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घरौंदा

कई वर्ष तक गृहस्थी की गाड़ी अकेले दम पर खींचते-खींचते वह थक गए थे। बहू के आने से अब उनके मन में निश्चिंतता के भाव आने लगे।

By Edited By: Published: Tue, 18 Apr 2017 03:39 PM (IST)Updated: Tue, 18 Apr 2017 03:39 PM (IST)
घरौंदा

कहानी के बारे में : कहानियां हमारे आसपास के परिवेश से पैदा होती हैं। कई बार जीवन में ऐसी घटनाएं होती हैं कि कलम उन्हें लिखने को विवश हो जाती है। कहानीकार के बारे में : पिछले 15वर्षों से लेखन में, कई रचनाएं विभिन्न समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में प्रकाशित और आकाशवाणी से वार्ताएं प्रसारित। संप्रति : रायपुर (छत्तीसगढ)

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गजरों के बीच झांकते गुलाबों से सजा शयनकक्ष, शर्म से सिमटी हुई दुलहन रीतूबेकरारी से अपने दूल्हे की प्रतीक्षा कर रही थी। बार-बार कभी अपनी ओढऩी के कोने को गोल-गोल लपेटती, कभी खोलकर ठीक करती। साफ दिख रहा था कि वह कितनी बेचैन है। बेला-गुलाब की मिली-जुली सुगंध उसे मदहोश बनाए दे रही थी। अनमनी सी वह अपने कमरे का अवलोकन करने लगी। कमरा करीनेसे सजा था, एक कोने में टेबल रखी थी, जिस पर एक गुलदस्ता था। साइड टेबल पर एक तश्तरी में नमकीन और मिठाइयां रखी थीं। उसकी नजरदरवाजे से टकराई, वह भी कलात्मकता से सजा हुआ था।

लमहे सरकते जा रहे थे लेकिन समीर का कहीं पता न था। बेचैन सी रीतूने घडी देखी, डेढ बज रहे थे। नींद आंखों से कोसों दूर थी। हर स्त्री के लिए यह रात यादगार होती है। अचानक उसे आभास हुआ कि दबे-पांव कोई उसके पास आ खडा हुआ है। पलट कर देखा तो उसका दूल्हा था। समीर आंखों ही आंखों में उससे माफी मांग रहा था। वह रीतूके पास आकर बैठ गया। उसने धीरे-धीरे रीतूके बालों में अपनी उंगलियां फिराईं तो थकी सी रीतूको लगा मानो किसी ने शहनाई के सुर छेड दिए हों। उसकी आंखें बंद होने लगीं। लग रहा था, यह पल बस यहीं ठहर जाए। समीर ने रीतूका मुंह ऊपर करते हुए कहा, 'सही कहते थे लोग, चांद भी तुम्हें देख कर छुप जाए। कॉलेजमें यूं ही तुम्हारे चर्चे नहीं होते थे। समीर और रीतूएक ही कॉलेजमें पढते थे। उनकी मुलाकात कभी कैंटीन में तो कभी लाइब्रेरी या कॉलेजकंपाउंड में हो जाती थी।

शायराना अंदाज में समीर के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर रीतूका चेहरा शर्म से लाल हो गया। वह समीर की बांहों में समा गई। ससुराल में दूसरा दिन रस्मों-रिवाजों और पूजा-पाठ में कैसे बीता, पता ही नहीं चला। दूसरी रात समीर ने रीतूका हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, 'मैं आज तुमसे एक बहुत ही अहम मुद्दे पर बात करना चाहता हूं।

रीतूने हैरानी से उसकी ओर देखा तो वह बोला, 'रीतू, बचपन में ही मां हमसे दूर चली गई। बिन औरत हर घर सून वाली कहावत हमारे घर पर पूरी तरह लागू होती है। बाबूजीने बहुत कष्ट सहे लेकिन उन्होंने मुझे और छोटे भाई विपिन को मेहनत से पाला-पोसा। तुम्हें पता होगा कि जिस घर में औरत नहीं होती, उसकी क्या हालत होती है....। समीर का दर्द उसके शब्दों में साफ झलक रहा था। उसने रीतूकी पेशानी को चूमते हुए कहा, 'रीतू, मैं चाहता हूं कि तुम अपने प्यार व स्नेह से इस कमी की पूर्ति करो, घर के प्रति तुम्हारे दायित्व में कहीं कोई कमी न आने पाए...।

ये सब बातें सुन कर रीतूने अपने कांपते हाथों को पति के हाथ में रखा। शायद यह उसकी मौन स्वीकृति थी। फिर उसने कहा, 'तुम घर के प्रति निश्चिंत हो जाओ, अब यह हमारा घर है, मेरा अपना घरौंदा। मां-बाप की नाजों से पली बेटी को हमेशा यही सीख दी जाती है कि उसे पराएघर जाना है, वही उसका अपना घर होगा....। यही सीख दिल में बसा कर वह ससुराल चली जाती है। शायद यही परम पिता परमात्मा का बनाया संसार है। रीतूकी यह बात सुन समीर के सिर से मानो एक बडा बोझ उतर गया। उसे महसूस होने लगा था कि उसने अपने लिए सही जीवनसाथी का चयन किया है।

तीसरे दिन ससुर ने रीतूको बुला कर कश्मीर के दो टिकट देते हुए कहा, 'जाओ बहू, तुम और समीर कुछ दिन घूमो, एक-दूसरे के साथ समय बिताओ। रीतूने ससुर के पांव छूते हुए कहा, 'बाबू जी नए जीवन की शुरुआत के लिए हमें अपनों को छोड कर इधर-उधर भटकने की जरूरतनहीं, हम यहीं घूम लेंगे। नई बहू के मुंह से ये सब बातें सुनकर बाबू जी गद्गद हो उठे। उन्होंने रीतूके सिर पर हाथ रखते हुए कहा, 'सदा सुहागिन रहो मेरी बच्ची...। समीर दरवाजे के पास खडा होकर ससुर और बहू की बातचीत सुन रहा था। उसे रीतू पर गर्व महसूस हो रहा था।

समीर का छोटा भाई विपिन पढाई में तेज था। वह भाभी के पीछे-पीछे घूमता रहता, नोट्स तैयार करने में भी मदद लेता था। समीर और विपिन छोटे से थे, जब उनकी मां का साया उनसे उठ गया था। रिश्तेदारों के बहुत समझाने के बावजूद बाबू जी दूसरी शादी करने को तैयार नहीं हुए। उन्हें लगता था, उन्हें पत्नी तो मिल जाएगी लेकिन बच्चों को मां मिले, इसकी गारंटी नहीं होगी।

कई वर्ष तक गृहस्थी की गाडी अकेले दम पर खींचते-खींचते वह थक गए थे। बहू के आने से अब उनके मन में निश्चिंतता के भाव आने लगे। समीर एक सप्ताह से शहर से बाहर था। एक शाम विपिन और रीतूघर में बैठे थे कि रीतूने महसूस किया कि विपिन बात करते-करते कहीं खो जाता है। भाभी की पारखी नजरोंने इस बात को ताड लिया। उसने विपिन से पूछा, 'क्या बात है देवर जी, काफी उखडे से दिख रहे हैं? ठीक से खाना भी नहीं खाते... कहीं कोई परी तो नहीं भा गई...।

इस अप्रत्याशित सवाल पर विपिन हडबडा गया और संभल कर बोला, 'हां भाभी, बात तो कुछ ऐसी ही है। मुझे एक लडकी पसंद है। मेरे ही साथ पढती है चित्रा। हम शादी भी करना चाहते हैं मगर बाबू जी कभी तैयार नहीं होंगे क्योंकि उसकी जाति अलग है...। रीतूने देवर की पीठ पर हाथ रखते हुए कहा, 'तुम मुझे उससे मिलाओ, इसके बाद देखूंगी कि बाबू जी को कैसे तैयार करना है।

दुर्गा पूजा के दो-चार दिन पहले रीतूके पापा का पत्र आया कि वह रीतूको लेने आ रहे हैं। बाबू जी चिट्ठी लेकर रीतूके पास आकर बोले, 'बहू तुम मायके जाने की तैयारी कर लो, तुम्हारे पापा तुम्हें लेने आ रहे हैं। रीतूने कुछ सोचते हुए जवाब दिया, 'बाबू जी, अभी मैं मायके नहीं जाऊंगी क्योंकि यहां आप लोगों को तकलीफ हो जाएगी। इसलिए आप पापा को कह दें कि हम फिर कभी उनसे मिलने आ जाएंगे।

रीतूकी बात से बाबू जी अचंभितरह गए। उन्हें जितनी उम्मीद थी, उससे कहीं बढ कर उन्हें मिल रहा था। बहू ने इस घर में स्त्री की कमी पूरी कर दी थी। उन्हें विश्वास हो चला था कि अब यह घरौंदाकभी नहीं टूटेगा। नवरात्रके पहले ही दिन विपिन का नियुक्ति पत्र आ गया। इसके बाद तो पूरे नौ दिन घर में उत्सव का माहौल रहा। एक शाम रीतूघर में अकेली थी, तभी दरवाजे की घंटी बजी। उठ कर दरवाजा खोला तो विपिन के साथ एक लडकी को देखा। रीतूसमझ गई कि यह वही लडकी चित्राहै, जिसका जिक्र विपिन ने किया था। चित्रातीन घंटे रीतूके साथ रही और इस बीच रीतूइतना समझ गई कि यह लडकी बहुत समझदार और परिपक्व है। चित्राके जाने के बाद रीतूने विपिन से कहा कि उसे लडकी पसंद है मगर बात तभी बनेगी, जब बाबू जी भी उसे पसंद कर लें। बाबू जी पुराने खयालात के थे, अंतरजातीय विवाह के लिए उन्हें मनाना टेढी खीर था। दूसरी ओर विपिन भी जिद्दी है। उसने निर्णय लिया है तो पीछे नहीं हटेगा।

...अगले दिन बाबू जी सुबह से अच्छे मूड में दिख रहे थे। डाइनिंग टेबलपर बैठ कर वह रीतू के खाने की तारीफ कर रहे थे। उन्हें अच्छे मूड में देख रीतूने चित्राका जिक्र छेडा। शुरू में बाबू जी सामान्य नजर आए लेकिन जाति का सवाल आते ही नाराज होकर बोले, 'तुमने यह सोच भी कैसे लिया कि मैं रिश्ते के लिए तैयार हो जाऊंगा? मैं अपनी जाति के बाहर शादी नहीं कर सकता।

समीर ने थोडा रोष दिखाते हुए कहा, 'बाबू जी, इस जमाने में जाति-धर्म की बातें करना व्यर्थ है। लडका-लडकी एक-दूसरे को पसंद करते हैं तो कोई बंदिश नहीं होनी चाहिए...। 'तुम बडे भाई होकर ऐसी बात करोगे तो छोटे को शह तो मिलेगी ही न...। लडका-लडकी ही सब कुछ होते हैं? दुनिया, समाज और बुजुर्गों की राय मायने नहीं रखती? हम एक प्रतिष्ठित कुल से आते हैं, कल अगर लोग हमें कुल से अलग कर दें तो? तुम लोग चाहे जो सोचो, मैं इस शादी के लिए बिलकुल तैयार नहीं हो सकता..., बाबू जी ने अपना फैसला सुना दिया।

बाबू जी के फैसले से रीतूकाफी परेशान हो गई। उसने देवर को वचन दिया था कि उसकी मनपसंद लडकी से ही उसका विवाह होगा और इधर बाबू जी की जिद....।इस घटना के बाद से विपिन भी खोया-खोया रहने लगा। जिस घर में कभी उत्साह-उल्लास का माहौल रहता था, वही घर अब वीरान लगने लगा, मानो बसी-बसाई गृहस्थी को किसी की नजरलग गई हो। रीतूडरती थी, कहीं बाबू जी और विपिन की जिदमेहनत से बनाए गए उसके घरौंदे को उजाड न दे।

बाबू जी और विपिन के बीच एक अबोलापन सा था। विपिन के लिए दो-चार रिश्ते आए लेकिन उसने मना कर दिया। बाबू जी को इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि जिस बच्चे की परवरिश के लिए उन्होंने दोबारा शादी नहीं की, वही बडा होकर उनसे बगावतकर बैठेगा।

उनकी सेहत बिगडऩे लगी। घर की खुशियों पर मानो ग्रहण सा लग गया। विपिन उदास रहने लगा। कई बार वह घर भी नहीं आता, ऑफिस से मिले अपने फ्लैट में ही जाकर सो जाता। रीतूएक दिन बाबू जी के कमरे में गई तो वह सो चुके थे। उनके सिरहाने विपिनकी तसवीर थी और उस पर आंसू की बूंदेंगिरी थीं। उनकी दशा देख कर रीतूका दिल रो पडा। उसने मन ही मन एक निर्णय ले लिया। ...अगले दिन वह बाजारगई तो लौटते हुए उसके साथ एक युवती भी थी। बाबू जी बाहर लॉनमें बैठे थे। रीतूने उसका परिचय कराते हुए कहा, 'बाबू जी, यह मेरी सहेली तृप्ति है। इसका यहीं विवाह हुआ है। आज अचानक बाजारमें इससे मुलाकात हो गई तो मैं जिद करके इसे घर ले आई। तृप्ति ने आगे बढकर बाबू जी के पांव छू लिए। बाबूजीने उसे आशीर्वाद देते हुए पास ही रखी कुर्सी पर बैठने को कहा और पूछा, 'क्या करते हैं तुम्हारे पति?

'जी, यहीं एक कंपनी में एग्जीक्युटिव इंजीनियर हैं...., रीतूने तुरंत जवाब दिया। काफी देर तक बाबू जी तृप्ति से बातें करते रहे। तृप्ति जाने को हुई तो वह बोले, 'आती रहो बेटा, इससे रीतूका भी मन लगा रहेगा। तृप्ति का घर में आना-जाना शुरू हो गया। बाबू जी उसे पसंद करते थे। धीरे-धीरे उनकी सेहत में सुधार आने लगा। तृप्ति के आने से घर का अबोलापनकम हो जाता था। मेहमान के सामने ही सही, कुछ देर सब हंस-बोल लेते थे। कुछ दिन से तृप्ति नहीं आ रही थी। एक दिन बाबू जी ने पूछा, 'रीतू, तुम्हारी दोस्त नहीं आ रही है आजकल? रीतूने बताया कि वह बीमार है तो बाबू जी गुस्सा होकर बोले, 'कितनी लापरवाह हो तुम? वह बीमार है और तुम उसे देखने भी नहीं गई? वह हमारा इतना खयालरखती है और तुम हो कि...? तृप्ति के प्रति बाबू जी का स्नेह देख कर रीतूमन ही मन मुस्कुरा पडी। तृप्ति ने शायद उनके दिल में अपना स्थान बना लिया था।

....फिर एक रात अचानक कुछ ऐसा हुआ कि सभी घबरा गए। बाबू जी को दिल का दौरा पडा। समीर ने विपिन को फोन किया तो वह भी दौडा आया और तृप्ति भी। विपिन बाबू जी की सेहत के लिए खुदको जिम्मेदार समझता था। उसे लगता था कि उसकी जिद ने ही बाबू जी को इस दशा तक पहुंचाया है। खैर उन्हें समय पर अस्पताल पहुंचा दिया गया। पंद्रह दिन वह अस्पताल में ही रहे। रीतूऔर समीर ने जी-जान से उनकी सेवा की। इस बीच घर की पूरी जिम्मेदारीतृप्ति ने संभाल ली। दीपावली करीब थी और उसी दिन बाबू जी को वापस घर आना था। तृप्ति ने पूरे घर को दीपमालाओं से सजाया था। बाबू जी लौटे तो उन्हें कुर्सी पर बिठाते हुए समीर ने कहा, 'बाबू जी, तृप्ति ने हमारी चिंता बहुत कम कर दी।

बाबू जी मुस्कुराते हुए बोले, 'हमेशा सुखी रहो बेटी। सचमुच वे लोग खुशकिस्मतहैं, जिन्हें तुम्हारी जैसी बहू मिली है। मेरा घर भी आज इतना ही शांत होता मगर विपिन....। इतना सुनना था कि रीतूने बाबू जी के मुंह पर हाथ रख दिया और बोली, 'डॉक्टर ने आपको ज्यादा सोचने को मना किया है...। कई बार विपरीत स्थितियां रिश्तों की कीमत बता जाती हैं। रीतूने कुछ सोचते हुए बाबू जी से कहा, 'बाबू जी, मुझे माफ कर दीजिए क्योंकि मैंने एक गलतीकी है...। 'कौन सी गलती बेटा? बाबू जी उलझन में पड गए। रीतूने बाबू जी के घुटनों पर सिर रख दिया और बोली, 'बाबू जी, यह तृप्ति नहीं, चित्राहै...आपकी दूसरी बेटी। 'इतने दिनों तक तुमने मुझसे.... बाबू जी की आवाज भरभरा गई थी।

'बाबूजी, हमारा इरादा आपको दुख पहुंचाने का नहीं था। हम सब आपकी छत्रछाया चाहते हैं..., यह सुनकर बाबूजीकी आंखों में आंसू आ गए। एक तरफ बहू की निश्छल सेवा और दूसरी ओर चित्राका सरल स्वभाव...। हालात ने उन्हें ऐसी जगह ला खडा किया कि उन्हें अपनी ही जिदबौनी नजरआने लगी। कुछ देर सोचने के बाद उन्होंने चित्राको बुलाया और कहा, 'बेटा, आज अगर तुम यहां हो तो इसका पूरा श्रेय रीतू को जाता है। उसी की समझदारी से यह घर टूटने से बचा है। मुझे गर्व है कि मुझे रीतूजैसी बहू मिली। फिर उन्होंने समीर को बुलाया और विपिन को घर बुलाने को कहा। उनकी मन:स्थिति इस समय ऐसी थी, मानो हजारोंदीप उनके जीवन में एक साथ जल उठे हों। उनके जीवन में सचमुच दीपावली आ गई थी।


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