आस्था और इतिहास का खूबसूरत संगम है वाणावर की गुफाएं!

  • Story By: धीरज

गुफाएं भी कभी निवास करने की सुरक्षित और हर मौसम के अनुकूल रही होंगी, वाणावर (बराबर) पहाड़ियों पर करीने से बनीं गुफाएं इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। पुरानी सभ्यताओं के बारे में जानने समझने के प्रति अभिरुचि रखने वाले पर्यटकों के लिए यहां की यात्रा यादगार

ऐसा भी कभी समय था जब गुफाएं लोगों के लिए सुरक्षित घर हुआ करती थीं और उन्हें हर तरह के मौसम से बचाने का काम करती थीं। वाणावर पहाड़ियों की गुफाएं इसका अच्छा उदाहरण हैं। अगर आपको कभी इन गुफाओं में जाने का मौका मिलता है, तो यह प्राचीन सभ्यताओं के बारे में जानने का एक अच्छा अवसर होगा। साथ ही आपको यहां आकर बहुत ही रोचक और रोमांचक अनुभव भी होगा। वाणावर पहाड़ियां बहुत पुरानी हैं और क्षेत्र के लोग इन्हें मगध का 'हिमालय' भी कहते हैं। यहां अक्टूबर से लेकर मार्च के बीच यात्रा करना सबसे अच्छा है।

सिद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक बहुत पुराना मंदिर है। यह वाणावर नामक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर में वैसे तो पूरे साल लोग जल चढ़ाने आते हैं, लेकिन सावन के महीने में यहां दर्शन करने के लिए लोगों की संख्या काफी अधिक होती है। मंदिर में बहुत समय पहले के कुछ विशेष लेख हैं जब अशोक नाम का राजा शासन करता था। ये लेख हमें इतिहास के बारे में बताते हैं और बताते हैं कि उस समय चीज़ें कैसे चलायी जाती थीं। वाणावर न केवल अपने पहाड़ों और जंगलों के लिए जाना जाता है, बल्कि उन पौधों के लिए भी जाना जाता है जिनका उपयोग दवा और लौह अयस्क के लिए किया जा सकता है। यह गया से लगभग 30 किलोमीटर और जहानाबाद से 25 किलोमीटर दूर है। इस स्थान का प्राकृतिक सौन्दर्य अत्यंत शान्त एवं स्वच्छ है। पहाड़ी पर आपको खूबसूरत रॉक पेंटिंग भी देखने को मिलेगी।


पिछले कुछ समय से इस जगह को और ज्यादा सुंदर और सुरक्षित बनाने के लिए सरकारी स्तर पर काम चल रहा है। सुरक्षा के लिए एक पुलिस स्टेशन बनवाया गया है। हर साल यहां राजकीय बाणावर महोत्सव का भी आयोजन होता है। वे पहाड़ पर चढ़ना आसान बनाने के लिए एक लंबा रोपवे बना रहे हैं, लेकिन इसमें काफी समय लग रहा है।

सम्राट अशोक ने बौद्ध भिक्षुओं के लिए बनाई थीं गुफाएं


वाणावर की पहाड़ियों पर कुल सात गुफाएं हैं, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। इनमें चार वाणावर पहाड़ियों पर और तीन पास में ही नागार्जुन की पहाड़ियों पर हैं। पहाड़ों को सावधानी से काट कर हजारों साल पहले इंसान इस बेहद सुंदर गुफाओं को बनाया। इनमें से कई गुफाओं की दीवारों को देखकर आप दंग रह जाएंगे। इसकी चिकनाई आज के समय में लगाई जाने वाली टाइल्स से कम नहीं है। मौर्य काल की यह स्थापत्य कला पर्यटकों को आश्चर्य से भर देती है। इनका निर्माण सम्राट अशोक के आदेश पर आजीवक संप्रदाय के बौद्ध भिक्षुओं के रहने के लिए करवाया गया था। इसमें कर्ण चौपर, सुदामा और लोमस ऋषि गुफा अपनी स्थापत्य कला के लिए देश और दुनिया में प्रसिद्ध हैं। गुफाओं के प्रवेश द्वार पर ही सम्राट अशोक के अभिलेख हैं। ब्राह्मी लिपि के जानकार इसे पढ़ और समझ पाते हैं। गाइड इसके बारे में विस्तार से बताते हैं।

7वीं सदी में बना था बाबा सिद्धनाथ का मंदिर


बाबा सिद्धनाथ मंदिर वाणावर पर्वत की चोटी पर स्थित एक विशेष स्थान है। इसका निर्माण बहुत समय पहले, सातवीं शताब्दी में हुआ था। लोग यह भी कहते हैं कि जरासंध नाम के एक बहुत ही महत्वपूर्ण सम्राट ने इस मंदिर का निर्माण उससे भी पहले एक अलग समय में किया था, जिसे द्वापर युग कहा जाता है। पुराने समय में, राजगीर किले तक जाने के लिए लोग एक छिपा हुआ रास्ता अपनाते थे। यह किला मगध का मुख्य शहर हुआ करता था। जरासंध भी इसी रास्ते का उपयोग कर मंदिर में प्रार्थना करने के लिए आते थे। पहाड़ी के नीचे विशाल जलाशय पातालगंगा में स्नान कर मंदिर में पूजा अर्चना की जाती थी। यह जलाशय आज भी है।

राजधानी पटना से कैसे पहुंचें बराबर


पटना से सड़क के रास्ते से आप यहां तीन से चार घंटे में पहुंच सकते हैं। पटना-गया राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 83 से होते हुए मखदुमपुर में जमुने नदी के पुल को पार करने पर पूरब की ओर सड़क जाती है, जो सीधे वाणावर तक पहुंचती है। ट्रेन से आने वाले लोग बराबर हॉल्ट पर उतर कर सवारी गाड़ी के माध्यम से भी यहां पहुंच सकते हैं। यहां पर्यटकों की सुविधा के लिए जिला प्रशासन की ओर से कई इंतजाम किए गए हैं, सुरक्षा के लिए पुलिस रहती है, वहीं खान-पान और ठहरने की सुविधा भी आसानी से मिल जाती है। नजदीकी हवाई अड्डा गया और पटना है। यहां के बाद आप बोध गया, नालंदा और राजगीर का भ्रमण कर सकते हैं। विश्व धरोहर की सूची में शामिल दो प्राचीन धरोहर के दर्शन कर सकते हैं। इनमें महाबोधि मंदिर बोधगया में और प्राचीन नालंदा महाविहार के भग्नावशेष नालंदा में हैं। इनके अतिरिक्त भी भ्रमण योग्य कई स्थल हैं।