मॉर्निग वॉक
मॉर्रि्नग वॉक पर साथ चलने की पति की जिद को मीरा काम के बहाने टाल देती थी। मगर एक दिन पति में आ रहे बदलावों पर उसका ध्यान गया। उन पर नजर रखने के लिए वह भी सैर पर निकलने लगी। यहां मुलाकात हुई एक पुरानी सहेली से। फिर क्या हुआ और मीरा किस नतीजे पर पहुंची, पढ़ें इस दिलचस्प कहानी में।
नीरज में आ रहे बदलाव मीरा को हैरान तो कर रहे थे, पर वह चुप्पी साधने को बाध्य थी। नए साल के संकल्प के तौर पर नीरज ने लगभग दस पंद्रह दिनों से मॉर्निग वॉक पर जाना शुरू किया था। उसने मीरा से भी साथ चलने के लिए चिरौरी की, पर मीरा के पास भला कहां समय था? गृहस्थी किसके भरोसे छोड कर सुबह-सुबह उसके संग जाती?
सवेरे दूध वाला आता है, बाई आती है, बच्चों की स्कूल बस आती है, कैसे निकलूं?
जहां चाह, वहां राह! तुम चाहो तो सब मैनेज हो सकता है। पर सच तो यह है कि तुम खुद अपनी दुनिया से बाहर नहीं निकलना चाहतीं.., नीरज ने उसे ताना मारा था।
नीरज ने उसे एक-दो बार साथ चलने के लिए उकसाया था, यह कहते हुए कि, सवेरे-सवेरे झील के पानी पर गिरती सुबह की हलकी धूप इतनी प्यारी लगती है कि मन मुग्ध हो जाता है। वापस लौटने का मन ही नहीं होता।
मीरा जानती थी कि नीरज को पानी से विशेष लगाव था। तभी तो वह पास के पार्क में न जाकर इतनी दूर झील के किनारे जाता था। कभी लौट कर बताता, युवाओं से लेकर वृद्धों तक के जोडे बतियाते नजर आते हैं वहां..। नीरा उसका मंतव्य समझ कर खुद पर इतरा उठती, कितना प्यार करते हैं नीरज उसे! साथ ले जाने के लिए क्या-क्या लालच नहीं दे रहे?
दुनिया झूठ ही कहती है कि वक्त के साथ-साथ पति-पत्नी के संबंधों में दूरियां आ जाती हैं, खास कर पुरुष का मन भटकने लगता है.., गर्व से फूली वह नीरज को ही चिढाने लगती, ऐसे फ्री लोग ही नजर आएंगे तुम्हें। युवा तो इसलिए कि उनके कंधों पर जिम्मेदारी का बोझ नहीं है, वृद्ध इसलिए कि जिम्मेदारियों से मुक्त हैं। जिस दिन मेरी उम्र की कोई महिला घूमती नजर आए, बता देना।
मीरा ने बात तो टाल दी, मगर कुछ दिनों से नीरज में आ रहे बदलाव उसके दिमाग में खतरे की घंटियां बजाने लगे थे। कुरते-पाजामे में वॉक पर जाने वाले नीरज ने कुछ दिन पहले ही ट्रैक सूट और जॉगिंग शूज खरीद लिए। बाल भी कलर करवा लिए। वजन कितना घटा, यह तो नहीं मालूम, मगर वह अपनी उम्र से काफी कम नजर आने लगे थे। अब तो उन्होंने मीरा से साथ चलने की जिद भी छोड दी थी।
मीरा का चैन खोने लगा। झपकी भी लगती तो अजीब सपने आते। देखती, लडकों का एक झुंड गुजर रहा है। लडके नीरज को भैया और उसे आंटी पुकार रहे हैं। पसीने से सराबोर मीरा चौंक कर उठ बैठती। इस तरह हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकती वह।
अगले दिन नीरज के निकलते ही मीरा ने गेट को ताला लगाया, कमर पर चुन्नी कसी और पहुंच गई पास के पार्क में। बच्चे पहले निकल चुके थे। दूध वाले और काम वाली बाई को उसने पहले ही देर से आने को बोल दिया था। नीरज के लौटने से पहले वह सैर से निबट कर घर लौट आई थी। दो-तीन दिन के बाद मीरा को अपनी दिनचर्या में रस मिलने लगा था। सुबह-सुबह ताजी हवा में सैर से जहां बदन में चुस्ती-फुर्ती बनी रहती, वहीं पति के साथ चोर-पुलिस वाले इस खेल में भी उसे मजा आने लगा था। पार्क में घूमते हुए अचानक ही उसे एक जाना-पहचाना चेहरा नजर आया। वह चौंक उठी, सुषमा! कभी दोनों अच्छी दोस्त थीं। जैसा कि आमतौर पर होता है, शादी के बाद सब अपनी गृहस्थी में रच-बस जाते हैं, खासतौर पर लडकियां तो पुरानी जिंदगी को भुला बैठती हैं। सुषमा ने भी उसे पहचान लिया। दोनों एक-दूसरे के गले लग गर्ई। मीरा को जान कर आघात लगा कि सुषमा के पति का देहांत हो चुका था। कुछ दिन पहले ही उसने इकलौती बेटी की शादी की थी। बेटी-दामाद के काफी कहने के बावजूद वह यहीं रहने की जिद पर कायम थी।
मगर अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है सुषमा? पहाड सी जिंदगी अकेले कैसे काटोगी तुम? दोनों सहेलियां आंखों में आंसू भर कर रह गई थीं। मीरा के रोज पार्क जाने में एक आकर्षण और जुड गया था- सुषमा से मिलने का आकर्षण। साथ टहलते-टहलते दोनों ने बरसों की यादों का सफर कुछ ही दिनों में तय कर लिया था।
सुषमा अकसर बात करते-करते अपने सुनहरे अतीत में खो जाती थी। मीरा उसका दर्द शिद्दत से महसूस करती थी पर असहाय थी। एक दिन लौटते में वह सुषमा को अपने घर की ओर से ले गई थी। बाहर लाल रंग की कार खडी देख सुषमा बच्चों सी किलक उठी, मेरी भी लाल रंग की गाडी लेने की बडी इच्छा थी। पीयूष ने वादा किया था कि शादी की अगली वर्षगांठ पर वे मुझे कार गिफ्ट करेंगे। पर इससे पहले ही दुर्घटना में सब खत्म हो गया।
सुषमा को मायूस होते देख मीरा ने उसका ध्यान दूसरी ओर खींचने का प्रयास किया। यह देखो, नीरज ने नंबर भी अपनी पसंद के छांट कर लिए हैं।
पीयूष भी यही करते थे। स्कूटर व मोबाइल नंबर भी उन्होंने अपनी पसंद से लिए थे।
मीरा को महसूस हुआ कि सुषमा के दिल में उसके पति की यादें गहराई तक जमी हैं। उसे बाहर निकालना संभव नहीं है। मीरा के अंदर चल कर चाय पीने के आग्रह को उसने नम्रता से अस्वीकार कर दिया, यह कह कर कि फुर्सत से आऊंगी, तब चाय-नाश्ता करूंगी।
सुषमा पार्क से कुछ दूर पीछे वाली कॉलोनी में रहती थी। मॉर्रि्नग वॉक पर जाना उसकी दिनचर्या में बरसों से शामिल था, हालांकि कई बार इसमें बाधा भी आ जाती थी।
तुमसे कुछ नहीं छुपाया है मीरा तो यह बात भी नहीं छुपाऊंगी..। दरअसल इस पार्क में वॉक के लिए कुछ दिनों से ही आ रही हूं। पहले कहीं और जाती थी। वहीं एक भले सज्जन मिले, हमारी दोस्ती भी हो गई। वह काफी सुलझे हुए और मिलनसार लगे मुझे। रोज की मुलाकातों और बातों में पता ही नहीं लगा कि कब उनसे दिल का दर्द बयां कर बैठी। धीरे-धीरे महसूस होने लगा कि मेरे प्रति उनकी हमदर्दी आकर्षण में तब्दील होती जा रही है। मैं पीयूष की जगह किसी और को नहीं दे सकती। पर उसका दिल भी नहीं दुखाना चाहती थी। इसलिए मैंने अपनी राह बदल ली। मैंने उस पार्क में जाना ही बंद कर दिया और यहां आने लगी।
सुषमा, मैं तो यही कहूंगी कि तुमने सही नहीं किया। यादों को दिल में बसाना अच्छा है, पर उनके सहारे जिंदगी अकेले काटना मुझे ठीक नहीं लगता। इस उम्र में एक साथी का अभाव बेतरह खलता है। शरीर की चाहत तो एक सीमा तक होती है, पर समय के साथ यह सब गौण हो जाता है। एक भावनात्मक संबल के लिए मन लालायित होने लगता है। मुझे लगता है, वह सज्जन भी इसी परिस्थिति से गुजर रहे होंगे। तुम दोनों ही एक-दूसरे को भावनात्मक सहारा दे सकते हो। उनसे भागने का यह विचार मुझे ठीक नहीं लगा। पर लोग ऐसे संबंधों को गलत नजरों से देखते हैं...
जब तक हमारा दिल गलत न माने, कुछ भी गलत नहीं है। लोगों का तो काम ही है दूसरों पर उंगली उठाना। ऐसे लोगों की परवाह किए बिना अपने बारे में सोचो सुषमा।
मुझसे नहीं होगा मीरा..
न सही, पर यह तो सोचो कि उस व्यक्ति को कितनी ठेस लगी होगी, जिन्होंने तुम्हारे दुख-दर्द को धैर्य से सुना-समझा, तुमसे शेयरिंग की और तुमने बिना उनका दुख-दर्द जाने उन्हें अपराधी मान लिया!
यही अपराध-बोध मुझे परेशान कर रहा है मीरा। मैं समझ नहीं पा रही हूं कि आखिर मुझे चाहिए क्या?
मेरे खयाल से तुम्हें उनसे मिलना चाहिए। मिल कर बात करनी चाहिए। संभव हो तो एक नए संबंध की शुरुआत करनी चाहिए। तुम्हारे पास उनका नाम-पता है?
नहीं, मैंने कभी पूछा ही नहीं, सुषमा भोलेपन से बोली तो मीरा ने अपना माथा पकड लिया।
अजीब बेवकूफ हो तुम भी। सारी रामायण सुना दी और राम का ही पता नहीं। खैर कोई बात नहीं। कल फिर से पुराने पार्क में वॉक करने जाओ। क्या पता, उनसे मुलाकात हो ही जाए। बस उन्हें घर आने का निमंत्रण दे दो। फिर मैं सब संभाल लूंगी।
मुझे बहुत डर लग रहा है मीरा, सुषमा बेहद मायूस हो गई थी।
डरो मत! मैं हूं न तुम्हारे साथ, मीरा ने उसका हाथ मजबूती से थाम लिया।
बस मुझे फोन पर बता देना कि वे किस समय आ रहे हैं। मैं पहुंच जाऊंगी। नंबर मैंने तुम्हें दे रखा है।
तुम्हें पहले आना होगा। मुझसे घबराहट में कुछ नहीं होगा। मुझे तो अभी भी यह सब ठीक नहीं लग रहा है मीरा।
तुम ज्यादा मत सोचो सुषमा। मैं समय पर पहुंच जाऊंगी और सब संभाल लूंगी।
मीरा ने मन ही मन वार्तालाप की पूरी भूमिका तैयार कर ली थी। वह इस नेक काम को अंजाम तक पहुंचा कर रहेगी। एक बार मामला सेट हो जाए तो वह नीरज को दिखा देगी कि वह घर-गृहस्थी में उलझी रहने वाली मामूली औरत नहीं है। आज भी वह जागरूक महिला की तरह बहुत-कुछ कर सकती है। केवल बाल रंगने, चुस्त कपडे पहन लेने से ही इंसान आधुनिक नहीं हो जाता। उसकी सोच ही उसे आधुनिक बनाती है। विधवा विवाह करवाने जैसा साहसिक कदम उठा कर वह अपनी आधुनिक सोच का परिचय देगी। उस समय नीरज का चेहरा देखने लायक होगा। मीरा सोच-सोच कर ही फº महसूस कर रही थी। सुषमा का फोन आ गया। मीरा सहेली से मिलने का बहाना कर तुरंत घर से निकल गई। सुषमा बताने लगी उसे, वह तो इतने दिनों बाद मुझे देखकर हैरान रह गया था। उसे मेरी बहुत चिंता हो गई थी कि मैं कहीं बीमार तो नहीं हो गई। उसके पास मेरा पता नहीं था, वर्ना वह मिलने आ जाता। मैंने बहाना बना दिया कि मेरी बहन आई थी। उसने मुझसे कहा कि वह जरूरी बात करना चाहता है। मैं तो घबरा गई। घबराहट में तुम्हारी बात याद आई तो मैंने तुरंत उसे घर आने का निमंत्रण दे डाला।
बहुत अच्छा किया। अब हम जल्दी से नाश्ता तैयार कर लेते हैं। अपनी घबराहट पर काबू रखो। रसोई का काम मैं संभाल लूंगी। तुम उसके साथ बैठना। उसे आभास नहीं होना चाहिए कि अंदर कोई है। उसे अपने मन की बात कह लेने देना। फिर तुम्हारी ओर से मैं आकर बात कर लूंगी।
सब कुछ योजनानुसार हो रहा था। दरवाजे की घंटी बजते ही सुषमा दरवाजा खोलने चली गई और मीरा रसोई में दुबक गई। बैठक से आते परिचित से स्वर को सुन कर मीरा ने जरा सा पर्दा हटा कर झांका तो बेहोश होते-होते बची। आगंतुक कोमल शब्दों में अपना पक्ष रख रहा था, मॉर्निग वॉक के दौरान आपसे मुलाकात हुई तो लगा कि आपसे कुछ सीखा जा सकता है। मेरी पत्नी का मानना है कि इस उम्र की औरतें मॉर्निग वॉक पर नहीं जा सकतीं, क्योंकि उन पर गृहस्थी की जिम्मेदारियां होती हैं। पत्नी के न निकलने के कारण मैं अकेले ही सैर को निकलने लगा। आपसे मिला तो महसूस हुआ कि आपका उदाहरण देकर पत्नी को जवाब दे सकता हूं। आपने अपने बारे में जो कुछ भी बताया, उससे मेरे मन में आपके प्रति कोमल भावनाएं जगीं। मैं आपकी मदद करने को तैयार हूं। लेकिन प्लीज, इसे अन्यथा मत लीजिएगा। यह एक इंसान का दूसरे के प्रति फर्ज है। यदि मेरी ओर से जाने-अनजाने कोई गलत संदेश आप तक पहुंचा हो तो कृपया माफ कर दें।
उसकी बातें सुन कर सुषमा के सीने से बोझ उतर गया। वह मुसकराने लगी। अब उसे मीरा या किसी की मदद की जरूरत नहीं है। यही सब तो वह भी कहना चाहती थी। कल से न जाने कितनी बार आत्ममंथन कर चुकी थी और इस नतीजे पर पहुंची थी कि दोबारा घर बसाने की उसकी कोई चाह नहीं है। इसमें वह किसी के साथ न्याय नहीं कर सकेगी।
बैठक का पर्दा नहीं हिला तो वह समझ गई कि निराश मीरा को अपनी जरूरत महसूस नहीं हुई, इसलिए या तो अंदर ही छिपी है या पिछवाडे के शॉर्टकट से अपने घर पहुंच गई है।
और मीरा तो वाकई पिछवाडे से अपने घर पहुंच गई थी। आगंतुक के रूप में अपने पति नीरज को देख कर एकबारगी उसका दिल ही डूबने लगा था, मगर जब उसकी बातें कानों में पडीं तो मीरा उस शर्मनाक स्थिति से उबरी ही नहीं, बल्कि नीरज के प्रति हर संदेह भी काफूर हो गया। अब यदि नीरज उससे यह बात छिपाना भी चाहेगा तो वह उसे माफ कर देगी और यह सब बता कर उसे शर्मिदा नहीं करेगी। सुषमा से कह देगी कि उसे कोई जरूरी काम याद आ गया था, जिस वजह से उसे अचानक इस तरह निकलना पडा। वह दोनों में से किसी की भी आंखों में शर्मिदगी के भाव बर्दाश्त नहीं कर पाएगी। ..मीरा सुषमा के घर से निकल तो गई लेकिन सुषमा के दरवाजे पर खडी लाल कार ने कई राज उगल डाले थे। सुषमा की नजर गाडी पर पडी तो वह समझ गई कि यही नीरज है और यही है वह लाल कार, जो उसे मीरा ने दिखाई थी। सुषमा को मीरा का चुपचाप चले जाना भी समझ आ गया था। वह भी अपनी दोस्त की आंखों में शर्मिदगी के भाव नहीं देख सकती थी, इसलिए उसी शाम उसने दोनों को मोबाइल पर मैसेज किया कि वह कुछ दिनों के लिए अपनी बेटी के पास जा रही है..।
दूसरी ओर नीरज घर में बैठा सुकून की सांस भर रहा था। उसके दिल से बोझ उतर चुका था। वह सुषमा के बिना कुछ कहे गायब होने से खुद को दोषी मान रहा था। उसे लग रहा था कि एक संभ्रांत अकेली महिला के इतने नजदीक जाकर उसने ठीक नहीं किया। वह सोचने लगा था कि एक बार उस महिला से मिल कर अपनी स्थिति स्पष्ट कर देगा। आज ऐसा करके वह अपराध-बोध से मुक्त हो गया।
अगली सुबह आम होते हुए भी कुछ मायनों में अलग थी। सीने में भयंकर उथल-पुथल समेटे, पर ऊपर से शांत और मुसकराते दिख रहे दो प्राणी मॉर्निग वॉक के लिए तैयार हो रहे थे..।
संगीता माथुर