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चैतन्य महाप्रभु का पहला मंदिर आगरा में

आगरा में चैतन्य महाप्रभु का मंदिर बन रहा है। उत्तर भारत में महाप्रभु का मंदिर होगा। मंदिर का निर्माण महिलाएं करा रही हैं। प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा तीन दिवसीय आयोजन के साथ की जाएगी। चैतन्य महाप्रभु ने पूरे देश में घूम-घूमकर श्रीकृष्ण और राधा की भक्ति का प्रचार किया था। इन्हीं को इस्कॉन ने आधार बनाकर श्रीकृष्ण का प्र

By Edited By: Published: Sat, 21 Dec 2013 12:25 PM (IST)Updated: Sat, 21 Dec 2013 12:35 PM (IST)
चैतन्य महाप्रभु का पहला मंदिर आगरा में

आगरा। आगरा में चैतन्य महाप्रभु का मंदिर बन रहा है। उत्तर भारत में महाप्रभु का मंदिर होगा। मंदिर का निर्माण महिलाएं करा रही हैं। प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा तीन दिवसीय आयोजन के साथ की जाएगी। चैतन्य महाप्रभु ने पूरे देश में घूम-घूमकर श्रीकृष्ण और राधा की भक्ति का प्रचार किया था। इन्हीं को इस्कॉन ने आधार बनाकर श्रीकृष्ण का प्रचार-प्रसार विदेशों तक किया।

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राधे चैतन्य महाप्रभु सेवा समिति की अध्यक्ष अंजलि गोयल का दावा है कि टीचर्स कॉलोनी, प्रताप नगर में स्थित चिंता हरण महादेव मंदिर परिसर में बनाया जाने वाला यह उत्तर भारत में है।

जयपुर से आएंगी प्रतिमाएं- मंदिर का निर्माण कार्य एक महीने से तेजी से चल रहा है। इसके लिए साढ़े पांच फुट ऊंची दो प्रतिमाएं जयपुर से आएंगी। मंदिर के लिए 18 फुट चौड़ा, 34 फुट लंबा हाल बनाया जा रहा है। इसके ऊपर 18 फुट की बुर्जी बनाई जाएगी।

महिलाओं ने की अलकापुरी, प्रतापनगर की महिलाओं ने 30 अप्रैल 2010 को आगरा में पहली बार चैतन्य कथामृत का आयोजन कराया था। जिसमें कथा व्यास राजकुमार मिश्र ने कार्यक्त्रम के अंत में सभी महिलाओं को संकल्प दिलाया कि वे हर पूर्णमासी को संकीर्तन यात्रा निकालें। चैतन्य महाप्रभु का एक मंदिर में भी स्थापित कराएं। समिति की सुनीता अग्रवाल ने बताया कि तभी चार महिलाओं की समिति का गठन किया। लगातार इस प्रकार के आयोजन से सैकड़ों महिलाएं इसमें जुट गईं और अब 44 से अधिक महिलाएं इसमें सक्रिय हैं। 16 फरवरी को होगा प्राण प्रतिष्ठा समारोह-

समिति से जुड़े विजय बंसल और रवि अग्रवाल ने बताया कि प्रतिमा का तीन दिवसीय प्राण प्रतिष्ठा समारोह 16 फरवरी से होगा। जिसमें रमणरेती वृंदावन के महंत गुरु शरणानंद का सानिध्य मिलेगा।

ये हैं चैतन्य महाप्रभु-चैतन्य महाप्रभु को राधा-कृष्ण की भक्ति का अवतार माना जाता है। उनका जन्म बंगाल के नवद्वीप के श्रीधाम मायापुर में सन् 1486 में हुआ था। उन्हें पूरे देश में संकीर्तन करके आध्यात्मिक क्रांति की थी। 24 वर्ष की आयु में उन्होंने घर त्याग दिया था।

शिवाजी भी आते थे इस मंदिर में- जिस चिंताहरण मंदिर परिसर में इस मंदिर का निर्माण हो रहा है, यह ऐतिहासिक है। मंदिर के पुजारी महंत राधिकादास के अनुसार यहां काली माता का प्राचीन मंदिर है। जब शिवाजी जयपुर हाउस में अज्ञातवास पर रहे थे, तब वे इसी काली मंदिर के प्रतिदिन दर्शन करने आते थे।

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