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कहा जाता है कि यह स्थल भगवान शिव जी और पार्वती जी का विवाह स्थल है

इस मंदिर के अंदर जलने वाली अग्नि जो सदियों से यहाँ जल रही है। माना जाता है कि शिव पार्वती जी ने इसी अग्नि को साक्षी मानकर विवाह किया था।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 26 Nov 2016 03:44 PM (IST)Updated: Fri, 21 Jul 2017 12:20 PM (IST)
कहा जाता है कि यह स्थल भगवान शिव जी और पार्वती जी का विवाह स्थल है
कहा जाता है कि यह स्थल भगवान शिव जी और पार्वती जी का विवाह स्थल है

देवाति देव महादेव और देवी पार्वती का पवित्र विवाहस्थल! भगवान शिव जी और देवी पार्वती के विवाहस्थल की मनुस्मृति! शिवभक्तों के अनुसार विश्व की उत्पत्ति शिव की कृपा से हुई है और एक दिन यह शिव में ही विलीन हो जाएगी। भगवान भोले का शृंगार, विवाह, तपस्या और उनके भक्तगण - सब अद्वितीय हैं। उनके विवाह, तपस्या और भक्तों पर कृपा की कई कथाएं प्रचलित हैं।और ये कथाएं जहाँ जहाँ घटी हैं वे जगह आज तीर्थस्थलों के रूप में प्रसिद्द हैं।

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उत्तराखंड जो ऐसे ही कई धार्मिक और पौराणिक कथाओं के लिए प्रसिद्द है। यहाँ के कई स्थल सिर्फ पर्यटक स्थल के रूप में ही नहीं, पवित्र तीर्थस्थलों के रूप में भी लोकप्रिय हैं। यह पवित्र राज्य कई नदियों और संगमों का भी उद्गम स्थल है, और हर एक स्थान के पीछे एक रहस्य भी जुड़ा हुआ है। यहाँ का त्रियुगीनारायण मंदिर ऐसे ही पौराणिक मंदिरों में से एक है, जो उत्तराखंड के त्रियुगीनारायण गाँव में स्थित है। यह गाँव रुद्रप्रयाग जिले का ही एक भाग है। त्रियुगीनारायण मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह स्थल भगवान शिव जी और पार्वती जी का विवाह स्थल है।

इस मंदिर की एक खास विशेषता है, मंदिर के अंदर जलने वाली अग्नि जो सदियों से यहाँ जल रही है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव जी और देवी पार्वती जी ने इसी अग्नि को साक्षी मानकर विवाह किया था। इसलिए इस जगह का नाम त्रियुगी पड़ गया जिसका मतलब है, अग्नि जो यहाँ तीन युगों से जल रही है। जैसा कि यह अग्नि नारायण मंदिर में स्थित है, इसलिए इसे पूरा त्रियुगीनारायण मंदिर कहा जाता है।

रुद्रप्रयाग पहुँचें कैसे? तो चलिए आज हम खुद भगवान शिव जी और देवी पार्वती के महा मिलन, उनके विवाह के साक्षी बनने के लिए चलते हैं। शिव और पार्वती का पवित्र विवाहस्थल! त्रियुगीनारायण मंदिर कथाओं के अनुसार, देवी पार्वती अपने पिछले जन्म में देवी सती के नाम से भगवान शिव जी की पत्नी थीं, पर उनके पिता द्वारा जब भगवान शिव जी का अपमान किया गया, उनहोंने वहीं आत्मदाह कर अपने प्राणों की आहुति दे दी। मृत्यु के बाद अपने अगले जन्म में उन्होंने राजा हिमवत की पुत्री के रूप में जन्म लिया और भगवान शिव जी को अपनी सुंदरता से लुभाने के लिए हर एक कोशिश की।


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