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एक बार जरूर जायें माउंट आबू में आस्था के इन चार केंद्रों पर

माउंट आबू एक शानदार पर्यट स्‍थल ही नहीं बल्‍कि मंदिरों का भी शहर है। यहां के चार मंदिर दुनिया भर में अपना महत्‍व रखते हैं।

By Molly SethEdited By: Published: Thu, 07 Dec 2017 03:39 PM (IST)Updated: Thu, 07 Dec 2017 03:40 PM (IST)
एक बार जरूर जायें माउंट आबू में आस्था के इन चार केंद्रों पर
एक बार जरूर जायें माउंट आबू में आस्था के इन चार केंद्रों पर


गुरु शिखर पर दत्तात्रेय मंदिर

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अरावली पर्वतमाला का सर्वोच्च शिखर है गुरु शिखर, जो समुद्र तल से तकरीबन 1722 मीटर ऊपर है और शहर से 15 किलोमीटर दूर। यहां गुरु दत्तात्रेय का आश्रम व मंदिर हैं। मंदिर के करीब सीढि़यां बनी हुई हैं, जिनसे शिखर तक पहुंचा जा सकता है। यहां एक ऊंची चट्टान व विशाल घंटा लगा हुआ है। इस ऊंचाई से माउंट आबू औऱ भी खूबसूरत दिखाई देता है।

 

विश्‍व प्रसिद्ध दिलवाड़ा जैन मंदिर 

11 वीं से 13 वीं शताब्दी के दौरान चालुक्य वंश के वास्तुपाल और तेजपाल नामक दो भाइयों द्वारा दिलवाड़ा जैन मंदिर का निर्माण कराया गया था। यह जैन वास्तुकला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर का प्रवेशद्वार गुंबद वाले मंडप से होकर गुजरता है। सामने एक वर्गाकृत भवन है, जिसमें छह स्तंभ और दस हाथियों की प्रतिमाएं हैं। पांच मंदिरों के इस समूह में विमल साह द्वारा निर्माण कराया गया मंदिर सबसे पुराना है, जो प्रथम तीर्थंकर को समर्पित है। विमल साह, राजा भीमदेव प्रथम के मंत्री थे। इसके अलावा 22वें तीर्थंकर नेमीनाथ को समर्पित लुन वासाही मंदिर भी दर्शनीय है। यहां एक अदभुत देवरानी जेठानी का मंदिर है जिसमें भगवान आदिनाथ एवं शांतिनाथ जी की मूर्तियां स्थापित हैं। संपूर्ण मंदिर एक प्रांगण के अंदर घिरा हुआ है, जिसके चतुर्दिक छोटे स्तंभों की दोहरी पंक्तियां हैं। संगमरमर पत्थर पर बारीक नक़्क़ाशी के साथ इस विश्‍व विख्यात मंदिर में शिल्प-सौंदर्य का बेजोड़ ख़ज़ाना है। फूल-पत्तियों व अन्य डिजाइनों से अलंकृत, नक़्क़ाशीदार छतें, पशु-पक्षियों की शानदार आकृतियां, सफेद स्तंभों पर बारीकी से उकेरी गईं बेलें, जालीदार नक़्क़ाशी से सजे तोरण और इन सबसे बढ़कर जैन तीर्थकरों की प्रतिमाएं। 

 

अर्बुदा देवी मंदिर 

माउंट आबू से लगभग 3 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर प्राकृतिक गुफा में स्थित है अर्बुदा अर्थात् अधर देवी मंदिर। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, माता पार्वती के होंठ यहीं गिरे थे। तब से यह स्थान अर्बुदा देवी (अर्बुदा मतलब होंठ) के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर तक जाने के लिए 365 सीढि़यां चढ़नी पड़ती हैं। यहां नवरात्र के मौके पर देशभर से श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। 

 

गौमुख मंदिर 

गोमुख मंदिर परिसर में गाय की एक मूर्ति है जिसके मुख से प्राकृतिक रूप से एक धारा बहती रहती है। यहां तक कि गर्मियों में जब बाकी जलस्त्रोत सूख जाते हैं, तब भी इसका जल खत्म नहीं होता। स्थानीय पुजारी के अनुसार, ऋषि वशिष्ठ ने इसी स्थान पर यज्ञ का आयोजन किया था। मंदिर में अर्बुदा सर्प की एक विशाल प्रतिमा भी है। 


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