पितृपक्ष 2018: गया जहां पितरों की संतुष्टि के लिए जुटते हैं लोग
पितृपक्ष के अवसर पर गया में हजारों श्रद्धालु पिंडदान के लिये जुटते हैं। यह स्थान पितृदान के लिए बहुत प्रसिद्ध है।
गया में खास है पितृदान
श्राद्ध कर्म के लिए बिहार स्थित गया का नाम बड़ी प्रमुखता आैर सर्वप्रथम लिया जाता है। गया केवल भारत वर्ष में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में श्राद्ध तर्पण हेतु बहुत प्रसिद्घ है। खास तौर पर यहां के दो स्थान विष्णुपद मन्दिर आैर फल्गु नदी तट। कथाआें के अनुसार विष्णुपद मंदिर में स्वयं भगवान विष्णु के चरण उपस्थित हैं, जिनकी पूजा करने के लिए लोग देश के कोने-कोने से आते हैं। पितृपक्ष के अवसर पर यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ जुटती है। दूसरा सबसे प्रमुख स्थान है जहां श्राद्घ कर्म का बहुत महत्व है यहां बहने वाली फल्गु नदी। मान्यता है कि फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से मृत व्यक्ति को बैकुण्ठ की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथाआें के अनुसार माना जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने अपने पिता राजा दशरथ का पिंड दान इसी स्थान पर किया था। तब से यह कहा जाने लगा की यहां आकर कोई भी व्यक्ति अपने पितरो के निमित्त पिंड दान करेगा तो उसके पितृ उससे तृप्त रहेंगे और वह व्यक्ति अपने पितृऋण से उऋण हो जायेगा| ये जगह गया क्यों कहलाती है इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है, जिसके मुताबिक भगवान विष्णु ने यहीं गयासुर नाम के राक्षस का वध किया था।
पितृ पक्ष के बिना भी संभव है गया में पिंडदान
वैसे तो पितृपक्ष में हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग मन कर्म एवं वाणी से संयम का जीवन जीते हुए पितरों को स्मरण करके जल चढाते हैं, आैर उनका श्राद्घ पूजन करते हैं। इसके निमित्त निर्धनों एवं ब्राह्मणों को दान भी देते हैं। पितृपक्ष में लगभग प्रत्येक हिंदू परिवार में मृत माता-पिता का श्राद्ध किया जाता है। इसके साथ ही कर्इ लोग इस दौरान गया जाकर श्राद्ध करते हैं, जिसका विशेष महत्व भी है। हांलाकि इसका भी शास्त्रीय समय निश्चित है, परंतु ‘गया सर्वकालेषु पिण्डं दधाद्विपक्षणं’ कहकर किसी भी समय पिंडदान करने की अनुमति दी गई है। यानि गया में आप साल में किसी भी समय जाकर अपने पितरों का श्राद्घ कर सकते हैं।
श्राद्घ में एेसे करें पूजा
पितृ पक्ष में श्राद्ध पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय दोपहर का होता है अत: इसे उसी समय करना चाहिये। इस दिन सबसे पहले हवन करें फिर ब्राह्मण से मंत्रोच्चारण आैर पूजन करके जल से तर्पण करें। फिर जो भी भोजन बनाया है उससे भोग की थाली लगायें, आैर उसमें से गाय, काले कुत्ते, कौवे आदि का हिस्सा अलग कर दें। पितरों का स्मरण करते हुए इन तीनों को खिला दें। इसके बाद मन ही मन पूर्वजों से श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करते हुए ब्राह्मण द्वारा तिल, जौ, कुशा, आदि से जलांजली दिलवा कर भोग लगा कर ब्राह्मणों को भोजन करवायें। भोजन के पश्चात दान दक्षिणा भी प्रदान करें। इस प्रकार विधि विधान से श्राद्ध पूजा करने पर व्यक्ति को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है आैर पितर प्रसन्न होकर सुख, समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।