अक्षय तृतीया से आरंभ होने वाला यह खुबसूरत पर्यटक स्थल ईश्वर की निकटता का बोध कराती है
नर-नारायण पर्वत में विराजमान बदरीनाथ विष्णु का धाम है। ग्रंथों में उल्लेख है कि असंख्य तीर्थ हैं, बद्रिकाश्रम सरीखा तीर्थ न कोई था, न कोई है,न ही होगा।
चारधाम यात्रा एक तरह से जीवन की ही यात्रा है। यह यात्रा हमें जहां प्रकृति के मनोहारी दृश्यों और ईश्वर की निकटता का बोध कराती है, वहीं इसमें संपूण जीवनदर्शन भी समाया हुआ है। इसीलिए इसे ‘नर यात्रा-नारायण यात्रा’ कहा गया, जिसका शुभारंभ अक्षय तृतीया के दिन यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने के साथ होगा। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री धाम से शुरू होने वाली यह यात्रा गंगोत्री धाम से केदारनाथ होते हुए बदरीनाथ पहुंचकर विराम लेती है।
कपाट खुलने की तिथि
यमुनोत्री धाम : 28 अप्रैल
गंगोत्री धाम : 28 अप्रैल
केदारनाथ धाम : 3 मई
बदरी नाथ धाम : 6 मई
एक दौर में जब आवागमन के साधन नहीं थे, तब घर-परिवार की जिम्मेदारियों से निवृत्त होकर भाग्यशाली दंपति पैदल ही चारधाम के लिए निकल पड़ते थे। दुर्गम यात्रा से उनके सकुशल वापस लौटने की खुशी में पूरा गांव उत्सव मनाया करता था। माना जाता था कि उनकी यात्रा का पुण्य पूरे गांव को प्राप्त होगा। कालांतर में संसाधनों के विकास से चारधाम यात्रा को पूरी दुनिया में ख्याति मिली और श्रद्धालुओं के लिए देवभूमि पुण्यभूमि बन गई।
चारधाम-यात्रा का शुभारंभ हरिद्वार से माना गया है। हरिद्वार को श्रीविष्णु के साथ-साथ शिव का द्वार भी माना जाता है। पहाड़ की कंदराओं से उतरकर गंगाजी यहीं मैदान में प्रवेश करती हैं। इसलिए हरिद्वार को गंगाद्वार भी कहा गया है। यहीं देवभूमि के प्रथम दर्शन भी होते हैं और यात्री मां गंगा को शीश नवाकर निकल पड़ते हैं मोक्ष के मार्ग पर। इस यात्रा का प्रथम पड़ाव है यमुनोत्री धाम।
यमुनाजी को भक्ति का उद्गम माना गया है, इसलिए धर्मग्रंथों में सर्वप्रथम यमुनाजी के दर्शनों की सलाह दी गई है। कहते हैं कि अंतर्मन में भक्ति का संचार होने पर ही ज्ञान के द्वार खुलते हैं और ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं सरस्वती स्वरूपा मां गंगा। भारतीय दर्शन की मान्यता है कि ज्ञान ही जीवन में वैराग्य का भाव जगाता है, जिसकी प्राप्ति मान्यता के अनुसार, भगवान केदारनाथ के दर्शनों से ही संभव है। जीवन का अंतिम सोपान
है मोक्ष और मान्यता है कि वह श्रीहरि के चरणों में ही मिल सकता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, जीवन में जब
कुछ पाने की चाह शेष न रह जाए, तब भगवान बदरी विशाल मोक्ष का मार्ग देते हैं। यही कारण है कि बद्रिकाश्रम को भू-वैकुंठ भी कहा गया है।
यमुनोत्री
चारधाम-यात्रा का प्रथम पड़ाव है यमुनोत्री धाम। यहां सूर्यपुत्री एवं शनि व यम की बहन देवी यमुना की आराधना
होती है। यमुनोत्री धाम से एक किलोमीटर की दूरी पर चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुनाजी का मूल उद्गम है। समुद्रतल से इस ग्लेशियर की ऊंचाई 4421 मीटर है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि यह पवित्र स्थान एक साधु असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने यहां देवी यमुना की आराधना की, जिससे प्रसन्न हो यमुना जी ने
उन्हें दर्शन दिए।
गंगोत्री
पौराणिक कथा है कि भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गंगाजी धरती पर अवतरित हुईं, इसीलिए उनका भागीरथी नाम भी है। गंगोत्री धाम में इन्हीं मां गंगा की पूजा होती है, जो समुद्रतल से 3140 मीटर की ऊंचाई पर
अवस्थित हैं। स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती का स्पर्श किया। बताते हैं कि
गंगाजी के मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने करवाया था। वैसे गंगाजी का वास्तविक उद्गम गंगोत्री से 19 किमी. की दूरी पर गोमुख में अवस्थित है। लेकिन श्रद्धालु गंगोत्री में ही गंगाजी के दर्शन करते हैं।
केदारनाथ
रुद्रप्रयाग जनपद में मंदाकिनी व सरस्वती नदी के आंचल में अवस्थित केदारनाथ धाम का देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में विशिष्ट स्थान है। श्रीमद्भागवत महापुराण में भी केदारनाथ धाम का जिक्र मिलता है। कथा है कि
महाभारत युद्ध के बाद पांडव अपने पापों का प्रायश्चित करने केदारनाथ पहुंचे और भगवान शिव की घोर तपस्या
की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव बैल के रूप में प्रकट हुए। तब से यहां बैल रूपी शिव के पिछले हिस्से की पूजा होती आ रही है। 2013 की आपदा में केदारपुरी पूरी तरह तहस- नहस हो गई थी, सिवाय मंदिर के वहां कुछ भी नहीं बचा। लेकिन तेजी से हुए पुनर्निर्माण कार्यों के चलते अब केदारपुरी सज-संवरकर यात्रियों
की अगवानी को तैयार है।
बदरीनाथ
नर-नारायण पर्वत के मध्य में विराजमान बदरीनाथ को भगवान विष्णु का धाम माना गया है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि स्वर्ग और धरती पर असंख्य तीर्थ हैं, लेकिन बद्रिकाश्रम सरीखा तीर्थ न कोई था, न कोई है,
न ही होगा। कथाओं के अनुसार, गंगाजी ने जब स्वर्ग से धरती के लिए प्रस्थान किया तो उनका वेग इतना तीव्र था कि संपूर्ण मानवता खतरे में पड़ जाती। इसलिए गंगाजी बारह पवित्र धाराओं में बंट गईं। इन्हीं में एक है अलकनंदा, जिसके तट पर बद्रिकाश्रम स्थित है। समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर चमोली जनपद में स्थित इस मंदिर का निर्माण कार्य आठवीं सदी में आदि गुरु शंकर