पाकिस्तान के इन मंदिरों में हिन्दुओं के साथ मुस्लिम भी टेकते हैं माथा
पाकिस्तान में ऐसे प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहां हिन्दू-मुस्लिम दोनों ही माथा टेकने आते हैं.
‘एक ही पत्थर लगे हैं हर इबादत गाह, गढ़ लिए एक बुत के सबने अफसाने कई.’ नाजीर बनारसी साहब की लिखी हुई एक छोटी-सी गजल, जिसे अगर समझा जाए, तो शायद दुनिया में धर्म के नाम पर लड़ाई होनी बंद हो जाएगी. मंदिर-मस्जिद का विवाद खत्म हो जाएगा. बचपन में सिखाई हुई बात ‘ईश्वर एक है’ महज एक जुमला नहीं लगेगी. ऐसा नहीं है कि ये बातें सिर्फ किताबी हैं. पाकिस्तान में ऐसे प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहां हिन्दू-मुस्लिम दोनों ही माथा टेकने आते हैं.
हिंगलज देवी मंदिर, ब्लूचिस्तान
ये मंदिर ब्लूचिस्तान के लसबेला जिले में स्थित है. इसके पास हिंगलज नेशनल पार्क भी बना हुआ है. यहां मार्च के महीने में सबसे ज्यादा भक्त आते हैं. यहां हिन्दू-मुस्लिम दोनों ही दर्शन करने आते हैं.
जगन्नाथ मंदिर, सियालकोट
पाकिस्तान में बने सबसे पुराने मंदिरों में से एक जहां पर पूरे मंदिर की दीवारों और छतों पर नक्काशी की गई है. यहां पर जुलाई-अगस्त के समय दोनों समुदाय के लोगों को दर्शन करते हुए देखा जाता है.
श्री वरुण देव मंदिर, मनोरा
ये मंदिर करीब 1000 साल पुराना है. यहां समुद्र के देवता वरुण की पूजा की जाती है. इस मंदिर में मई-जून के महीने में सबसे ज्यादा भक्तों की तादाद देखने को मिलती है.
कालका गुफा मंदिर, सिन्ध
यहां कालका माता को पूजने के लिए साल भर लोगों का तांता लगा रहता है. कहा जाता है यहां नवरात्रि में मुस्लिम समुदाय के लोग भंडारा कराते हैं.
आदित्य सूर्य मंदिर, मुल्तान
सूर्य देव की पूजा के साथ यहां पर अन्य देवी-देवताओं की मूर्ति भी लगी हुई है. यहां पर नवम्बर-जनवरी महीने में ज्यादा भीड़ रहती है.