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..उम्र-ए-दराज चार दिन

उम्र कम है तो यह सुनिए कि अभी तुम जानते क्या हो और बढ़ गई तो यह कि आपका जमाना और था। पता नहीं, हमारे जानने और सोचने की प्रक्रिया में लोग उम्र की भूमिका कैसे और क्यों तलाशते हैं! बहरहाल, कुछ अजीम शख्सीयतों के खयालात।

By Edited By: Published: Tue, 03 Dec 2013 01:01 PM (IST)Updated: Tue, 03 Dec 2013 01:01 PM (IST)
..उम्र-ए-दराज चार दिन

अफसोस, एक निश्चित उम्र के बाद हर शख्स अपने चेहरे के लिए खुद  जिम्मेदार होता है।

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अल्बर्ट कामू, फ्रेंच लेखक

50  की उम्र में हर शख्स  को वही चेहरा मिल जाता है, जिसका वह हकदार होता है। जॉर्ज ओरवेल,  भारत में जन्मे ब्रिटिश लेखक बुजुर्ग जो सोचते हैं, युवा उसे क्रियान्वित करते हैं।

रबींद्र नाथ टैगोर

बूढे होना एक बुरी आदत के सिवा कुछ नहीं है, जिसे पालने की फुर्सत एक व्यस्त आदमी के पास नहीं हो सकती।

आंद्रे  मॉरिस,  फे्रंच लेखक

बतौर पति एक पुराविद ही सर्वश्रेष्ठ हो सकता है। क्योंकि पत्नी की उम्र के साथ-साथ पुराविद की दिलचस्पी भी उसमें बढती जाती है।

अगाथा  क्रिस्टी,  ब्रिटिश लेखिका

चार मामलों में उम्र का मसला बहुत अर्थ रखता है। जलाने के लिए पुरानी लकडी, पीने के लिए पुरानी शराब, भरोसे के लिए पुराने दोस्त और पढने के लिए पुराने लेखक।

फ्रांसिस  बेकन, ब्रिटिश लेखक-विचारक

अगर कोई व्यक्ति केवल अपने ही अनुभव से सब कुछ सीखना चाहे तो उसके लिए जीवन बहुत छोटा पड जाएगा।

चाणक्य

यकीन मानिए, बुढापा बडा सुखद अनुभव है। यह सही है कि आप मंच से उतर चुके होते हैं, लेकिन बतौर दर्शक आपको सामने की सीट मिल जाती है। बैठें और मजा लें।

कनफ्यूशियस,  चीनी दार्शनिक

उम्र-ए-दराज मांग कर लाए थे चार दिन

दो आरजू में कट गए, दो इंतजार में

-बहादुर शाह जफर


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