कविताएं पुस्तक
पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) में जन्म, शिक्षा हिंदी साहित्य से एमए, लगभग सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में कहानियां, कविताएं, साक्षात्कार एवं लेख प्रकाशित। अब तक तीन कथा संग्रह और एक कविता संकलन प्रकाशित, एक कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन। कुछ कहानियों का कन्नड़, उर्दू और उडिय़ा में अनुवाद। एक कहानी 'नदी तुम बहती क्यों हो?' पर आधारित नाटक का मुंबई नाट्य संस्था मंथन द्वारा मंचन, दूरदर्शन और आकाशवाणी से समय-समय पर कविता, कहानी, विचार-वार्ता का प्रसारण, कई राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों में शिरकत। संप्रति : देहरादून (उत
By Edited By: Published: Fri, 18 Nov 2016 11:45 AM (IST)Updated: Fri, 18 Nov 2016 11:45 AM (IST)
मैं एक चिडिय़ा इतना कलरव करने के बाद भी तुमने नहीं सुना मेरा राग देखा नहीं एक पल भी आकाश से नापी नहीं मेरी उडान देखे नहीं मेरे सतरंगी पंख। जिस पेड पर मेरा नीड तिनका-तिनका पाई नहीं उसकी छांव मैं एक चिडिय़ा सतरंगी पंखों वाली पृथ्वी पर आई तुम्हें सुनाने मीठा राग... पहचानो मुझे हरे जंगल में कैद कर लो मेरी उडान खोलो रजिस्टर दर्ज कर लो मेरा बयान क्या पता बीत जाए समय और हाथ न आए कुछ भी...। कौन था कौन था वह जिसने पिलाया एक घूंट जल दे गया उम्र भर लंबी प्यास प्यास लपट हुई खटखटाया किवाड नहीं था वह वहां उसका प्रतीक तिरता नहीं हवाओं में भी कहीं... निगल गई उसे धरा? या उडा ले गया आकाश हवा के पंखों पर? कहीं तो छूटे होते उसके निशान कौन था वह पिलाया एक घूंट जल और दे गया अनंत की प्यास! मन होता है मन होता है प्यार करूं तुम्हें आत्मा की समूची सुगबुगाहट के साथ खिलूं इन गुलाबों-सी संतरे-सी गोल पृथ्वी के चप्पे-चप्पे पर फैलाऊं खुशबू अपनी आह्लाद के चरम क्षणों में चूमूं उस कलाकार की हथेली सृजन में भूल गया जो अपनी भी सुध-बुध एक दिन सिर्फ एक दिन लगा दे समाज अपने होठों पर ताला निकल पडूं मैं दौडती हुई आंधी-तूफान के वेग में करने प्रकृति से साक्षात्कार...। जिंदगी की भागदौड में उलझे युवाओं को धर्म और आस्था के सही अर्थ समझाने में देवदत्त पटनायक की भूमिका अहम मानी जा सकती है। पौराणिक ग्रंथों, पात्रों और मिथकों पर सरल शब्दों में वे अब तक 25 से अधिक उपन्यास लिख चुके हैं। हजारों साल पहले की कहानियों को वे खूबसूरत अंदाज में आज के संदर्भ में पेश कर युवाओं को मिथकों के अर्थ समझाते हैं। गहन अध्ययन और शोध करने के बाद ही उसे प्रस्तुत करते हैं। यह किताब लोकप्रिय टीवी कार्यक्रम 'देवलोक विद देवदत्त पटनायक' के पहले सीजन पर आधारित है। इससे पहले भी वह कई कार्यक्रमों में आ चुके हैं। हर एपिसोड में वे अलग-अलग भारतीय विचारधाराओं के अर्थ, इतिहास, धार्मिक ग्रंथों और धार्मिक भ्रांतियों के सही अर्थ के बारे में बताते है। हम आस्तिक हों या नास्तिक, यह सवाल हमें जरूर झकझोरता है कि वेदों-पुराणों में जिस देवलोक का उल्लेख है, वास्तव में क्या इसका कोई अस्तित्व है? क्या सचमुच भगवान या देवता किसी जगह पर वास करते हैं? कई अन्य सवाल भी मन में उठते हैं। जैसे- पूजा और यज्ञ में क्या अंतर है? विष्णु, शिव या देवियां मंदिर में क्यों विराजती हैं? देवताओं में अग्रणी माने जाने वाले इंद्र और संपूर्ण सृष्टि' के सर्जक ब्रहामण को मंदिरों में स्थान क्यों नहीं प्राप्त है? किसी पौराणिक कथा में शिव योगी हैं, तो किस दूसरी कथा में गृहस्थ कैसे हो जाते हैं? भगवान और भोजन में क्या अंतर है? गीता सार क्या है? क्या स्वर्ग और नरक होता है? ग्रहों-नक्षत्रों का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पडता है? असुर, राक्षस, यक्ष और पिशाच की वास्तविकता क्या है और इनमें अंतर क्या है? इन सारे सवालों के जवाब इस किताब में मिलते हैं। जो लोग व्यस्तता की वजह से इस टीवी कार्यक्रम को न देख पाए हों, उनके लिए इस पुस्तक को पढऩा रुचिकर होगा। इससे पहले भी पौराणिक कथाओं और मिथकों पर आधारित उनकी कई किताबें लोकप्रिय हो चुकी हैं। किताबों की दुनिया देवलोक की सच्चाई पुस्तक : देवलोक लेखक : देवदत्त पटनायक प्रकाशक : पेंइगुन प्रकाशन नई दिल्ली मूल्य : 175 रुपए स्मिता
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