जल तो गंगा का है
एक दिन मुगल बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा, दुनिया में किस नदी का जल सबसे पवित्र है।
देहरादून। एक दिन मुगल बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा, दुनिया में किस नदी का जल सबसे पवित्र है। बीरबल बोले, यमुना का। लेकिन, अकबर यह मानने को तैयार नहीं थे। उन्होंने कहा यह कैसे हो सकता है, सबसे पवित्र जल तो गंगा का है। बीरबल का जवाब था, हुजूर वह जल नहीं, अमृत है। जल तो यमुना का ही पवित्र है।
यह है पतित पावनी गंगा का महात्म्य। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को स्वर्ग से धरती पर प्रकट हुई। इसलिए इस दिन को गंगा दशहरा कहा गया। ब्रहृपुराण में कहा गया है कि इस दिन गंगा स्नान व पूजन से दस प्रकार के पापों (तीन कायिक, चार वाचिक व तीन मानसिक) का नाश होता है। पौराणिक कथा के अनुसार सभी जानते हैं कि गंगा कैसे धरती पर अवतरित हुई। लेकिन, वास्तव में गंगा है क्या। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि गम्यते प्राप्यते मोक्षार्थिभिर्या स: गंगा अर्थात जिससे मोक्ष का ज्ञान प्राप्त हो, वही गंगा है। गंगा को पतित पावनी, मोक्ष प्रदायिनी माता कहकर आध्यात्मिक जगत में अधिष्ठात्री देवी की संज्ञा दी गई। आचार्य डॉ.सुशांतराज कहते हैं कि सामान्य दृष्टि से गंगा भी अन्य नदियों की भांति एक प्रवाहमान सरिता है, किंतु आध्यात्मिक दृष्टि में कोई भी नदी गंगा की तरह तुलनीय नहीं। महर्षि वाल्मीकि ने गंगा की उत्पत्ति हिमालय राज की पत्नी मैना से मानी है। स्कंद पुराण में उल्लेख है कि जब गंगा स्वर्ग से धराधाम पर उतरी, उस समय दस महायोग थे। इसी योग में श्रीराम ने सेतुबंध की स्थापना की।
यह हैं दस पाप
अन्यायपूर्वक धनार्जन, हिंसा, परस्त्रीगमन, कठोर वाणी बोलना, असत्य भाषण, परनिंदा, असंबद्ध प्रलाप, परसंपत्तिहरण की इच्छा, दूसरों को हानि पहुंचाने की इच्छा व व्यर्थ बातों का दुराग्रह।
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