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नई पौध

युवा पीढ़ी दिशाहीन है, ज़्िाम्मेदार नहीं है, बेहद आत्मकेंद्रित है, उसे दूसरों की परेशानियों से कुछ लेना-देना नहीं.. औरों की तरह प्रकाश दंपती का भी यही ख़्ायाल था, जो पड़ोस में रहने वाले छात्रों की धमाचौकड़ी और शोरगुल से तंग आ चुके थे। लेकिन एक दिन उनकी यह धारणा हमेशा के लिए बदल गई और हाथ अनायास आशीर्वाद के लिए उठ गए।

By Edited By: Published: Mon, 01 Oct 2012 04:18 PM (IST)Updated: Mon, 01 Oct 2012 04:18 PM (IST)
नई पौध

रात के ग्यारह बज चुके थे। प्रकाश दंपती के सोने का समय टलता जा रहा था। नींद आंखों पर दस्तक देकर लौट चुकी थी। नींद से वैसे भी इनके संबंध मधुर नहीं कहे जा सकते। दोनों दवा खाकर नौ बजे बिस्तर पर जाते हैं। सब ठीक रहा तो कुछ देर बाद नींद आ जाती है। तडके पांच बजे उठते हैं। सैर-योग, चाय-नाश्ते के बाद साथ बैठते हैं। प्रकाश पचहत्तर पार और मिसेज्ा प्रकाश सत्तर की। दोनों शांति से रह रहे थे, लेकिन पिछले कुछ दिनों से शांति पर जैसे ग्रहण लग गया था। नींद की गोलियां प्रभाव खो रही थीं। पडोस में शोर बढ रहा था।

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पडोस का मकान आर्या जी का है। अच्छे मित्र हैं। दोनों ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी की और उच्च पदों से सेवानिवृत्त हुए। आर्या जी के कहने पर प्रकाश जी ने प्लॉट ख्ारीद तो लिया, लेकिन नागपुर में घर बनाने का उनका इरादा न था। आर्या जी का ही आग्रह था जो उनका भी घर बन गया। आर्या जी जानते थे कि प्रकाश रेती-गिट्टी-सीमेंट के झंझट में पडने वाले हैं नहीं। यही होगा कि रिटायरमेंट के बाद प्लॉट बेच कर फ्लैट ख्ारीद लेंगे। पीछे पडकर उन्होंने अपने साथ प्रकाश जी का भी मकान बनवा लिया।

लेकिन आर्या जी के भाग्य में रिटायरमेंट के बाद नागपुर में रहना नहीं लिखा था। रिटायर हुए तीन साल ही हुए थे कि मिसेज आर्या का कैंसर से निधन हो गया। अकेले आर्या जी नागपुर में रहकर क्या करते! बेटा पुणे में इंजीनियर है। इसलिए उन्होंने नागपुर का मकान किराए पर उठा दिया और ख्ाुद बेटे के पास चले गए। पिछले दस सालों में जो भी किराएदार रहे, उनसे प्रकाश दंपती को कोई कष्ट नहीं हुआ। वक्त-ज्ारूरत लोग मदद ही करते। किराएदार के लिए रखी जाने वाली शर्तो में आर्या जी की एक शर्त यह भी थी कि पडोस में रहने वाले प्रकाश-दंपती को परेशानी न हो। मकान में मरम्मत होनी थी, जो आर्या जी गर्मियों में आकर कराना चाहते थे। लिहाज्ा पिछले किराएदार के जाने के बाद उन्होंने छात्रों को रख लिया, ताकि परीक्षा के बाद मकान ख्ाली करवाया जा सके।

पहले दो महीने अच्छे बीते। इंजीनियरिंग के दो छात्र थे। सुबह नौ बजे निकलते तो रात को ही लौटते थे। एक बार मिसेज्ा प्रकाश ने पूछा भी एक छात्र से कि क्या इतनी रात तक कॉलेज लगता है? नहीं आंटी, हम दोस्तों के यहां चले जाते हैं। बोर होते हैं यहां अकेले। कुछ दिन बाद तीसरा छात्र आया, फिर चौथा और दो-एक सप्ताह में छात्रों की संख्या का सही अनुमान लगाना कठिन हो गया। लेकिन प्रकाश दंपती को परेशानी नहीं हुई। पडोस गुलज्ार हो गया था। धीरे-धीरे पडोस में छात्र बढने लगे। माहौल बदलने लगा। देर रात तक जमघट रहता। दो छात्र शाम को फाटक खोलते दिखाई देते तो सुबह पांच-सात छात्र मकान से निकल कर कॉलेज जाते। पढाई कम, धींगामुश्ती अधिक होती। ज्ाोर-ज्ाोर से गाने बजते। कई बार वे ख्ाुद भी गाते। शोर तब शुरू होता, जब प्रकाश दंपती का सोने का समय होता। आख्िार एक दिन पानी सिर से ऊपर हो गया तो मिसेज्ा प्रकाश वहां गई, बोलीं, देखो बच्चों, आप देर रात तक शोर करते हो, इससे हमारी नींद हराम हो जाती है।

आंटी जी, आप खिडकी-दरवाज्ो क्यों नहीं बंद कर लेतीं? एक छात्र ने प्रतिक्रिया दी।

अरे बेटा, खिडकी-दरवाज्ो तो बंद ही रहते हैं। उसके बावजूद शोर सुनाई देता है।

अरे, इस उम्र में भी आप लोगों को इतना तेज्ा सुनाई देता है। हम पहले जहां रहते थे, वहां तो रात-रात भर ऊधम मचाते थे, किसी ने कुछ नहीं कहा।

तो वहीं क्यों नहीं रहे? यहां क्यों आ गए?

वो हमारा ट्रेड-सीक्रेट है, एक छात्र ने लापरवाही से जवाब दिया था।

हमारे कान अब तक सही हैं, शायद इसीलिए तकलीफ ज्यादा होती है। हम हाइपरटेंशन के मरीज्ा हैं। रात को नींद की गोली खाकर सोते हैं। गोली लेने पर भी नींद न आए तो समझो अगला दिन परेशानी में गुज्ारेगा। आंटी, ब्लड-प्रेशर, आथ्र्राराइटिस, प्रोस्टेट, उनींदापन तो बढती उम्र के साथ सीने पर लगने वाले तमगे हैं जो दर्शाते हैं कि आप बुज्ाुर्ग हो गए। बल्कि आंटी हमारे साथ डांस करने आ जाएं। खाना हज्ाम होगा तो नींद भी आ जाएगी।

मिसेज्ा प्रकाश को ग्ाुस्सा तो आया, लेकिन उन्होंने ऊपरी मन से इतना ही बोलीं, मेरा बेटा मनीष इंजीनियर है। बैंगलोर में है। मैंने उसे तो कभी ऊधम मचाते नहीं देखा।

एक छात्र बोला, आंटी जी, पुरानी बात मत कीजिए। दस साल पहले मोबाइल देखा था आपने? यहां छतों पर जो डीटीएच छतरियां दिख रही हैं वे थीं पहले? आपका बेटा सात साल पहले इंजीनियर बन गया। उसे जॉब भी मिल गया। पर आंटी आज क्या हाल है, पता है? आपके बेटे की पूरी पढाई में जितना ख्ार्च आया होगा, उतना तो एक साल में आ जाता है। हमें कितना टेंशन है, आप लोगों को क्या पता! ऐसे में, हम मस्ती करके टेंशन दूर करना चाहते हैं तो आपको प्रॉब्लम हो जाती है।

बहस निरर्थक जानकर मिसेज्ा प्रकाश लौट आई। सुबह प्रकाश जी ने आर्या जी को फोन पर पूरी कहानी सुना दी। आर्या जी ने छात्रों से न जाने क्या कहा कि दो-चार दिन शोर कुछ कम हुआ। लेकिन फिर शोर-शराबा शुरू हो गया। 31 दिसंबर की रात तो उनके सब्र का बांध टूट गया। शोर सुबह के तीन बजे तक चलता रहा। आख्िार प्रकाश जी वहां गए। मिसेज्ा प्रकाश आशंकित हुई। पीछे-पीछे वह भी चली गई। प्रकाश जी बोलते रहे-मगर छात्रों के कानों पर जूं भी नहीं रेंगी। आख्िार उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट कराने की बात कही तो छात्र शांत हुए। सुबह तक प्रकाश दंपती करवटें बदलते रह गए। अगले दिन उन्होंने फिर आर्या जी को फोन लगाया। आर्या जी अगले संडे ही नागपुर आ गए और छात्रों से मकान ख्ाली करने को कह दिया। उनके सबसे छोटे साले भैरोप्रसाद नागपुर में रेजिडेंट कलेक्टर थे। उनका हवाला देते हुए आर्या जी ने छात्रों को चेतावनी दी कि पुलिस में रिपोर्ट करने पर उनका करिअर चौपट होते देर नहीं लगेगी।

यहां के लोग बाहरी छात्रों को मकान किराए पर नहीं देना चाहते थे, इसलिए उन्हें मुश्किल हो सकती थी। आर्या जी की पुणे की बस शाम को थी। वे निकलने वाले थे कि दो छात्र मिलने आ गए। कहने लगे, चलिए अंकल, हम आपको बस स्टैंड तक छोड देते हैं।

नहीं। आप लोगों ने मेरे बुज्ाुर्ग मित्र का मन दुखाया है। इसलिए मैं आपसे बात करना भी मुनासिब नहीं समझता, आर्या जी फट पडे। हम शर्मिदा हैं अंकल। हमारे कुछ दोस्त आ जाते थे। प्लीज्ा हमें माफ कर दीजिए। इस समय नया घर ढूंढना हमारे लिए मुश्किल है। मेहरबानी करके सेशन चलने तक हमें यहां रहने दीजिए। आर्या जी जल्दी में थे। उन्होंने मकान ख्ाली करने की तारीख्ा देकर फैसला प्रकाश जी पर छोड दिया। इस घटना को दो हफ्ते बीत गए थे। प्रकाश दंपती के तेवर में कोई फर्क नहीं आया था। अलबत्ता अब शोर-शराबा थम चुका था और छात्र पढाई में जुटे नज्ार आने लगे थे। मगर एक दिन फिर पडोस में शोर मचा। प्रकाश जी ने सोचा कि ख्ाुद जाकर उन्हें डांट दें। लेकिन मिसेज्ा प्रकाश ने मना कर दिया। कहने लगीं, ये उम्र होती ही है मस्ती की। बेचारे दिन-रात किताबों में लगे रहते हैं। एकाध दिन मस्ती कर लेंगे तो क्या हो जाएगा। किसी का बर्थ डे है शायद आज, इसलिए पार्टी कर रहे हैं।

प्रकाश जी का क्रोध ख्ात्म नहीं हुआ। बोले, कल ही आर्या को फोन करके कहता हूं कि पुलिस में रिपोर्ट कर दे। एक दिन लॉकअप में रहेंगे तो होश ठिकाने आ जाएंगे।

देखिए ये नई पौध है। ख्ाुद में मगन। इन्हें न तो समाज की चिंता होती है और न मां-बाप की। फिर हमारी क्या चिंता करेंगे ये! मिसेज्ा प्रकाश ने कहा तो प्रकाश जी बोले, कल ही फैसला कर डालता हूं..। दोनों सो गए। रात में अचानक प्रकाश जी की नींद खुली। उन्हें कुछ आवाज्ा सी सुनाई दी। देखा मिसेज्ा प्रकाश बिस्तर पर नहीं हैं। तभी एक चीख-सी सुनाई दी। लगा मानो कोई किसी का गला घोंट रहा है। सहमे हुए से बिस्तर से उठे और बाथरूम की ओर मुडे ही थे कि किसी ने सिर पर भारी चीज्ा से वार कर दिया। कुछ समझ पाते इससे पहले ही वे बेहोश हो चुके थे।

..होश आया तो देखा, हाथ और सिर पर पट्टी बांधे मिसेज्ा प्रकाश उनके सिरहाने बैठी हैं। प्रकाश जी ने कुछ याद करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें मूर्छा-सी आ गई। हॉस्पिटल में नीरव शांति पसरी थी। कुछ देर बाद उन्होंने फिर आंखें खोलने की कोशिश की। अबकी उनकी नज्ार कमरे में एक ओर बिछे बेंच पर गई। वहां कोई लेटा था। उन्होंने धीमी आवाज्ा में पूछा, मनीष आ गया क्या?

नहीं, यह तो गुरु है, हडबडाकर आंखें खोलते हुए मिसेज्ा प्रकाश ने जवाब दिया। प्रकाश जी को चालीस घंटे बाद होश में आया देख पत्नी का चेहरा खिल उठा।

गुरु!

हां, पडोस में रहने वाला वही लडका, जिससे हमारी बहस हुई थी।

ये यहां क्यों है!

इन्हीं के कारण जीवित रह पाए हैं हम लोग। मैं बाथरूम के लिए उठी तो देखा पिछवाडे के दरवाज्ो की कुंडी खुली है। मुझे लगा शायद रात में लगाना भूल गई हूं। बंद करने गई थी कि किसी ने पीछे से मेरा मुंह बंद कर दिया। दूसरे ने आकर मेरे गले पर छुरा रख दिया। मुझे समझ आ गया कि घर में चोर घुस चुके हैं। चोरों ने इतनी देर में सब कुछ समेट लिया था। बैंक से आज ही जो कैश लाई थी, वह भी साफ कर दिया। मैं पांच मिनट बाद उठती तो वे भाग चुके होते।

आपके उठने के पहले से एक चोर पलंग के पास खडा था। मैं उसे देख रही थी पर, मेरा मुंह दबा होने के कारण कुछ कर नहीं पा रही थी। उन्होंने मुझे बुरी तरह जकड रखा था। आपके उठते ही उसने आप पर वार कर दिया। आप जैसे ही गिरे, मुझमें न जाने कहां से इतनी ताकत आ गई और मैंने ज्ाोर लगा कर ख्ाुद को छुडा लिया। पीछे के दरवाज्ो से भाग कर ज्ाोर-ज्ाोर से चोर-चोर चिल्लाने लगी। शोर सुन कर ये बच्चे तुरंत बाहर निकल आए। इन्होंने चोरों का दूर तक पीछा किया। बाकी तो भाग निकले, एक इनके हाथ आ गया।

मुझे अस्पताल में किसने दाख्िाल किया?

इन्हीं बच्चों ने। एक ने पुलिस को फोन करके चोर को उनके हवाले किया। दूसरे ने एंबुलेंस बुलवाई। आपके सिर से काफी ख्ाून बह चुका था। डॉक्टरों ने कहा कि ख्ाून चढाने की ज्ारूरत पडेगी तो इन्होंने ही चार बोतल ख्ाून दिया। ..आप यकीन नहीं करेंगे, उस रोज्ा आधी रात को न जाने कहां-कहां से यहां बीस बच्चे इकट्ठे हो गए थे। सब इनके साथ पढने वाले छात्र थे। सुबह तक एक भी यहां से नहीं हिला। मैं भी कुछ देर के लिए बेहोश हो गई थी। मुझे होश आया तो कहने लगे, आंटी जी, आप बिलकुल चिंता मत कीजिए। आपका बेटा नहीं है पास में तो न सही, हम 20-25 छात्र हैं। हम आप दोनों को कुछ नहीं होने देंगे। दवा लाना, घर की देखभाल, डॉक्टर, पुलिस जैसे सारे काम ये बच्चे ही संभाल रहे हैं। पैसे निकालने के लिए एटीएम कार्ड देने लगी तो बोले, आंटी, अभी रहने दीजिए। आप दोनों ठीक होकर घर आ जाएंगे, तब दे दीजिएगा। अभी हम लोगों ने मैनेज कर लिया है।

मनीष को फोन नहीं किया तुमने? प्रकाश जी ने जानना चाहा।

पहला फोन इन बच्चों ने ही किया था उसे। मैंने नंबर दे दिया था। मैं तो बात करने की स्थिति में थी ही नहीं। मनीष ने कई मर्तबा डॉक्टर से बात की। आज सुबह फिर बात हुई तो कह रहा था कि ऑफिस में कोई ज्ारूरी प्रोजेक्ट चल रहा है, जिसमें उसका होना ज्ारूरी है। इसलिए वह कल रात वहां से निकल कर परसों सुबह यहां पहुंचेगा। गुरु ने ही मनीष को आश्वस्त किया है। कल फोन पर मैंने उसे कहते सुना, मनीष भाई, आप बिलकुल चिंता मत कीजिए। हम लोग यहां हैं। आप अपना काम ख्ात्म करके ही आइए। तब तक हम सब संभाल लेंगे।

प्रकाश जी ने पास के बेंच पर सोए हुए गुरु पर एक नज्ार दौडाई। हिलने-डुलने में भी असमर्थ प्रकाश जी अपने हृदय में उमडी हिलोर को केवल नज्ार के माध्यम से ही गुरु के शरीर तक पहुंचा सकते थे। मिसेज्ा प्रकाश से यह छिपा न रह सका। कहने लगीं, दो रातों से सोया नहीं है यह बच्चा। आज जब डॉक्टर ने कहा कि अब ख्ातरा टल चुका है तो मैंने जबरदस्ती इसे दूध-ब्रेड खाने को दिया और डांट कर इसे यहीं बेंच पर सो जाने को कहा। इनके भी पढने-लिखने के दिन हैं, एग्ज्ौम्स होने वाले हैं, लेकिन ये लोग दो दिनों से यहां शिफ्ट-ड्यूटी बजा रहे हैं। ..मज्ोदार बात यह है कि ये सब बिहार के पूर्णिया जिले के रहने वाले हैं। आप जानते हैं यह गुरु तो मेरीगंज का है।

मेरीगंज?

हां, वही मेरीगंज जिसका उल्लेख फणीश्वर नाथ रेणु जी के मैला आंचल में आता है। खेलावन यादव जैसे चरित्र मेरीगंज के ही तो हैं उस उपन्यास में। गुरु बता रहा था, आंटी जी, मैंने घर की गाय का दूध पिया है। इसलिए इतना हट्टा-कट्टा हूं। ऐसे दो-चार चोरों को तो मैं अकेले ही निपटा देता। मिसेज्ा प्रकाश पिछले दो दिनों में घटित कई बातें बतलाना चाहती थीं, लेकिन प्रकाश जी को फिर नींद आ गई। नींद में भी उनका एक हाथ आधा उठा था, मानो बेंच पर सोए हुए गुरु को आशीष दे रहे हों। एक पल में मन में जमी सारी कडवाहट धुल चुकी थी।

भगवान वैद्य प्रखर


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