नरक चतुर्दशी: यमराज का एक अनोखा मंदिर
दीपावली के एक दिन पहले नरक चतुर्दशी आती है। यह पांच पर्वो की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्यौहार है। इस त्योहार का दक्षिण भारत में बहुत महत्व है। कहते हैं कि इस दिन यमराज को याद करने व मुख्यद्वार के बाहर दक्षिण दिशा में चावल की ढ़ेरी बनाकर उस पर दीया लगाकर। यदि यमराज से अकाल मृत्यु दूर रखने की प्रार्थना की जा
उज्जैन। दीपावली के एक दिन पहले नरक चतुर्दशी आती है। यह पांच पर्वो की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्यौहार है। इस त्योहार का दक्षिण भारत में बहुत महत्व है। कहते हैं कि इस दिन यमराज को याद करने व मुख्यद्वार के बाहर दक्षिण दिशा में चावल की ढेरी बनाकर उस पर दीया लगाकर।
यदि यमराज से अकाल मृत्यु दूर रखने की प्रार्थना की जाए तो घर में कभी किसी की अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस दिन को यम का दिन माना जाता है। इसलिए नरक चतुर्दशी पर जानें यमराज के एक अनोखे मंदिर के बारे में..
यमराज के पास सबको एक दिन जाना ही है। यमराज का एक मंदिर ऐसा है, जहां मरने के बाद हर किसी को जाना ही पड़ता है चाहे वह आस्तिक हो या नास्तिक। यह मंदिर किसी और दुनिया में नहीं बल्कि भारत की जमीन पर स्थित है। दिल्ली से करीब 500 किलोमीटर की दूरी पर हिमाचल के चम्बा जिले में भरमौर नामक स्थान में स्थित इस मंदिर के बारे में कुछ बड़ी अनोखी मान्यताएं प्रचलित हैं। यहां पर एक ऐसा मंदिर है जो घर की तरह दिखाई देता है। इस मंदिर के पास पहुंच कर भी बहुत से लोग मंदिर में प्रवेश करने का साहस नहीं जुटा पाते हैं।
मंदिर को बाहर से प्रणाम करके चले आते हैं। इसका कारण यह है कि, इस मंदिर में धर्मराज यानी यमराज रहते हैं। संसार में यह इकलौता मंदिर है जो धर्मराज को समर्पित है। इस मंदिर में एक खाली कमरा है जिसे चित्रगुप्त का कमरा माना जाता है। चित्रगुप्त यमराज के सचिव हैं जो जीवात्मा के कर्मो का लेखा-जोखा रखते हैं।
कौन है यमराज
यमराज हिन्दू धर्म के अनुसार मृत्यु के देवता हैं। इनका उल्लेख वेद में भी आता है। इनकी जुड़वां बहन यमुना (यमी) है। विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से भगवान सूर्य के पुत्र यमराज, श्राद्धदेव मनु और यमुना हुईं। यमराज परम भागवत, द्वादश भागवताचायरें में हैं। यमराज जीवों के शुभाशुभ कमरें के निर्णायक हैं। दक्षिण दिशा के इन लोकपाल की संयमनीपुरी समस्त प्राणियों के लिये, जो अशुभकर्मा है, बड़ी भयप्रद है। यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैवस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुभ्बर, दघ्न, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त- इन चतुर्दश नामों से इन महिषवाहन दण्डधर की आराधना होती है। इन्हीं नामों से इनका तर्पण किया जाता है। चार द्वारों, सात तोरणों तथा पुष्पोदका, वैवस्वती आदि सुरम्य नदियों से पूर्ण अपनी पुरी में पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर के द्वार से प्रविष्ट होने वाले पुण्यात्मा पुरुषों को यमराज शंख, चक्र, गदा, पद्मधारी, चतुर्भुज, नीलाभ भगवान विष्णु के रूप में अपने महाप्रसाद में रत्नासन पर दर्शन देते हैं।