर की धार्मिक कशिश से विदेशी तक खिंचे चले आते हैं। मगर इसी काशी में कुछ चीज़ें ऐसी भी हैं जो आपको अंदर तक
बनारस यानी काशी घर्म की नगरी है। गंगा, चारों तरफ मंदिर और मंदिर से आती घंटियों की आवाज़ पूरे वातावरम को धर्ममयी बना देती है। इस शहर की धार्मिक कशिश से विदेशी तक खिंचे चले आते हैं। मगर इसी काशी में कुछ चीज़ें ऐसी भी हैं जो आपको अंदर तक झकझोर सकती हैं। एक जगह है वाराणसी का मुक्ति भवन। जहां देश भर से सिर्फ लोग आकर ठहरते हैं वो भी मौत के इंतज़ार के लिए।
काशी है मोक्ष की नगरी
वाराणसी के काशी लाभ-मुक्ति भवन में देश भर से लोग आते हैं, कभी न जाने के लिए। इस भवन तक की उनकी यात्रा इस दुनियां की उनकी अंतिम यात्रा होती क्योंकि यहां से वे सीधे परलोक की यात्रा पर निकल पड़ते हैं।
हिंदू मान्यता के अनुसार काशी का निर्माण भगवान शंकर ने मुक्ति के लिए किया था। इसीलिए बहुत से लोग काशी में अपनी देह त्याग मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं। ऐसे लोगों को मुक्ति भवन में निःशुल्क रहने की सुविधा दी जाती है। जो व्यक्ति संसार के सुखों को त्यागकर ईश्वर को पाने की इच्छा रखता है वह अंतिम समय में काशी प्रवास करता है। ऐसे ही लोगों लिए यह मुक्ति भवन बनाया गया है।
क्या आपको पता है कि मृत्यु के बाद हर इंसान क्या चाहता है। अगर आपको इसका जवाब चाहिए तो आप बनारस के मुक्ति भवन में जाइए। जब इंसान अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंच जाता है उस समय उसका भौतिक सुख से मोह समाप्त हो जाता है।
अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुंचकर इंसान को केवल मोक्ष प्राप्त करने की चाह होती है। हिंदू धर्म के अनुसार मोक्ष तब प्राप्त होता है जब मनुष्य को जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ती मिलती है।
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, यदि व्यक्ति अपनी अंतिम सांस बनारस या वाराणसी में लेता है, तो वह जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति पा लेता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। गंगा नदी के तट पर बसे इस पवित्र शहर में दूर-दूर से लोग या तो निर्जीव देह बनकर आते हैं, या देह त्यागने आते हैं।
बनारस में स्थित यह मुक्ति-भवन हॉस्टल दान से चलता है। यहां आकर लोग अपने अंतिम क्षणों का इंतजार करते हैं।
इस मोक्ष भवन में 12 कमरे हैं। इसके साथ ही यहां एक मंदिर है और पुजारियों के लिए छोटे-छोटे क्वार्टर बनाए गए हैं। जिन लोगों को लगता है कि अब उनका अंतिम समय नजदीक है वे यहां दो हफ्ते रह सकते हैं, इसके बाद भी अगर यहां आने वाले व्यक्ति की मृत्यु नहीं होती है तो मुक्ति-धाम प्रशासन उनसे कमरा खाली करने का विनम्र अनुरोध करता है।
दो सप्ताह पूरे होने पर अगर हॉस्टल प्रशासन को लगता है कि व्यक्ति की मृत्यु निकट है और कुछ ही दिन में इंसान मरने वाला है। तो मैनेजर लोगों को कुछ और दिन ठहरने की इजाजत दे देते हैं।
आपको बता दें कि अब तक यहां 14,577 लोग ठहर चुके हैं, जिनमें से अधिकांश की मृत्यु यहीं पर हुई है। वहीं जिन्होंने दो सप्ताह तक अपने प्राण नहीं त्यागे उन्हें भरे मन से अपने परिवार के साथ वापस जाना पड़ा।
यूपी-बिहार सहित कई राज्यों में काशी-करवट की परंपरा है। काशी-करवट का मतलब है कि जो व्यक्ति अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है, उसे गांव के सभी बुजुर्ग मिलकर बनारस लेकर आते हैं, ताकि वह व्यक्ति अपनी देह को गंगा किनारे त्यागे और मोक्ष प्राप्त करे। इसी को काशी-करवट कहा जाता है।
अभी तक इस काशी लाभ मुक्ति भवन में 14 हज़ार 700 लोग 'मोक्ष' प्राप्त कर चुके हैं। रोज़ इस मुक्ति भवन में किसी न किसी को मुक्ति मिल रही है। यहां आकर रहने वाले लोगों के परिजनों का कहना है कि उन्हें उनकी इच्छा से काशी लाया जाता है।
मुक्ति भवन के इतिहास के बारे में भैरवनाथ ने बताया कि साल 1958 में विष्णु बिहारी डालमिया ने इस भवन को उन लोगों को समर्पित किया था जो काशी में मोक्ष पाना चाहते हैं। ऐसे लोगों के लिए यहां निःशुल्क रखने की व्यवस्था की गयी। मुक्ति भवन के भीतर बने मंदिर में काशी विश्वनाथ मंदिर की तरह आरती और अभिषेक साल 2000 से परस्पर किया जा रहा है। पहले यहां 8 पुजारी हुआ करते थे और एक सेवक पर अब सिर्फ 3 पुजारी है और एक सेवक बचे हैं। काशी लाभ मुक्ति भवन में 10 कमरे हैं। भैरवनाथ के अनुसार कभी कभी यहां 15 लोग भी हो जाते हैं।
काशी अपने आप में रहस्यों से भरा शहर है। यहां आपको पूरब और पश्चिम की संस्कृति का अनोखा मेल देखने को मिलता है। मगर इसी काशी में कुछ चीज़ें ऐसी भी हैं जो आपको अंदर तक झकझोर सकती हैं। इसी ही एक जगह है वाराणसी का मुक्ति भवन। जहां देश भर से सिर्फ वही लोग ठहरने आते हैं, जिन्हें अपनी मृत्यु का इंतज़ार होता है।
काशी में मरकर मोक्ष पाने इच्छा
वाराणसी में गिरजाघर चौराहा के पास स्थित मुक्ति भवन (पूरा नाम काशी लाभ-मुक्ति भवन) में देश भर से लोग आते हैं, मगर वो फिर यहां से कभी जाते नहीं हैं। यहां से जाता है तो सिर्फ उनका शरीर। हिंदू मान्यता के अनुसार काशी का निर्माण भगवान शंकर ने मुक्ति के लिए किया था।
14, 700 ने मुक्ति भवन में त्यागे प्राण
अभी तक इस काशी लाभ मुक्ति भवन में 14 हज़ार 700 लोग अपनी मर्जी से रहकर 'मोक्ष' प्राप्त कर चुके हैं। रोज़ इस मुक्ति भवन में किसी न किसी को मुक्ति मिल रही है।
मुक्ति भवन की कहानी जानकर काफी अजीब लग सकता है। मगर काशी को समझने वाले जानते हैं काशी, शिव, मृत्यु और मोक्ष का क्या संबंध है।