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सफेद किला

वेनिस से नेपल्स की जहाजी यात्रा करने वाले युवा इतालवी विद्वान को ओटोमन शासक द्वारा बंदी बना लिया जाता है। कैद में उसकी भेंट विद्वान खोजा (गुरु) से होती है, जो उसका हमशक्ल है। बंदी कैदियों के इलाज के अलावा वह सुल्तान के लिए हथियार भी बनाता है। खोजा के साथ विज्ञान, तकनीक, औषधि व खगोल विद्या संबंधी ज्ञान के आदान-प्रदान के क्रम में दोनों के व्यक्तित्व में आश्चर्यजनक समानता आ जाती है।

By Edited By: Published: Wed, 01 Aug 2012 12:54 AM (IST)Updated: Wed, 01 Aug 2012 12:54 AM (IST)
सफेद किला

एक सुबह मुझे पाशा की हवेली में बुलाया गया। मैं यह सोचते हुए गया कि शायद उसकी पुरानी हांफने वाली बीमारी लौट आई है। पाशा व्यस्त था और मुझे एक कमरे में इंतजार करने को कहा गया। चंद लमहे बाद एक दरवाजा खुला। मुझसे उम्र में लगभग 5-6 साल बडा एक शख्स अंदर आया। मैंने उसे देखा तो हैरान रह गया। हम दोनों हूबहू एक जैसे थे। इतनी समानता कैसे? यह तो मैं ही था। यों महसूस हुआ जैसे कोई मेरे साथ चल रहा हो और जिस दरवाजे से मैं पहले दाखिल हुआ था, उसके सामने वाले दरवाजे से मुझे दोबारा अंदर लाया गया हो। आंखें चार होते ही हमने एक-दूसरे को सलाम किया, लेकिन वह उतना हैरान नहीं था। फिर मुझे लगा शायद मुझे कोई भ्रम हुआ है। मुझे आईना देखे ही एक साल हो गया है। उसके चेहरे पर दाढी थी, जबकि मैं सफाचट था।

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..सोच ही रहा था कि दरवाजा खुला और मुझे अंदर आने को कहा गया। पाशा मेरे हमशक्ल के पीछे बैठा था। मैंने पाशा को बोसा दिया। फिर इरादा किया कि जब वह मेरी खैरियत पूछेगा तो मैं अपनी काल कोठरी की तकलीफें बयान करूंगा और कहूंगा कि अब मैं वतन लौटना चाहता हूं। मगर वह सुन ही नहीं रहा था। लगता था, पाशा को याद था कि मैं विज्ञान, खगोल-विद्या, इंजीनियरिंग जानता हूं। उसने पूछा- तो क्या आसमान पर की जाने वाली आतिशबाजियों के बारे में भी मुझे कुछ आता है? बारूद के बारे में? मैंने फौरन कहा- हां, लेकिन जिस लमहे मेरी आंखें दूसरे आदमी की आंखों से चार हुई, मुझे शक हुआ कि कहीं ये लोग मेरे लिए कोई जाल न बिछा रहे हों।

दरअसल पाशा अपनी शादी के मंसूबे बना रहा था। उसे वह अद्वितीय ढंग से करना चाहता था, जिसमें आसमान पर की जाने वाली आतिशबाजी भी शामिल थी। मेरे हमशक्ल को पाशा खोजा (आका) कह रहा था। हमशक्ल ने कहा, पुराने समय में सुल्तान की पैदाइश के मौके पर आतिशबाजी का बंदोबस्त किया था। पाशा का ख्ायाल था कि मैं इस मामले में उसकी मदद कर सकूंगा। अगर तमाशा अच्छा पेश किया गया तो ईनाम मिलेगा। मैंने हिम्मत करके पाशा से कहा कि मैं अब अपने घर लौटना चाहता हूं तो बदले में पाशा ने मुझसे पूछा, यहां आने के बाद कभी चकले (कोठे) की तरफ गए हो? मैंने इनकार किया तो वह बोला, अगर तुम्हें स्त्री की चाह नहीं तो कोठरी से आजादी हासिल करने से क्या होगा? वह चौकीदारों से असभ्य भाषा में बात कर रहा था। मेरे चेहरे के परेशान हाव-भाव देख कर उसने दिल खोल कर कहकहा लगाया।

सुबह जब मैं अपने हमशक्ल के कमरे की ओर जा रहा था तो मुझे लगा कि मेरे पास उसे सिखाने को कुछ नहीं, मगर हकीकत में उसका इल्म भी मेरे इल्म से ज्यादा नहीं था। हम एकमत थे कि नाप-तोल कर सावधानी से प्रायोगिक बुरादा तैयार करें और रात को सुरदिबी के पास शहर की बुलंद फसीलों के साए में उन्हें दागें और फिर उसका निरीक्षण करें। बच्चे अचंभित होकर हमारे कारिंदों को रॉकेट छोडते देखते और हम अंधेरे में पेडों के नीचे चिंतित खडे नतीजे का इंतजार करते। इन प्रयोगों के बाद कभी चांदनी में तो कभी घोर अंधेरे में मैं अपने अनुभव एक छोटी-सी नोटबुक में लिखता। रात गुजरने से पहले हम खोजा के कमरे में लौटते, जिससे गोल्डन हॉर्न का दृश्य दिखाई देता था। हम बडी तफ्सील से उन पर बहस करते।

उसका घर छोटा व उबाऊ था। प्रवेश द्वार टेढी-मेढी सडक पर था, जो किसी गंदे पोखर के बहाव से गंदलाई थी। फर्नीचर नहीं था। वह चाहता था कि मैं उसे खोजा (आका) कहूं। वह मुझे गौर से देख रहा था, मानो मुझसे कुछ सीखने को इच्छुक हो, मगर क्या? इस बारे में वह तय नहीं कर पाया था। मैं छोटे दीवानों पर बैठने का आदी नहीं था, इसलिए खडे-खडे ही प्रयोगों के बारे में बातचीत करता। कई बार मैं कमरे में बेचैनी में टहलता। मेरा विचार है, खोजा को उसमें मजा आता था। वह बैठे-बैठे दिल भर कर मुझे देख सकता था, चाहे लैंप की मद्धिम रोशनी में ही।

उसकी निगाहों को अपना पीछा करते देख कर मुझे और बेचैनी होती कि उसने हमारे चेहरे की समानता पर अब तक ध्यान नहीं दिया था। मुझे यह भी खयाल आया कि हो सकता है वह यह बात जानता हो लेकिन अंजान रहने का ढोंग कर रहा हो। लगता था, जैसे मुझसे अपना दिल बहला रहा हो।

पाशा मुझ पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डाल रहा था। एक बार हम प्रयोगों के बारे में बात कर रहे थे तो खोजा ने पूछा कि मैंने धर्म परिवर्तन क्यों नहीं किया? शायद वह मुझे खुफिया ढंग से उलझाने की कोशिश में हो। मैंने जवाब नहीं दिया, पर उसने ताड लिया।

एक रात, किसी रॉकेट के असामान्य ऊंचाई तक पहुंचने पर ख्ाुश होकर खोजा ने कहा कि वह भी कभी ऐसा रॉकेट बना सकेगा, जो चांद तक जा सके। सारा मसला बारूद की सही मात्रा का था और ऐसे ढांचे के निर्माण का जो उस बारूद को बरदाश्त कर सके। मैंने ध्यान दिलाया कि चांद बहुत दूर है, लेकिन बीच में ही वह बोला कि यह बात उसे भी इतनी ही मालूम है। लेकिन क्या यह पृथ्वी का निकटतम ग्रह नहीं है? मैंने इस बात पर हामी भरी। दो दिन बाद एकाएक आधी रात के वक्त उसने दोबारा सवाल उठाया, मुझे चांद के निकटतम ग्रह होने पर इतना विश्वास क्यों है? हो सकता है, यह मेरा दृष्टिभ्रम हो। तभी मैंने उससे पहली बार अपनी खगोल विद्या का जिक्र किया और कॉस्मोग्राफी के आधारभूत नियमों की संक्षिप्त व्याख्या की। मैंने देखा कि वह ध्यान से सुन रहा है, लेकिन कुछ कहने से हिचकिचा रहा है। कुछ देर बाद जब मैं खामोश हो गया तो उसने कहा कि वह भी टोलेमी का इल्म रखता है। अगले दिन उसने एक भद्दा-सा अनुवाद मेरे हाथ में पकडाया। अच्छी तुर्की न जानने के बावजूद मैंने उसे पढ लिया। मेरी दिलचस्पी सिर्फ ग्रहों के अरबी नामों में थी और मैं जोश में आने के मूड में नहीं था। जब खोजा ने मुझे अप्रभावित देखा तो किताब रख दी। वह नाराज सा दिखा। उसने यह किताब चांदी के सात सिक्कों के एवज में खरीदी थी। किसी आज्ञाकारी छात्र की तरह मैंने दोबारा किताब उठाई और पृष्ठ पलटते हुए पुराना डायग्राम देखने लगा। इसमें बडे भद्दे अंदाज में ग्रहों को दिखाया गया था और उन्हें पृथ्वी के अनुरूप क्रम दिया गया था। हम बडी देर तक विचार-विमर्श करते रहे।

पूरी तैयारी के बाद हमने वह तमाशा दिखाया, जिसे हमने फव्वारा नाम दिया था। पांच आदमियों जितनी ऊंची मचान के मुंह से शोले बरसने लगे। तमाशबीनों को नीचे की ओर लपकते शोलों का दृश्य बेहतर नजर आया होगा। पहले तो कागज की लुगदी से ढले बुर्जो व फौजी किलों ने आग पकडी और फिर वे शोलों में भक्क से उड गए। ये पिछले सालों की विजय के प्रतीक के तौर पर था, जब उन्होंने मुझे बंदी बनाया था। दूसरी नावें हमारी नाव पर रॉकेटों के धमाकों के साथ हमलावर हुई थीं..।

अगली सुबह पाशा ने सोने से भरी थैली खोजा को भिजवाई-परियों की कहानी की तरह। उसने कहलवाया कि वह प्रदर्शन से बहुत खुश है। हम अगली दस रातों तक आतिशबाजी दिखाते रहे। दिन में जले ढांचों की मरम्मत करते। नित नए करतबों के मंसूबे बनाते और रॉकेटों को बारूद से भरने के लिए कैदियों को बुलवाते। इस तैयारी में एक ग्ाुलाम आंखें ही खो बैठा, जब बारूद की दस थैलियां उसके चेहरे के पास फट पडीं। शादी का जश्न खत्म होने के बाद मैं खोजा से दोबारा नहीं मिला। मैं उसकी टटोलती निगाह से दूर रहना चाहता था। वापस घर जाऊंगा तो सबको बताऊंगा कि वह मेरा हमशक्ल था। मैं अपनी कोठरी में बैठे रह कर रोगियों का निदान करता। फिर एक दिन पाशा का बुलावा आया। मैं खुशी से उछल पडा। पहले उसने मेरी तारीफ की, फिर कहा यदि मैं धर्म बदल लूं तो मुझे आजाद कर देगा। मैं भौचक्का रह गया। जब मैंने इंकार किया तो वह तैश में आ गया। मैं अपनी काल कोठरी में लौट आया।

तीन दिन बाद पाशा ने मुझे फिर बुलाया। वह अच्छे मूड में था। उसने फिर मुझे भांपने की कोशिश की और प्रलोभन दिया कि किसी खूबसूरत लडकी से मेरी शादी करवा देगा। मेरे इंकार पर उसने झुंझला कर कहा, तुम बेवकूफ हो। उसने मुझे फिर काल कोठरी में भिजवा दिया। तीसरी बार पाशा के बजाय एक दारोगा मिला। शायद मैं इरादा बदल लेता, लेकिन दारोगा की धमकी से मुझे ग्ाुस्सा आ गया। मैंने फिर इंकार कर दिया। वह मुझे निचली मंजिल पर ले गया, वहां किसी दूसरे के हवाले कर दिया गया। दूसरा व्यक्ति ऊंची कद-काठी वाला था। उसने भी मेरा बाजू पकडा और बाग के कोने में ले गया। वहां एक दूसरा व्यक्ति हमारे सामने आया। उसके हाथ में छोटी-सी कुल्हाडी थी। एक दीवार के पास दोनों रुके। उन्होंने मेरे हाथ-पैर बांधे और बोले यदि मैं धर्म नहीं बदलता तो मेरा सर कलम कर दिया जाएगा। वे मेरा फैसला जानना चाह रहे थे। मैं इंकार करता रहा। आखिर उन्होंने एक ठूंठ की ओर इशारा किया। मुझे घुटनों के बल बिठाया और उस पर मेरा सिर रख दिया। मैंने आंखें बंद कर लीं। एक ने कुल्हाडी हवा में बुलंद की। दूसरे ने कहा, शायद मैं फैसले पर पछता रहा हूं, इसलिए मुझे खडा कर दिया गया।

मुझे दोबारा छोड दिया गया। वे ठूंठ के पास वाली जमीन को खोदने लगे। मुझे लगा, शायद वे मुझे यहीं दफन करेंगे। मैं यह नहीं चाहता था। मुझे वक्त चाहिए था। मैं यह फैसला आनन-फानन नहीं कर सकता था। उन्होंने मुझे दोबारा बुलाया और धक्का देकर बिठाने लगे। किसी को दरख्तों के दरमियान हरकत करता देख मैं सिटपिटा गया। यह तो मैं था, लेकिन लंबी-सी दाढी में, हवा में बेआवाज चलता। मैंने चाहा कि दरख्तों में चलते अपने भूत को आवाज दूं, लेकिन ठूंठ पर सिर दबे होने के कारण बोल नहीं पाया। मैंने खुद को किस्मत के हवाले कर दिया। उन्होंने मुझे दोबारा खडा किया और गुर्रा कर बोले कि पाशा तुम्हारे इंकार से क्रोध में आ जाएगा, तुम मान क्यों नहीं जाते? फिर मेरे हाथ आजाद करते वक्त उन्होंने मेरी मलामत की कि मैं ऊपर वाले से नहीं डरता। वे मुझे हवेली में लाए। इस बार पाशा ने नरमी बरती। बोला कि उसे यह बात अच्छी लगी कि मुझे पता चल गया था कि वह निचली मंजिल में मौजूद था और मेरा इंतजार कर रहा था। मुझे एहसास हुआ कि यह खोजा ही है, जिसे मैंने बाग में दरख्तों के पार देखा था। हम पैदल चलते हुए उसके घर आए। उसने पूछा कि क्या मुझे भूख लगी है? मौत का डर अभी तक मुझ पर छाया था और मैं इस हालत में नहीं था कि कुछ खा-पी सकूं, फिर भी रोटी और दही के कुछ निवाले लिए। वह मुझे आश्वस्त होकर यों देख रहा था जैसे कोई देहाती अभी-अभी बाजार से नफीस घोडा खरीद लाया हो और उसे चारा खाते देख रहा हो।

बाद में उसने कहा कि मैं उसे सब सिखा दूं तो मुझे आजादी मिल जाएगी। यह सब क्या था, इसे जानने में महीनों लगे। इसमें हर वह चीज शामिल थी, जो मैंने प्राइमरी और सेकंडरी स्कूल में सीखी थी, वह सब जो काल कोठरी की किताबों में लिखा था, जिन्हें अगले दिन उसने नौकरों से मंगवा लिया। वह सब जो मैंने देखा-सुना था और जो मैं दरियाओं, पुलों, झीलों, गुफाओं, बादलों व समुद्रों के बारे में कह सकता था। जलजलों व ज्वालामुखी के बारे में मैं सब कुछ जानता था, लेकिन उसे सर्वाधिक रुचि खगोल-विद्या में थी..।

खिडकी से चांद की रोशनी अंदर आ रही थी। उसने कहा कि हमें चांद व जमीन के बीच वाले उस ग्रह का पता जरूर लगाना होगा, जो अब तक नहीं लग सका है। मैं उसका चेहरा देखता रहा। वह मेरा हमशक्ल था और मुझ सा बनना चाहता था। फिर धीरे-धीरे उसने सीखने की बात छोड दी। अब वह कहता था कि हम दोनों खोज कर रहे हैं-मिल कर एक-दूसरे के सहयोग से.. इसमें न कोई गुरु है, न कोई शिष्य..।

साभार: आर्य प्रकाशन मंडल, नोबेल पुरस्कार विजेताओं की 51 कहानियां

संपादन: सुरेंद्र तिवारी


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