Move to Jagran APP

Nageshvara Jyotirling: ऊंचे चमकते सिंहासन पर ज्योतिर्लिंग के रूप में हुए थे प्रकट, पढ़ें यह कथा

Nageshvara Jyotirling भगवान शिव का यह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग गुजरात प्रांत में द्वारकापुरी से लगभग 17 मील दूर है। शास्त्रों में इसकी बड़ी महिमा का वर्णन किया गया है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Thu, 30 Jul 2020 10:00 AM (IST)Updated: Thu, 30 Jul 2020 10:00 AM (IST)
Nageshvara Jyotirling: ऊंचे चमकते सिंहासन पर ज्योतिर्लिंग के रूप में हुए थे प्रकट, पढ़ें यह कथा
Nageshvara Jyotirling: ऊंचे चमकते सिंहासन पर ज्योतिर्लिंग के रूप में हुए थे प्रकट, पढ़ें यह कथा

Nageshvara Jyotirling: भगवान शिव का यह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग गुजरात प्रांत में द्वारकापुरी से लगभग 17 मील दूर है। शास्त्रों में इसकी बड़ी महिमा का वर्णन किया गया है। मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इसकी उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा सुनता है तो उसे सुख प्राप्त होता है। इसे लेकर भी पुराणों में एक कथा कही गई है जिसका वर्णन हम यहां कर रहे हैं।

loksabha election banner

इस तरह हुआ था नागेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित:

एक बार सुप्रिय नामक का एक बड़ा धर्मात्मा और सदाचारी वैश्य था। वह शिवजी का परम भक्त था। वह हमेशा ही उनकी आराधना में लीन रहता था। साथ ही अपने सभी काम शिवजी को ही समर्पित करता था। इसी इसी श्रद्धा से दारुक नामक एक राक्षस बहुत क्रुद्व रहता था। क्योंकि उसे वैश्य द्वारा की जा रही शिव की पूजा अच्छी नहीं लगती थी। राक्षस हमेशा इसी कोशिश में रहता था कि वो किस तरह सुप्रिय की पूजा-अर्चना में विघ्न पहुंचाए।

एक बार सुप्रिय नांव पर सवार होकर कहीं जा रहा था। इसी बीच राक्षस ने मौका देखकर सुप्रिय की नांव पर आक्रमण कर दिया। राक्षस ने सभी यात्रियों को कैद कर लिया। वो उन सभी को अपनी राजधानी ले गया। कैद में होने के बाद भी सुप्रिय ने कारागार में भगवान शिव की आराधना बंद नहीं की। यही नहीं, वो बाकी के कैदियों को भी शिव भक्ती के लिए प्रेरित करता था। जब इस बात का पता दारुक को चला तो उसे बहुत गुस्सा आया।

क्रुद्ध दारुक कारागार में जा पहुंचा। सुप्रिय उस समय भी शिव भक्ति में लीन था। सुप्रिय आंखें बंद किए शिव की आराधना कर रहा था तभी उस राक्षस ने बेहद ही भीषण स्वर में कहा, 'अरे दुष्ट वैश्य! तू आंखें बंद कर इस समय यहां कौन-से उपद्रव और षड्यंत्र करने के बारे में सोच रहा है?' हालांकि, राक्षस की कोशिश के बाद भी सुप्रिय की समाधि में कोई दखल नहीं पड़ी। यह देखकर दारुक और भी क्रोधित हो गया। गुस्से में आकर दारुक ने अपने अनुचरों को सुप्रिय समेत बाकी के सभी बंदियों को जान से मार डालने का आदेश दिया। सुप्रिय को इस बात का जरा भी डर नहीं लगा।

सुप्रिय सभी बंदियों की रक्षा और मुक्ति के लिए शिवजी से प्रार्थना करने लगा। उसे विश्वास था कि भगवान शिव उसे विपदा की स्थिति में बिल्कुल अकेला नहीं छोड़ेंगे। उसकी प्रार्थना सुनकर शंकरजी कारागार में प्रकट हो गए। वो एक ऊंचे स्थान पर चमकते हुए सिंहासन पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। शिवजी ने सुप्रिय को दर्शन दिए और उसे अपना पाशुपत-अस्त्र भी दिया। सुप्रिय ने इसी अस्त्र से दारुक और उसके अनुचरों का वध किया और शिवधाम को चला गया। शिवजी के अनुसार इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर पड़ा। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.