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गंगा हमारी मां है

मोक्षदायिनी पवित्र गंगा की निर्मल धारा अनेक स्वरूपों में अपने श्रद्धालुओं को लाभांवित करती है।

By Edited By: Published: Thu, 31 May 2012 04:40 PM (IST)Updated: Thu, 31 May 2012 04:40 PM (IST)
गंगा हमारी मां है

गढ़मुक्तेश्वर। मोक्षदायिनी पवित्र गंगा की निर्मल धारा अनेक स्वरूपों में अपने श्रद्धालुओं को लाभांवित करती है। आज उसी निर्मल धारा को श्रद्धालु ही प्रदूषित कर रहे है। श्रद्धालुओं की लापरवाही, अज्ञानता तथा नीजि स्वार्थों से गंगा लगातार मैली हो रही है। गंगा और प्रकृति पे्रमी गंगा की दुर्दशा को लेकर परेशान हैं और उसकी निर्मलता बनाए रखने के लिए सरकारी स्तर पर ही, बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर कार्य के पक्षधर हैं।

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भारतीय किसान यूनियन के जिला महा सचिव और गंगा की पवित्रता के लिए लंबे समय से कार्य कर रहे दिनेश खेड़ा कहते है कि श्रद्धालु अपने मैले तन को धोकर अपनी आस्था का दिखावा करते है। लेकिन अपने मन को पवित्र नहीं करते। अज्ञानता के साथ लोग गंगा में फूल, पुराने फोटो, मूर्तियां, यज्ञ व पूजा अर्चना की अवशेष सामग्री और राख फेंक देते है। इस पर रोक के लिए सरकारी प्रयास से ज्यादा हमारी सोच में बदलाव की आवश्यकता है। हमें मानना होगा कि बेकार सामग्री को गंगा में प्रवाहित कर हम कोई धर्म का कार्य नहीं कर रहा है। इस सामग्री को हम आस्था के साथ जमीन में भी दबा सकते हैं या फिर पौधों में डाल सकते हैं, हवन की राख और फूल आदि पौधों के लिए खाद का कार्य करते हैं। ऐसे में हम अपनी गंगा मईया को प्रदूषित होने से बचा सकते हैं।

गुरुकुल पूठ के संस्थापक स्वामी धर्मश्वरानंद सरस्वती कहते है कि भारतीय संस्कृतिक की धरोहर गंगा खतरे में है। कारखानों के जहरीले पानी और नगरों के नालों का पानी गंगा में लगातार गिरने के कारण गंगाजल आचमन योग नहीं रह गया है। ऐसे में गंगा के किनारे बसने वाले नगरों और कारखानों में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगवाने आवश्यक है। इसके लिए तो कानून बनना चाहिए। खुद श्रद्धालु भी संकल्प ले तो आबादी का नालों का पानी और कल कारखानों का जहरीला पानी गंगा में नही जा सकता है। श्रद्धालु अपनी मां का आंचल मैला नहीं होने दे सकते है।

गंगा बचाओं समिति के भारतभूषण गर्ग कहते है कि करोड़ों श्रद्धालु आस्था के साथ सोचे, चिंतन मंथन करें तथा अपनी आस्था के साथ खिलवाड़ न होने दे। संकल्प ले तो गंगा की भव्यता व निर्मलता नजर आ जायेगी।

पर्यावरणविद् प्रो. अब्बास अली कहते हैं कि गंगा का अस्तित्व हमारे खुद के अस्तित्व और जीवन से जुड़ा है। लेकिन अभी हम यह समझ ही नहीं पा रहे हैं। लेकिन हम सचेत नहीं हुए तो स्थिति काफी विकराल हो जाएगी। इससे बचने के लिए हमें गंगा की स्वच्छता का उसी तरह ध्यान रखना होगा जिस तरह एक बच्चे का ध्यान रखा जाता है। आस्था के नाम पर हवन आदि के अवशेष की बात तो दूर हमें गंगा में पोलीथीन तक डाल रहे हैं। जबकि इस पर कठोरता से पाबंदी लगनी चाहिए।

उप जिलाधिकारी पुष्पराज सिंह ने गंगा की पवित्रता के लिये स्वयं पहल कर जहरीला पानी रोके जाने का प्रयास शुरू किया है तथा गंगा तट के साथ साथ जगह जगह सफाई अभियान चलाया हुआ है। जिसका कुछ असर दिखने भी लगा है। लेकिन इस पर कड़ाई से अमल होना चाहिए और उसका पालन न करने वालों के खिलाफ कार्यवाही का प्रावधान होना चाहिए।

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