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पितर कामना करते कि उनके वंश में कोई ऐसा पुत्र हो, जो गया में उनका श्राद्ध करे

ब्रह्माजी बोले किजो कोई यात्री आवेगा तुम लोगो को अवश्य पूजेगा।तथा बिना इनकी उपस्थिति एवं सहायता के यात्रियों को गयाजी श्राद्ध की पूर्णता प्राप्त नहीं हो सकेगी।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 16 Sep 2016 01:53 PM (IST)Updated: Fri, 16 Sep 2016 02:01 PM (IST)
पितर कामना करते कि उनके वंश में कोई ऐसा पुत्र हो, जो गया में उनका श्राद्ध करे

भारतवर्ष का प्रमुख पितृतीर्थ गया है। पितर कामना करते हैं कि उनके वंश में कोई ऐसा पुत्र उत्पन्न हो, जो गया जाकर वहाँ उनका श्राद्ध करे।यह नगरी का नाम गया महान तपस्वी गयासुर राक्षस के नाम पर पड़ा है।

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एक समय स्वयं ब्रह्मजी सृष्टि रचते समय गयासुर को उत्पन्न किया, उसने कोलाहल पर्वत पर जाकर घोर तपस्या किया और बहुत दिनों तक श्वास रोक कर खड़ा रहा। उसकी ऐसी तपस्या देखकर इन्द्र घबराये कि कहीं मेरा सिंहासन न ले ले। ऐसा विचार कर सब देवताओं को ले ब्रह्मा के पास गये और सब वृतान्त कहा। ब्रह्मा बोले, अच्छा चलो शिवजी से राय लेना चाहिए। तब सब कोई शिवजी के पास गये। महादेवजी ने सब देवताओं को साथ लिया और विष्णु के पास गये और प्रणाम कर स्तुति की। तब विष्णु भगवान् ने सब देवताओं से पूछा कि हे देवता लोग! आप सब किस कारण यहां आये हैं ? तब सब देवता बोले कि नारायण! गयासुर नामक एक भारी दैत्य उत्पन्न हुआ और उसने घोर तपस्या की। सो हे नाथ! वरदान देकर हम सबकी रक्षा कीजिए। तब विष्णुभगवान बोले-तुम लोग उसके पास चलो, मैं गरूड़ पर चढ़कर आता हूँ। सब देवताओं के चले जाने के बाद विष्णु भगवान गरूड़ पर चढ़कर गयासुर के पास आये और शंख से उसका शरीर स्पर्ष कर बोले हे दैत्यराज! तुम्हारी उग्र तपस्या देखकर हम अति प्रसन्न है और तुम्हें वरदान देने के लिए आयें हैं, वर मांगो।

यह सुनकर गयासुर बोला हे प्रभु! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं और वर देने आयें हैं तो दया कर वर दीजिए कि मेरे स्पर्ष से यावतसुर, असुर, कीट, पतंग, पापी, ऋषि, मुनि, प्रेत यह सभी पवित्र होकर मुक्ति को प्राप्त होवें। उसके वरदान को सुनकर विष्णु भगवान एवमस्तु कहकर सब देवता सहित निज आश्रम को चले गय। उसी दिन से गयासुर के दर्शन और स्पर्ष से सभी जीव मुक्ति प्राप्त कर बैकुण्ठ को जाने लगे। धीरे-धीरे यमपुरी जनशुन्य हो गयी। तब यमराज इन्द्रादि देव सहित ब्रह्मा को लेकर विष्णु भगवान के पास गये और बोले ही दीनबन्धु! गयासुर के स्पर्ष से सब बैकुण्ठ को चले गयो और यमपुरी जनषून्य हो गयी। यमराज की ऐसी विनती सुन विष्णु भगवान बोले, हे ब्रह्मा आप गयासुर के समीप जाकर यज्ञ करने हेतु उसका शरीर मांगिए। विष्णु की आज्ञा पा ब्रह्मा जब गयासुर के पास आये तब असुर प्रणाम करके बोला हे प्रभु! आप मेरे समीप किसलिए आये हैं कृपाकर कहिये तब ब्रह्मा ने कहा, हे दैत्यराज! मैं तमाम पृथ्वीपर घूम आया और मुझे यज्ञ करने के निमित कोई भी पवित्र स्थान न मिला, इस वास्ते मैं तेरे पास आया हूँ कि तेरा शरीर नारायण के वरदान से पवित्र है सो अपना शरीर मुझे यज्ञ के हेतु दो। ब्रह्मा जी का ऐसा वचन सुन गयासुर अति हर्ष से बोला हे नाथ! आपही लोगों की कृपा से यह मेरा अधर्म शरीर पवित्र हुआ है सो आप इस पर यज्ञ अवश्य करिये जिससे यह और भी पवित्र हो जाय।

सनतकुमार बोले हे नारद्! उसी समय गयासुर उतर दिशा की तरफ सिर करके लेट गया, तब ब्रह्मा ने सम्पूर्ण ऋषि औेर मुनि को बुलाकर गयासुर के उपर यज्ञारम्भ किया, यज्ञ के समाप्त होने पर सबके साथ ब्रह्मा स्नान करने ब्रहासरोवर पर उपस्थित हुए। उसी समय गयासुर का शरीर हिलने लगा। तब ब्रह्माजी धर्मराज से बोले कि हे धर्मराज। आपके यहां जो देवमयी शिला है उसको लाकर इसके सिर पर रख दीजिए। उस शिला के रखने पर भी असुर स्थित न हुआ तब ब्रह्माजी फिर सब देवताओं के साथ लेकर विष्णु भगवान के पास गये। तब नारायण ने अपने शरीर में से एक विष्णु मूर्ति निकालकर दी, परन्तु मूर्ति लेकर रखने पर भी असुर स्थित न हुआ। तब ब्रह्माजी ने साक्षात् विष्णु का आवाहन किया। तब भगवान उस शिला पर गदा लेकर आ विराजे और ब्रह्मा भीं पांच रूप में प्रपितामह पितामह, फलवास, केदार, कनकेष्वर होकर स्थित हुए और गजरूप धारण करके गणेशजी, गदादित्य नाम से दक्षिणायम, उतरायण सूर्य शान्त नाम से, लक्ष्मी और सावित्री त्रिसन्ध्या तथा सरस्वती नाम से, इन्द्र वृहस्पति, वसुयक्ष, गन्धर्व और सम्पूर्ण देवता अपनी-अपनी शक्ति से गयासुर के देह को स्थिर किया। तब गयासुर का हिलना बन्द हुआ, तभी से विष्णु का नाम गदाधर हुआ। गयासुर के स्थिर होने पर विष्णु भगवान ने कहा हे असुर! मैं तुमसे अति प्रसन्न हूँ, वर मांगो। तब गयासुर बोला हे नाथ! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं तो यह वर दिजिए कि जब तक सूर्य, चन्द्रमा पृथ्वी पर है तब तक मेरे ऊपर इस शिला पर सब देवता विराजमान रहें और यह तीर्थ मेरे नाम से प्रसिद्ध हो । यहा स्नान तर्पण दानपुण्य करने से मनष्य को सब तीर्थो से ज्यादा फल प्राप्त हो और गदाधर भगवान के दर्शन-पूजन से मनुष्यों के हजारों कुल तर जावें। जिस पितर के लिए यहां पिण्डदान दिया जाऐ वह ब्रह्मलोक वासी हो और पापों से मुक्त हो। गयासुर का यह वचन सुन विष्णु भगवान ने कहा कि ऐसा ही होगा। इसके उपरान्त ब्राह्मणों को बहुत सा द्रव्यमान देकर विदा किया। कुछ काल बीतने पर, ब्राह्मणों ने द्रव्य मांग कर धर्म यज्ञ किया, उसका धुआं स्वर्ग को गया। तब ब्रह्मा ने आकर ब्राह्माणों को श्राप दिया कि मेरे द्रव्य देने पर भी तुम लोगों ने द्रव्य मांगा, इसलिए तुम सदा दरिद्र ही रहोगे। यह दूध - दही की जो नदियां है पानी हो जाय और यह स्वर्ग, रत्नादि के गृह हैं। वह मिट्टी के हो जाय व कल्पवृक्ष कामधेनू स्वर्ग को जावें। ब्रह्मा का ऐसा श्राप सुनकर सब ब्राह्मण हाथ जोड़कर बोले कि हे प्रभु! अपने दिये सम्पूर्ण पदार्थो को आपने नष्ट कर दिया। अब कृपा कर हम लोगों के जीविकाकार्य का उपाय बताइए। यह सुनकर दयावष हो ब्रह्माजी बोले कि जब तक सूर्य, चन्द्रमा हैं, तब तक तुम लोगों के जीविका के लिए यह क्षेत्र है। जो कोई यात्री आवेगा तुम लोगो को अवश्य पूजेगा।तथा बिना इनकी उपस्थिति एवं सहायता के यात्रियों को गयाजी श्राद्ध की पूर्णता प्राप्त नहीं हो सकेगी।


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