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यह सूर्य मंदिर स्‍वयं देव शिल्‍पी ने बनाया था

आज जानते हैं बिहार के मशहूर देव सूर्य मंदिर के बारे में जिसे स्‍वयं देव शिल्‍पी विश्वकर्मा ने बनाया था।

By Molly SethEdited By: Published: Sat, 17 Feb 2018 04:29 PM (IST)Updated: Sun, 18 Feb 2018 09:00 AM (IST)
यह सूर्य मंदिर स्‍वयं देव शिल्‍पी ने बनाया था
यह सूर्य मंदिर स्‍वयं देव शिल्‍पी ने बनाया था

पश्चिमाभिमुखी सूर्य मंदिर

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यह बिहार के औरंगाबाद जिले में देव स्थित एक प्रसिद्ध सूर्य मंदिर है। यह मंदिर पूर्वाभिमुख ना होकर पश्चिमाभिमुख है। यह मंदिर अपनी अनूठी शिल्पकला के लिए भी प्रख्यात है। पत्थरों को तराश कर बनाए गए इस मंदिर की नक्काशी शिल्प कला का शानदार नमूना है। प्रचलित मान्यता के अनुसार इसका निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने किया है। इस मंदिर के बाहर संस्कृत में लिखे श्लोक के अनुसार 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेतायुग के गुजर जाने के बाद राजा इलापुत्र पुरूरवा ऐल ने इस सूर्य मंदिर का निर्माण प्रारम्भ करवाया था। शिलालेख से पता चलता है कि इस पौराणिक मंदिर का निर्माण एक लाख पचास हजार सात वर्ष पूरा हुआ। पुरातत्वविद इस मंदिर का निर्माण काल आठवीं-नौवीं सदी के बीच का मानते हैं। 

मंदिर का स्‍थापत्‍य

सूर्य मंदिर के पत्थरों में विजय चिन्ह व कलश अंकित हैं। ये विजय चिन्ह इस बात का प्रमाण माना जाता है कि शिल्प के कलाकार ने सूर्य मंदिर का निर्माण कर के ही शिल्प कला पर विजय प्राप्त की थी। देव सूर्य मंदिर के स्थापत्य से प्रतीत होता है कि मंदिर के निर्माण में उड़िया स्वरूप नागर शैली का समायोजन किया गया है। नक्काशीदार पत्थरों को देखकर भारतीय पुरातत्व विभाग के लोग मंदिर के निर्माण में नागर एवं द्रविड़ शैली का मिश्रित प्रभाव वाली वेसर शैली का भी समन्वय बताते हैं। मंदिर के प्रांगण में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल, मध्याचल तथा अस्ताचल के रूप में विद्यमान हैं। इसके साथ ही वहां अदभुद शिल्प कला वाली दर्जनों प्रतिमाएं हैं। मंदिर में शिव के जांघ पर बैठी पार्वती की प्रतिमा है। सभी मंदिरों में शिवलिंग की पूजा की जाती है। इसलिए शिव पार्वती की यह दुर्लभ प्रतिमा श्रद्धालुओं को खासी आकर्षित करती है।


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