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और भी है पहचान चेहरे के सिवा

यह 2006 की बात है। तब मेरी उम्र मात्र 23 साल थी। मैं मूलत:वाराणसी की रहने वाली हूं और बीएचयू से ग्रेजुएशन करने के बाद मैंने दिल्ली के फैशन डिज़ाइनिंग इंस्टीट्यूट से एमबीए किया था।

By Edited By: Published: Sun, 09 Oct 2016 01:27 PM (IST)Updated: Sun, 09 Oct 2016 01:27 PM (IST)
और भी है पहचान चेहरे के सिवा
यह 2006 की बात है। तब मेरी उम्र मात्र 23 साल थी। मैं मूलत: वाराणसी की रहने वाली हूं और बीएचयू से ग्रेजुएशन करने के बाद मैंने दिल्ली के एक प्रतिष्ठित फैशन डिजाइनिंग इंस्टीट्यूट से गारमेंट मैन्युफैक्चरिंग में एमबीए किया था। मैं अपना कोर्स कंप्लीट कर चुकी थी। 18 अप्रैल 2006 को मेरी शादी थी और 2 मई से हमारे कॉलेज में कैंपस प्लेसमेंट की शुरुआत होने वाली थी। नहीं भूलती वो काली रात मेरे लिए वहां जाना बहुत जरूरी था। इसलिए 30 अप्रैल को मैं शिवगंगा एक्सप्रेस से दिल्ली के लिए निकल पडी। रात की ट्रेन थी। मैं अपर बर्थ पर सिरहाने अपना बैग रखकर सो रही थी। अचानक मुझे अपने चेहरे पर बहुत तेज जलन महसूस हुई। दर्द इतना असहनीय था कि मैं चीखती हुई बर्थ से नीचे कूद गई। मैं समझ नहीं पा रही थी कि मुझे क्या हो रहा है? चारों ओर अफरातफरी मच गई और इसी बदहवासी में किसी व्यक्ति ने ट्रेन की चेन खींच दी। संयोगवश उसी ट्रेन की दूसरी बोगी में एक डॉक्टर भी सफर कर रही थीं। यात्रियों का शोर सुनकर जब वह मुझे देखने आईं तो उन्होंने मुझसे कहा कि तुम्हारे ऊपर किसी ने एसिड डाल दिया है, तुम अपनी आंखें और मुंह बिलकुल बंद रखना। फिर सभी यात्रियों से कहा कि आप लोग लगातार इसके ऊपर पानी डालते रहें। एसिड से मेरे शरीर के सारे कपडे और गहने तक गल चुके थे। इसलिए उस डॉक्टर ने अपने दुपट्टे को मेरे शरीर पर लपेट दिया। मुझे इटावा स्टेशन पर उतार कर एंबुलेंस से आगरा स्थित एक प्राइवेट अस्पताल के आइसीयू वॉर्ड में भर्ती करवाया गया पर मेरी हालत इतनी नाजुक थी कि वहां के डॉक्टर्स ने मुझे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल भेजने को कहा। उसके बाद मुझे एंबुलेंस से दिल्ली लाया गया लेकिन उस अस्पताल के आइसीयू वॉर्ड में मुझे जगह नहीं मिल रही थी। मेरी बुरी हालत देखकर अस्पताल वाले मुझे एडमिट करने को तैयार नहीं थे। बडी मुश्किलों के बाद कुछ परिचित डॉक्टर्स की सिफारिश पर मुझे आइसीयू वॉर्ड में जगह मिली। एसिड से निकलने वाला जहरीला धुआं मेरे फेफडों में जमा हो गया था। उसकी वजह से मैं सांस नहीं ले पा रही थी। मुझे 15 दिनों तक वेंटिलेटर पर रखा गया। दरअसल करवट लेकर सोते हुए मेरे चेहरे का जो हिस्सा नीचे की तरफ था, वह पूरी तरह जल गया था। दोनों आंखों की पलकें एसिड की वजह से नष्ट हो गई थीं और बायीं आंख की दृष्टि तो बिलकुल खत्म हो चुकी थी। फिर ग्राफ्टिंग के जरिये दो बार मेरे चेहरे की सर्जरी हुई। इसके बाद अपनी आंखों के ट्रीटमेंट के लिए मैं चेन्नई स्थित शंकर नेत्रालय चली गई। आईलिड रीकंस्ट्रक्शन के जरिये वहां मेरी पलकों को सही आकार दिया गया। अपनों का साथ जीवन के इस मुश्किल दौर में मेरे माता-पिता और भाई-बहनों ने हर कदम पर मुझे बहुत ज्यादा इमोशनल सपोर्ट दिया। वे हमेशा इस बात का ध्यान रखते थे कि मैं किसी भी तरह अपना चेहरा न देख पाऊं। इसलिए वे अस्पताल में मेरे कमरे की सभी खिडकियों के शीशे को हमेशा ढक कर रखते। उन्होंने मेरे पास से मोबाइल हटा दिया था, यहां तक कि वे स्टील के बर्तनों को भी मुझसे दूर रखते थे। अगर कभी मैं उनसे पूछती कि मेरा चेहरा कैसा दिखता है तो उनका यही जवाब होता था कि तुम जल्द ही ठीक हो जाओगी, चिंता मत करो। सचमुच यह अपनों के प्यार और दुआओं का ही असर है कि इतनी बडी दुर्घटना के बाद मुझे दोबारा स्वस्थ और खुशहाल जीवन जीने का मौका मिला। अटूट है रिश्ता हमारा माता-पिता और भाई-बहनों के साथ मेरा खून का रिश्ता है, इसलिए मेरे लिए उनके दिल में दर्द होना स्वाभाविक है लेकिन उस दुर्घटना के बाद मैंने यह मान लिया था कि अब तो मेरी शादीशुदा जिंदगी खत्म हो जाएगी क्योंकि मेरी अरेंज्ड मैरिज हुई थी और शादी के मात्र बारह दिनों के बाद ही यह दुर्घटना हो गई। खबर सुनते ही ऑफिस से छुट्टी लेकर मेरे पति संजय बेंगलुरू से दिल्ली आए और अस्पताल में साथ रह कर उन्होंने दिन-रात मेरी सेवा की। कुछ ऐसा संयोग था कि उसी दौरान शाहिद कपूर और अमृता राव की चर्चित फिल्म 'विवाह' रिलीज हुई थी। मेरे पति का ऐसा केयरिंग स्वभाव देखकर अस्पताल के कई डॉक्टर्स हमसे यही कहते थे कि आपको देखकर हमें उसी फिल्म की याद आती है। फिर भी उन दिनों मैं अजीब से ऊहापोह भरे दौर से गुजर रही थी। अपने भविष्य को लेकर मेरे मन में कई तरह के सवाल उठते पर संजय की सोच बिलकुल अलग थी। वह अकसर मुझसे यही कहते कि पति-पत्नी का रिश्ता इतना कमजोर नहीं होता कि मात्र किसी दुर्घटना की वजह से टूट जाए। मेरे साथ उनका व्यवहार इतना सहज था कि मैं भी उनके साथ खुद को बहुत कंफर्टेबल फील करने लगी थी। छोटा सा आशियाना हमारा इस तरह शादी के लगभग एक साल बाद बेंगलुरू में हमने अपनी गृहस्थी की शुरुआत की। अब मुझे इस बात पर पक्का यकीन हो गया कि कई बार हमारी जिंदगी कल्पना से भी ज्य़ादा खूबसूरत होती है। मैं खुश रहने लगी थी पर उस भयानक दुर्घटना की दहशत अभी भी मेरे मन के किसी कोने में गहराई से बैठी हुई थी। मुझे अंधेरे से बहुत डर लगता था। मैं नींद में डर कर बुरी तरह कांपने और रोने लगती। इसी वजह से प्रेग्नेंसी के तीसरे महीने में दो बार मेरा मिसकैरेज हो गया। डॉक्टर के अनुसार शारीरिक रूप से मैं पूर्णत: स्वस्थ थी लेकिन किसी मनोवैज्ञानिक समस्या की वजह से मेरे साथ ऐसा हो रहा था। मेरी डॉक्टर ने मुझसे कहा कि तुम उन बुरी यादों की दहशत से बाहर निकलने की कोशिश करो। इस बात का मुझ पर इतना गहरा असर हुआ कि अपना डर दूर भगाने के लिए मैं आधी रात को अकेली अपने फ्लैट से नीचे उतर कर अपार्टमेंट के कैंपस में टहलना शुरू कर देती। अपनी सेहत और खानपान का पूरा ध्यान रखती और हमेशा खुश रहती। इसके कुछ वर्षों के बाद मेरी दोनों बेटियों हिया और जिया का जन्म हुआ। दर्द दोनों परिवारों का अगर हम दोनों के परिवारों ने हमें इमोशनल सपोर्ट न दिया होता तो शायद हमारे लिए यह लडाई जीत पाना संभव न होता। मेरा घर तो फिर भी शहर में था लेकिन मेरी ससुराल गांव में थी। इसलिए मेरे सास-ससुर से वहां के लोग कई तरह के सवाल पूछते। कई लोग यह भी कहते कि ऐसी बहू को घर लाकर क्या फायदा? इससे कई बार वे तनावग्रस्त हो जाते पर उन्होंने बडे धैर्य के साथ इस मुश्किल का सामना किया। इसी तरह बनारस में हमारे पडोसियों और रिश्तेदारों के बीच यह अफवाह फैल गई कि अब तो प्रज्ञा के पति ने उसे छोड दिया है। मेरे माता-पिता से भी लोग कई तरह के सवाल पूछते पर मेरी मां ऐसी जटिल स्थितियों का सामना करना जानती हैं। हैवानियत की इंतहा आपके मन में भी यह सवाल उठ रहा होगा कि आखिर किस व्यक्ति ने मेरे चेहरे पर एसिड फेंका और क्यों? सच्चाई तो यह है कि उस दुर्घटना के समय मैं खुद यह नहीं समझ पाई कि मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ क्योंकि मेरे दोस्तों और परिचितों में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं था, जिससे मेरा या मेरे माता-पिता का कभी कोई झगडा या मनमुटाव हुआ हो। मुझ पर हमला करने वाले अपराधी ने रात के दो बजे मुझ पर एसिड फेंका और सुबह चार बजे फोन पर मेरी मम्मी को धमकी देते हुए कहा, 'आपने मेरे साथ अपनी बेटी का रिश्ता जोडऩे से मना किया था न, अब देखता हूं कि शादी के बाद वह कैसे खुश रह पाती है।' यह सुनते ही मम्मी को यह अंदाजा हो गया कि फोन करने वाला व्यक्ति कौन था। बात उन दिनों की है, जब मैं दिल्ली में रहकर पढाई कर रही थी। हमारे एक पडोसी के रिश्तेदार का बेटा अकसर उनके घर आता-जाता था। एक बार उसकी मां हमारे घर पर विवाह का प्रस्ताव लेकर आईं पर वह उम्र में मुझसे दस साल बडा था, इसलिए मम्मी ने बहुत विनम्रतापूर्वक शादी से मना कर दिया और वह इस बात को भूल गईं। ...अपराधी इतना शातिर था कि उसी इंकार का बदला लेने के लिए मेरी दिल्ली यात्रा का कार्यक्रम पता लगा कर वह बेटिकट ट्रेन के एसी कोच में घुस आया था। बाद में मुकदमे के दौरान मेरे दो सहयात्रियों ने कोर्ट में उसके खिलाफ गवाही भी दी थी। उस अपराधी की क्रूर मानसिकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुर्घटना के तुरंत बाद जब मुझे आगरा स्थित निजी अस्पताल के आइसीयू वॉर्ड में भर्ती कराया गया, तब दोबारा मुझ पर एसिड फेंकने के इरादे से वह जबरन भीतर जाने की कोशिश कर रहा था। उसी दौरान पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया और उसके बैग से एसिड की एक बॉटल भी बरामद हुई लेकिन उसका परिवार काफी रसूखदार था। उसने इस केस में अपने पैसे और रुतबे का भरपूर इस्तेमाल किया। इसी वजह से मात्र साढे चार साल के बाद ही वह जेल से रिहा हो गया। दर्द का रिश्ता उस दुर्घटना के बाद मेरी जिंदगी तो सामान्य ढर्रे पर लौटने लगी पर यह सोचकर मुझे बहुत दुख होता था कि मेरे पास तो फिर भी अपने परिवार का सपोर्ट था मगर देश में न जाने कितनी ही ऐसी लडकियां हैं, जिनके परिवार की आर्थिक स्थिति इस लायक नहीं होती कि वे इलाज का खर्च उठा सकें। वैसे भी स्किन सर्जरी काफी खर्चीली और तकलीफदेह प्रक्रिया है। इतना बडा हादसा झेलने के बाद ज्य़ादातर लडकियों को डिप्रेशन और फोबिया जैसी गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्याएं हो जाती हैं। उन्हें इलाज के साथ इमोशनल सपोर्ट और काउंसलिंग की भी जरूरत होती है। रोजगार ऐसी लडकियों के लिए बहुत बडी समस्या है। अपने अनुभवों के आधार पर मैं यह जानती हूं कि कोई भी इन्हें काम पर रखने को तैयार नहीं होता। सार्वजनिक जीवन में इन्हें स्वीकृति नहीं मिल पाती इसलिए ये घर के अंधेरे कमरों में खुद को कैद कर लेती हैं। ऐसी लडकियों के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता बहुत जरूरी है। इसी सोच के साथ 2013 में मैंने 'अतिजीवन फाउंडेशन' की शुरुआत की। इसके माध्यम से मैं ऐसी लडकियों को नि:शुल्क उपचार और काउंसलिंग उपलब्ध कराती हूं, साथ ही उनकी रुचि और क्षमता के अनुकूल प्रशिक्षण देकर उन्हें स्वरोजगार के लिए भी प्रेरित करती हूं। दूसरों को उपदेश देने से पहले खुद उस पर अमल करना बहुत जरूरी है। इसलिए घर से बाहर निकलते वक्त मैं अपना चेहरा कभी नहीं ढकती क्योंकि इससे मुझे सांस लेने में तकलीफ होती है। मुझे देखकर एसिड अटैक की शिकार कई लडकियों ने अपना चेहरा ढकना छोड दिया। इसकी वजह से अकसर मुझे अप्रिय स्थितियों का सामना करना पडता है पर अब इसकी आदत पड चुकी है। जब मैं अपनी छोटी बेटी को स्कूल से वापस लाने जाती हूं तो कुछ बच्चे मुझे देखकर डर जाते हैं तो कुछ हंसते हैं। बच्चे तो नादान होते हैं और इसमें उनकी कोई गलती नहीं है मगर यह देख कर बहुत दुख होता है कि किसी बच्चे की ऐसी हरकत पर उसकी मां उसे समझाने की कोशिश नहीं करती। किसी भी वजह से अगर कोई इंसान सामान्य लोगों से अलग दिखाई दे तो इसमें उसका क्या कसूर है। इसलिए दूसरों की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे उस व्यक्ति के साथ सहज व्यवहार करते हुए उसे कंफर्टेबल फील करवाएं, ताकि वह समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सके। खुशियां आईं मेरे घर मेरी दोनों बेटियों के रूप में मुझे अपनी जिंदगी की सारी खोई हुई खुशियां वापस मिल गईं। प्रेग्नेंसी के दौरान मैं हमेशा इस बात के लिए सशंकित रहती थी कि कहीं मेरे होने वाले बच्चे की आंखों की दृष्टि कमजोर तो नहीं हो जाएगी? तब डॉक्टर ने मुझे समझाया कि मेरी समस्या जेनेटिक नहीं है बल्कि एसिड अटैक का परिणाम है। इसलिए यह जरूरी नहीं कि मेरे होने वाले बच्चे पर इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव पडे। फिर भी मैं अपनी सेहत का पूरा ध्यान रखती और अच्छी किताबें पढती। इसी वजह से मेरी दोनों बच्चियां बेहद खुशमिजाज हैं। बडी बेटी हिया जब दो साल की हो गई तो वह मेरा चेहरा छूकर मुझसे पूछती थी कि आपकी स्किन ऐसी क्यों है? तब मैं उसे समझाती कि जलने की वजह से ऐसा हो गया है। मेरी बेटियों में इस बात को लेकर जरा भी कॉम्प्लेक्स नहीं है कि उनकी मम्मी ऐसी क्यों दिखती हैं? वे बडे फख्र से मुझे अपने दोस्तों से मिलवाती हैं। मेरी पुरानी तसवीरें देख कर बहुत खुश होती हैं और इससे मेरी खुशियां भी दोगुनी हो जाती हैं। कुछ जरूरी बातें अगर अपनी सुरक्षा के प्रति जरा भी अंदेशा हो तो अपने पेरेंट्स को जरूर बताएं। सोशल साइट्स पर निजी जानकारियां अपडेट न करें, मसलन आप कहां घूमने जा रही हैं, किससे मिलने जा रही हैं, वगैरह। अगर किसी लडकी साथ ऐसी कोई घटना हो तो आसपास के लोगों की यह जिम्मेदारी बनती है कि अस्पताल जाने से पहले वे लगातार उसके ऊपर पानी डालते रहें। उस दौरान पीडित लडकी को अपनी आंखें और मुंह दोनों बंद रखने चाहिए। जिस तरह लोग आई डोनेशन करते हैं, उसी तरह उन्हें अपनी स्किन भी डोनेट करनी चाहिए। इससे जलने वालों की जान आसानी से बचाई जा सकती है क्योंकि अगर जलने के तुरंत बाद स्किन ट्रांस्प्लांट कर दिया जाए तो इन्फेक्शन का खतरा कम हो जाता है। ऐसे मामलों में ज्य़ादातर मौतें इन्फेक्शन की वजह से ही होती है। अगर आपके आसपास कोई ऐसी लडकी है तो यथासंभव उसे सहयोग दें ताकि उसे लोगों के साथ घुलने-मिलने का मौका मिले। प्रस्तुति : विनीता

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