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अनोखा उपहार

भाई-बहन का रिश्ता बड़ा अनोखा होता है। बहनों का स्नेह तो इतना घना होता है कि ज़्ारूरत पडऩे पर वे मां की भूमिका भी निभा देती हैं। भाई के सपने को पूरा करने की ख़्ाातिर सोहना ने जो कदम उठाया, उससे न सिर्फ भाई बल्कि उसके पिता भी आश्चर्यचकित रह

By Edited By: Published: Tue, 02 Feb 2016 02:20 PM (IST)Updated: Tue, 02 Feb 2016 02:20 PM (IST)
अनोखा उपहार

भाई-बहन का रिश्ता बडा अनोखा होता है। बहनों का स्नेह तो इतना घना होता है कि ज्ारूरत पडऩे पर वे मां की भूमिका भी निभा देती हैं। भाई के सपने को पूरा करने की ख्ाातिर सोहना ने जो कदम उठाया, उससे न सिर्फ भाई बल्कि उसके पिता भी आश्चर्यचकित रह गए।

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हना ने लगभग झकझोरते हुए कहा, 'पिता जी उठ जाओ, देखो दिन कबका चढ गया है। सोहना सुबह से कई बार अपने पिता को उठाने का प्रयास कर चुकी थी।

'सुबह से क्यों परेशान कर रही है? रोज्ा तो इतने बजे ही उठता हंू। तू िफक्र न कर पुत्तर, मैं टाइम से फैक्ट्री निकल जाऊंगा। वीर सिंह ने उबासी ली और बिस्तर से उठ बैठा।

सोहना ने रात के बचे दाल-चावल चूल्हे पर गर्म कर पिता को नाश्ते में दे दिए। सोहना खाने-पीने की जो भी व्यवस्था करती, वीर सिंह चुपचाप ग्रहण करता। थोडी सी कमाई से घर चलाना मुश्किल था। पत्नी कल्याणी के गुज्ारने के बाद घर की ज्िाम्मेदारी सोहना के नाज्ाुक कंधों पर आ पडी थी। वीर सिंह भीतर से टूट गया था, दिन-प्रतिदिन कमज्ाोर होता जा रहा था। वह नैनीताल के एक कसबे में टिंबर फैक्ट्री की आरा-मशीन पर काम करता था। सोहना कई बार कहती, 'पिता जी आप कहें तो मैं ऊन रंगाई वाला काम पकड लूं। 'अरे ना पुत्तर, तेरा प्यो अभी ज्िांदा है, तुझे तो डोली में बिठाकर ससुराल ही भेजूंगा। तेरी मां भी तो यही चाहती थी। तू अपने भाई मनोहर से क्यों नहीं कहती? उसने बारहवीं इतने अच्छे नंबर से पास की है, कहीं नौकरी करके घर की ज्िाम्मेदारी संभाले।

'पर मनोहर का तो इंजीनियरिंग में सिलेक्शन हो गया है, मैंने आपको बताया तो था... सोहना ने गर्व से कहा।

'हां-हां बताया था, मगर पैसे कहां हैं? यह तो वही बात हुई न कि घर में नहीं हैं दाने और अम्मा चली भुनाने। वीर सिंह ने झल्लाते हुए कहा और फैक्ट्री के लिए निकल पडा। बाज्ाार की तरफ जाती संकरी सी पगडंडी पर वह धीरे-धीरे उतरने लगा। सोहना पिता को जाते देर तक देखती रही।

अतीत की खिडकी से यादों का कुहासा उसके मन में उतरने लगा था। सोहना के पिता कसबे के जांबाज्ा नौजवान थे। उनके दादा शमशेर बहादुर बडी टिंबर फैक्ट्री के मालिक थे। उन्होंने आज्ाादी की लडाई में बढ-चढ कर काम किया था। दादा जी के अकेले वारिस थे वह, मगर वक्त ने कुछ ऐसा पलटा खाया कि सब ख्ात्म हो गया। अपनी ही फैक्ट्री में आज वह छोटे कर्मचारी बन कर रह गए।

मां से उनका प्रेम विवाह हुआ था। मां चंबा की थीं। हर साल लगने वाले 'मींजरा दा मेला में उनकी मुलाकात हुई। दोनों की शादी धूमधाम से हुई। इसके बाद उनके दो बच्चे हुए। सोहना और मनोहर छोटे से थे, जब मां बीमार रहने लगी थीं। पता चला कि उन्हें कैंसर है। कई वर्ष इलाज चला। घर-फैक्ट्री सब बिक गए, मगर मां न बच सकीं। कुछ समय बाद दादा जी को दिल का दौरा पडा, वह भी चल बसे। पिता एकाएक अकेले पड गए। दो-दो बच्चों की परवरिश और कमाई का कोई ज्ारिया नहीं...।

कुछ आहट हुई और सोहना की तंद्रा टूटी तो सामने माही खडा था। उसे सोच में डूबा देख बोला, 'दरवाज्ो पर खडी क्या सोच रही है? काका कहां हैं? सोचा, दुकान जाते-जाते काका से मिलता चलूं। असल में काका को मां ने बुलाया है, तेरी-मेरी शादी की तारीख्ा जो पक्की करनी है।

'पिता जी तो निकल गए..., सोहना ने होठों पर मुस्कान लाते हुए कहा।

'मां ने कुछ सब्ज्िायां भेजी हैं। माही ने हाथ में पकडी थैली सोहना को थमाई।

माही ने जाते-जाते पूछा, 'अरे मनोहर आजकल नहीं दिखता, उसके सिर से इंजीनियर बनने का भूत उतरा कि नहीं? उससे कहो, सपने देखना बंद करे। मेरिट में नाम आने से क्या होता है? लाखों का ख्ार्च है, कैसे होगा?

माही उसका मंगेतर है। खाते-पीते लोग हैं। उनकी कपडों की दुकान है, माही भी वहीं बैठता है। माही की मां कमला और सोहना की मां कल्याणी, दोनों चंबा की थीं और नैनीताल के संपन्न परिवारों में ब्याही थीं। पिताजी बताते थे कि वह मां को धूमधाम से ब्याह कर लाए थे। पूरा कसबा ही बारात में शामिल हुआ था। आज भी लोग उस शादी की चर्चा करते हैं। मां को जेवरों से बेहद प्यार था, दादा जी ने ख्ाूब जेवर चढाए थे उन्हें। उनमें से कुछ घर-फैक्ट्री बिकने के बावजूद सोहना के ब्याह के लिए बचाए गए थे। माही की मां कमला ही उनके बारे में जानती थी। माही और सोहना की शादी उनकी मांओं ने तय की थी। मां ने मरते-मरते अपनी सहेली कमला से वचन लिया था कि वह उसकी बेटी को अपनी बहू बनाएगी।

आज सुबह से सोहना का मन उदास था। किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था। मनोहर सुबह ही घर से निकल गया था। कल सारी रात उसने जागकर काटी थी, मानो सुबह होने की प्रतीक्षा में हो। कह कर गया कि फीस के लिए पैसों की व्यवस्था करनी है। अभी वह अपने दोस्त बलदेव के घर गया था। बलदेव के पिता जाने-माने एडवोकेट हैं। उन्होंने कहा है कि वह मनोहर को बैंक से लोन दिला देंगे।

सोहना के भीतर रह-रह कर कसक उठती है। काश! भाई के लिए कुछ कर सकती। मनोहर ने हमेशा दोस्तों और लाइब्रेरी की किताबों से पढाई की। वह बहुत कुछ कर सकता था, मगर कैसे करे? एकाध बार उसने सोचा कि माही से कुछ पैसे उधार मांगे, लेकिन अभी तो रिश्ता पक्का ही हुआ है, भविष्य की कौन जानता है?

....सोचते-सोचते सुबह से शाम हुई और फिर स्याह रात घिर गई। पडोस के घर में ढोलक की थाप और औरतों के गीतों की स्वर-लहरी सुनाई देने लगी। उसकी सहेली चंदा की अगले हफ्ते शादी है। सोहना को भी न्योता मिला है। वह मनोहर की प्रतीक्षा कर रही है। मनोहर सुबह का गया अभी तक नहीं लौटा। वह कभी इतनी देर घर से बाहर नहीं रहा था। पिताजी आ गए थे। वे आंगन में लेटे हुए हुक्का गुडग़ुडा रहे थे, साथ ही कोई उदास सी पहाडी धुन गुनगुना रहे थे।

'सोहना, मनोहर दिखाई नहीं दे रहा है। सवेरे भी जल्दी निकल गया था। इस लडके ने घर को सराय समझ रखा है क्या? जब जी करे चले जाओ-जब मन आए, घर लौटो।

'वह बलदेव के घर गया है। उसके पिता लोन दिलवाने को कह रहे थे। पर अभी तक वह घर क्यों नहीं लौटा? मुझे बहुत िफक्र हो रही है..., सोहना रुंआसी होकर बोली।

'तुम दोनों बहन-भाई रहते ज्ामीन पर हो, पर ख्वाब आसमानों के देखते हो। अरे हथेली पर सरसों उगती है क्या? वीर सिंह ज्ाोर से बोलते हुए हुक्का गुडग़ुडाने लगे।

सोहना की आंखों में आंसू भर आए। धीरे से बोली, 'पिताजी मैं नीचे बाज्ाार तक हो आती हंू, शायद मनु वहीं मिल जाए।

सोहना ने बाज्ाार में इधर-उधर देखा, मगर मनोहर कहीं नज्ार नहीं आया। एकाध लोगों से पूछा भी। निराश होकर वह घर लौट आई। आंगन में खपच्चियों से बना छोटा सा गेट खोल कर घर के भीतर आई तो देखा अंधेरे में छप्पर के नीचे तख्त पर सिर झुकाए मनोहर बैठा था। सोहना की जान में जान आई। आहट सुनकर मनोहर चुपचाप उठा और भीतर चला गया। सोहना ने चुपचाप भाई को खाना परोसा और खुद भी खाने बैठ गई। बराबर के कमरे से पिता जी के खर्राटों की आवाज्ों आ रही थीं। बाहर काली-स्याह रात ने कोहरे की चादर ओढ ली थी। गलियों में कुत्तों के भौंकने और झींगुरों की समवेत आवाज्ों रात को भारी बना रही थीं।

'दीदी मैं कल से माही की दुकान पर बैठा करूंगा, मनोहर ने कौर गटकते हुए कहा।

'मनु नहीं, कल तो तुम्हारा जन्मदिन है। हम नैना देवी मंदिर जाएंगे। सोहना ने मनोहर का मूड बदलने के लिए कहा।

मनोहर सोने गया, मगर सोहना की आंखों से नींद उड चुकी थी। सोचने लगी, मनु छोटा सा था, जब मां चल बसी थी। इसके बाद से उसी ने मनु की हर ख्ाुशी का ख्ायाल रखा। आज मनु परेशान है। वह कुछ करना चाहता है, मगर इसके लिए पैसे नहीं हैं। इंजीनियरिंग कॉलेज में स्कॉलरशिप के बावजूद उसके हॉस्टल और किताबों आदि के ख्ार्च के लिए उसे कम से कम एक लाख रुपये चाहिए। कहां से आएगी यह रकम?

भोर हुई, चर्च का घंटा बोला तो सोहना उठ बैठी। चूल्हे पर चाय का पानी चढाया। भाई और पिता ने नाश्ता किया। पिता फैक्ट्री चले गए और मनु शायद दुकान पर जाने को तैयार होने लगा।

'मनु घर जल्दी लौटना, हम मंदिर चलेंगे। आज तुम्हारा जन्मदिन है। मैं तुम्हारी पसंद का खाना बनाऊंगी, सोहना ने जाते हुए मनोहर को टोका।

मनोहर हौले से मुस्कुराया और धीरे-धीरे आंगन पार कर गली में निकल गया। सोहना को भी ज्ारूरी काम से बाज्ाार जाना है। उसकी सहेली चंदा भी साथ जाएगी। घर के काम जल्दी-जल्दी निपटाकर सोहना और चंदा बाज्ाार निकल गईं। दोपहर को लौटी तो मनोहर घर पर बैठा था। वह मनोहर को लेकर नैना देवी मंदिर चल पडी। वहां से घर लौटे तो पिताजी मिले। मनोहर ने पिता के चरण छुए। वीर सिंह ने बेटे को हृदय से लगाते हुए कहा, 'जन्मदिन मुबारक हो बेटा।

मनोहर का यह अठारहवां जन्मदिन था, लेकिन घर की स्थितियां कुछ ऐसी थीं कि शायद ही उसे कभी कोई उपहार मिला हो। पर आज का दिन कुछ अलग था। सोहना ने भाई को उपहार देने के बारे में सोच लिया था।

'भाई आंखें बंद करो, आज मैं तुम्हारे लिए एक गिफ्ट लाई हंू, सोहना ने मनोहर की आंखों पर हाथ रख दिया। गिफ्ट का नाम सुनते ही उसके चेहरे पर मुस्कान तिर गई। 'अरे सोच क्या रहे हो, आंखें बंद करो और हाथ आगे बढाओ, सोहना ने फिर कहा।

मनोहर ने आंखें बंद कर लीं और हाथ आगे बढा दिए। सचमुच उसके हाथों में कुछ आ गया। ये क्या? उसने आंखें खोल दीं। हज्ाार-हज्ाार की कई गड्डियां उसके हाथ में थीं। मनोहर के माथे पर पसीने की बूंदें छलक गईं, दिल की धडकन बढ गई। आश्चर्य से बहन को देखा तो वह मुसकरा रही थी और पिताजी की आंखों में बेबसी साफ झलक रही थी।

'अरे पगले, ये पैसे तुम्हारे एडमिशन के लिए हैं। तैयारी करो, कल सुबह ही तुम्हें दिल्ली निकलना है, सोहना ने चिंतित होकर कहा।

मनोहर हैरान था कि सोहना ने ऐसी कौन सी जादू की छडी घुमाई है कि इतने पैसों का इंतज्ााम हो गया। मन की बातें ज्ाुबां पर आ गर्ईं, 'दीदी, मगर पैसे आए कहां से?

'अरे, मनु! तुम्हें आम खाने हैं या पेड गिनने हैं? सोहना ने उसके गालों पर चपत लगाते हुए कहा। वीर सिंह से चुप न रहा गया। गहरी सांस भर कर बोले, 'बेटा, तेरी बहन अपनी शादी के जेवर गिरवी रखकर ये पैसे लाई है। जिन गहनों को तुम्हारी मां ने जीते-जी किसी को छूने भी नहीं दिया, उन्हें तुम्हारी दीदी ने गिरवी रखते हुए सोचा तक नहीं।

सोहना ने पिता को चुप रहने का इशारा किया और मनु की पैकिंग कराने लगी। अगली सुबह मनु ने सबके पैर छुए और दिल्ली वाली बस पकड ली। मनोहर ने पलट कर देखा तो एक पल के लिए लगा, मानो मां उसे हाथ हिला कर विदा कर रही है। मनोहर बस से उतरा और बहन के चरणों में झुक गया। भारी मन से वह बहन को घर लौटते देखता रहा।

उधर घर लौटती सोहना के मन से भारी बोझ उतर चुका था। उसने बडी बहन होने का पूरा फज्र्ा निभाया था। लेकिन एक सवाल उसे भी परेशान कर रहा था।भाई के भविष्य के लिए तो उसने मदद की लेकिन क्या वह अपने प्रति न्याय कर पाएगी? अगर गहनों के कारण शादी टल गई तो? मगर यह ख्ायाल जितनी तेज्ाी से उसके मन में आया, उतनी ही तेज्ाी से उसने इसे झटक दिया। फिर पहाडी से नीचे देखा और मन ही मन मानो सवाल को ढलान पर लुढका दिया। वह ख्ाुश थी, उसने भाई के सपने को पूरा करने के लिए एक कदम आगे बढाया था। आज उसकी ख्ाुशी वादियों में समा नहीं पा

रही थी।

शकुंतला वर्मा


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